आनंद श्रीवास्तव
मुंबई के लाल डोंगर इलाके के एक छोटे से घर में रहनेवाले विष्णु शिवकर ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। उनके पिता परशुराम शिवकर ने छोटी-मोटी नौकरी करके अपना परिवार चलाया, बच्चों को पढ़ाया-लिखाया। वे सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। इस कार्य के दौरान उनके बच्चे भी उनके साथ ही रहते थे। उनके सभी बच्चों में सबसे लाडले थे विष्णु शिवकर। वे चाहते थे कि विष्णु पढ़-लिखकर कुछ अलग करे, इसलिए उन्होंने विष्णु को एचएससी के बाद वीजेटीआई से इलेक्ट्रिकल डिप्लोमा की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। विष्णु ने भी अपने पिता की बात मानते हुए इसे पूरा किया। लेकिन इलेक्ट्रिकल डिप्लोमा होने के बाद भी विष्णु को कहीं नौकरी नहीं मिली, इसलिए किसी की सलाह पर उन्होंने पीडब्ल्यूडी का लाइसेंस निकाला, ताकि वो खुद का काम शुरू कर सकें। लेकिन प्रतिस्पर्धा के इस युग में विष्णु को काम मिलने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दूसरे लोगों को `पहचान’ या `सोर्स’ की वजह से कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता था, लेकिन विष्णु शिवकर काम पाने से हमेशा वंचित रह जाते थे। इसी बीच विष्णु शिवकर की शादी हो गई। अब उनकी जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं। तब मित्रों की सलाह पर उन्होंने किराए का ऑटोरिक्शा चलाना शुरू किया। उनके लिए यह क्षेत्र नया था, लेकिन इसमें इलेक्ट्रीशियन की अपेक्षा नियमित कमाई होने लगी थी, इसलिए विष्णु शिवकर ने ऑटोरिक्शा को ही अपनी आजीविका का साधन मान लिया। वे रोजाना दो शिफ्ट में ऑटोरिक्शा चलाने लगे। इस तरह चार साल वैâसे बीत गए उन्हें पता भी नहीं चला। विष्णु को हमेशा ऐसा लगता था कि उनका खुद का ऑटोरिक्शा लिया जाए। इसके लिए उन्होंने दोस्तों और परिवार की मदद से अपना खुद का ऑटोरिक्शा खरीद लिया। वह अब खुद की गाड़ी चलाने लगे थे, जिससे उनका शिफ्ट का पैसा बचने लगा था। इसलिए रोजाना ज्यादा इनकम होने लगी। विष्णु शिवकर कहते हैं कि, `इनकम तो ज्यादा होने लगी, लेकिन खर्च भी बढ़ गए। पहले गैस का भाव कम था, लेकिन आज लगभग दोगुना हो गया है। साथ ही सड़कें खराब होने की वजह से गाड़ी में मेंटेनेंस भी बहुत निकल रहा है।’ इसके बावजूद विष्णु शिवकर अपने खुद के व्यवसाय से बहुत खुश हैं। उनका खुद का ऑटोरिक्शा खरीदने का सपना हुआ पूरा हुआ, इससे बड़ी बात उनके लिए क्या हो सकती है।