आनंद श्रीवास्तव
‘आज मेरा बेटा इंजीनियर है, मुझ चायवाले को इससे ज्यादा और क्या चाहिए?’ यह कहना है केशव प्रसाद मिश्र का, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से न केवल अपना घर-परिवार चलाया बल्कि अपने बेटे को इस लायक बनाया कि आज वो अपने पैरों पर खड़ा है। केशव प्रसाद ने बताया कि मेरे पिता रमापति मिश्रा लगभग ५० साल पहले मुंबई आए थे। यहां आकर उन्होंने माहिम के आदर्श डेरी में लगभग पांच साल तक दूध भरने की नौकरी की। फिर इन्होंने यह मिश्रा टी स्टॉल शुरू किया, जिसे अब मैं चला रहा हूं। मेरे बेटे सूरज को मैं इस दुकान लाइन में नहीं लाना चाहता था। इसलिए उसको पढ़ाया। आज वह इंजीनियरिंग करके एक विदेशी कंपनी में नौकरी कर रहा है, जहां कम समय की ड्यूटी में उसे बहुत ज्यादा पगार है। मुझे इससे बढ़कर और क्या चाहिए। ऐसा कहना है माहिम के टीएच कटारिया मार्ग पर चाय-नाश्ता की दुकान चला रहे केशव प्रसाद मिश्रा का।
उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में ही केशव प्रसाद मिश्रा की पढ़ाई-लिखाई हुई। भदोही से इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद १९९४ में केशव प्रसाद मिश्रा भी मुंबई आ गए और अपने पिता की चाय-नाश्ता की दुकान पर उनका हाथ बंटाने लगे। तब से जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक चल रहा है।
रोजाना २० घंटे तक काम करनेवाले केशव प्रसाद मिश्रा का कहना है कि मेरे पिता ने यह दुकान शुरू की थी। उसके बाद अब मैं इसे संभाल रहा हूं। लेकिन मैं नहीं चाहता था कि मेरा बेटा सूरज मिश्रा भी दुकान में ही अपनी जिंदगी बिता दे। इसलिए मैंने उसको पढ़ाया। उसने टेलीकम्यूनिकेशन व इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। अब तक वह तीन कंपनियों में नौकरी कर चुका है। अब वह जिस कंपनी में कार्यरत है वहां सिर्फ ८ घंटे की ड्यूटी में उसे लाख रुपए से ज्यादा सैलरी है। मैं बीस घंटे काम करके भी उतना नहीं कमा पाता हूं।
केशव प्रसाद मिश्र ने अपनी बहू को भी ग्रेजुएशन पूरा करने को कहा। शादी के बाद उनकी बहू ने ग्रेजुएशन पूरा किया और कांदिवली के स्कूल में बतौर शिक्षिका कार्यरत हैं। केशव प्रसाद मिश्रा चाहते हैं कि उनके घर में सभी लोग अपनी पढ़ाई पूरी करें। इसके लिए वे खुद मेहनत करते हैं और बच्चों को पढ़ाई में मेहनत करने के लिए प्रेरित करते हैं।
केशव मिश्रा ने अपने बच्चों को दुकान पर बिठाने के बदले पढ़ाना बेहतर समझा। आज उनके बेटे सूरज के अलावा तीन बेटियों ने भी ग्रेजुएशन पूरा कर लिया है। हालांकि, उनकी तीनों बेटियों की शादी हो चुकी है और वे अपने-अपने ससुराल में हैं। कौशल मिश्रा का जीवन और उनके विचार समाज को प्रेरणा देनेवाले हैं।