आज कलम ने कहा ये मुझसे,
क्यों होता है उदास,
आम से काम चलेगा ना भाई,
बनना होगा खास।
तू तो बस रचता जा प्यारे,
नित प्यारी रचनाएं,
और प्रेषित कर सही समय पर,
बिन उम्मीद और आस।
कभी कभी प्रतिफल की चाह में,
रहती है दुस्वारी
कभी कभी होता है,
नुमाइंदों का एहसास ।
कैसे करें इशारा ‘पूरन’
इस दिल की बातों का,
डर है ये नासमझ करेंगे,
बिन समझे उपहास।
-पूरन ठाकुर “जबलपुरी”
कल्याण