आनंद श्रीवास्तव
मुंबई सीएसटी के फुटपाथ पर रहनेवाले सलीम शेख छोटा-मोटा काम करते हैं। हेल्पर से लेकर मजदूरी तक, जो भी काम मिलता है वे कर लेते हैं। पैसे का भी कोई तगादा नहीं, जो जितना देता है उसे चुपचाप रख लेते हैं। मजबूरी है इसलिए मजदूरी करते वक्त कोई मोल-भाव नहीं करते। वो मानते हैं कि इस उम्र में उन्हें नौकरी कौन देगा और पैसा नहीं आएगा तो घर वैâसे चलेगा?
मेहनत-मजदूरी करके वह अपनी बच्ची आसमा शेख को खूब पढ़ाना चाहते हैं। सलीम की मेहनत को आसमा ने व्यर्थ नहीं जाने दिया। इसी फुटपाथ पर स्ट्रीट लाइट के उजाले में वह पढ़ाई करती थी। समाजसेवक भगवान कोली और वैशाली गावडे ने आसमा के लगन को देखते हुए उसे पुस्तक और पढ़ाई की सभी वस्तुओं की मदद की। इसके बाद फुटपाथ पर ही पढ़ाई कर आसमा ने दसवीं पास किया और सुर्खियों में छा गई थी।
सलीम शेख और आसमा की इस उपलब्धि पर उन्हें देश-विदेश से मदद देने वालों की लाइन लग गई। इसी मदद के बल पर आज आसमा आगे की पढ़ाई कर रही है, लेकिन सलीम ने भी अपना काम छोड़ा नहीं है।
आज भी सलीम उसी तरह काम करते हैं। हालांकि, तत्कालीन राज्यपाल और अन्य दानदाताओं के सहयोग से आसमा को नया घर मिला, जिसमें उसका पूरा परिवार शिफ्ट हो गया था। लेकिन बताया जाता है कि वह घर आसमा की पढ़ाई के लिए तीन साल तक की कालावधि के लिए ही उनके अधीन रहा। अब शायद आगे उन्हें कहीं और शिफ्ट करना पड़े। सलीम का कहना है कि मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरी बेटी ने इतना बड़ा काम किया है। वह तो बचपन से ही पढ़ाई करती रहती थी। हम मजदूर लोग हैं। रोज कमाते, रोज खाते हैं। कभी भविष्य के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिला, लेकिन आसमा की मेहनत ने वह उम्मीद जगाई है।
सलीम और उनकी बेटी आसमा मुंबईकरों के लिए उदाहरण बन गए हैं। अब भी सलीम कभी-कभार सीएसटी के उस फुटपाथ पर बैठे मिल जाते हैं। कहते हैं कि यहीं जीवन गुजरा है, रोजी-रोटी भी यहीं से मिलती है तो इसे छोड़ें वैâसे?