उमा सिंह
हर ७४ सेकंड में एक महिला के साथ किसी न किसी तरह का अपराध होता है। अगर हम इस डेटा को देखें, तो यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि महिलाएं भारत में कितनी अनसेफ हैं।
आज की महिलाएं सिर्फ घर ही नहीं चलाती बल्कि देश और दुनिया की तरक्की में भी अपना लोहा मनवा रही हैं। महिलाओं ने अपने कौशल और प्रतिभा से समूची दुनिया में यह साबित कर दिखाया है कि किसी भी मामले में वे पुरुषों से कम नहीं हैं। उनके इसी जज्बे और हौसले को बढ़ाने और उनकी सराहना करने के लिए हर साल ८ मार्च का दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाया जाता है। महिलाओं को मान-सम्मान और उनका अधिकार देने के लिए ही महिला दिवस मनाया जाता है। लेकिन जरा रुकिए….`महिलाओं के सम्मान’! थोड़ा अजीब लग रहा है ना! हिंदुस्थान की महिलाओं के संदर्भ में `महिलाओं के सम्मान और उनकी सुरक्षा’ को देखते हुए क्या वाकई महिला दिवस मायने रखता है? शायद बहुत लोग इसका जवाब `हां’ में दें, लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। कम से कम हिंदुस्थान में तो महिलाओं की सुरक्षा की बातें करना बेमानी ही साबित हुई है। पिछले १० सालों के आंकड़े देखें तो महिलाओं के प्रति हो रहे रहे अत्याचार के मामले बेहद बढ़ते नजर आए हैं। १० सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराध में ७५ फीसदी तक की वृद्धि देखने को मिली है। इन आंकड़ों को देखकर तो यही सवाल प्रत्येक महिला के मन में आता है कि देश को आजाद हुए ७६ साल बीत जाने के बाद भी आज हिंदुस्थानी नारी अपनी आजादी के लिए क्यों तरस रही है।
मणिपुर में महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने की घटना हो या देश के किसी राज्य में दहेज के लिए लड़कियों को जिंदा जलाने का मामला हो, हिंदुस्थान ने सबकुछ देखा है। महिलाओं के खिलाफ यह अपराध कोई नई घटना नहीं है, हालांकि, निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अपराधों पर सजा को सख्त कर दिया गया था पर आंकड़े बताते हैं कि हिंदुस्थान में महिलाओं के खिलाफ अपराध हर साल बढ़ते ही जा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में साल २०१९ में महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अपराधों की संख्या ४,०५,३२६ थी, जो साल २०२१ में बढ़कर ४,२८,२७८ हो गई। साल २०२३ ये मामले बढ़कर ४,४५,२५६ हो गए।
मेट्रो शहर ही नहीं, बल्कि टू-टियर सिटीज जैसे जयपुर, इंदौर, लखनऊ, नागपुर भी सुरक्षित नहीं हैं। बात साफ है कि हिंदुस्थान में महिला अभी भी अपने देश, शहर, मोहल्ले, गली, घर के अंदर सुरक्षित महसूस नहीं करती है। साल-दर-साल ये आंकड़े बढ़ते ही चले जा रहे हैं और हम धीरे-धीरे इसी असलियत के साथ जीना सीख रहे हैं जो यकीनन बहुत गलत है। घर के अंदर जब किसी बेटी का रेप होता है, तो उसे चुप रहने की सलाह दी जाती है, गंगा को पवित्र और मूर्ति को देवी मानने वाले इस देश में जब लड़कियों की ही सुरक्षा नहीं हो सकती, तो आखिर हम किस बुनियाद पर विकास के बारे में सोचते हैं? और ऐसे में भला हम वैâसे हैप्पी विमेंस डे कह सकते हैं?
सुविधा या भ्रम?
इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? रोटी, कपड़ा और मकान? इनके साथ एक और चीज जरूरी है और वो है सुरक्षा। पर आंकड़े बताते हैं कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा केवल कागजों में है। हर साल जारी एनसीबी की रिपोर्ट में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार के सभी दावे फेल नजर आते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा महिलाओं के हित में लाए गए कानून सुविधा या भ्रम? ऐसा सवाल मन में आता है।
तभी हो सकता
है हैप्पी विमेंस डे!
यह सही है कि आज अतीत के मुकाबले कहीं ज्यादा बच्चियां शिक्षा ले रहीं हैं। इसी तरह बाल-विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों में कमी आई है। महिला स्वास्थ्य की दिशा में प्रगति हो रही है। वे देश का प्रतिनिधित्व भी कर रही हैं। लेकिन सही मायने में हम तभी हैप्पी विमेंस डे कह पाएंगे, जब महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आएगी, जब महिलाएं खुद सुरक्षित महसूस करेंगी। तब शायद उन्हें अपनी आजादी तलाशनी नहीं पड़ेगी, तब शायद सही मायने में वे अपनी आजादी को महसूस कर पाएंगी।
• रोजाना ८७ महिलाएं हो रही बलात्कार का शिकार
• देश में पांच वर्ष यानी डेढ़ लाख महिलाओं से बलात्कार
• एमपी और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मिसिंग केस
• राजस्थान में महिलाओं के साथ हुए सबसे ज्यादा रेप
• दहेज के लिए देश में हर रोज २० महिलाओं की हत्या