–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू। प्रदेश में इस बार 15 अगस्त के दिन होने वाले स्वतंत्रता समारोहों में आपको बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी व अधिकारी नजर आएंगें। ऐसा उनकी उपस्थिति पक्की करने के लिए निकाले गए आदेश से साबित होता है। यही नहीं सरकारी कर्मियों को अपने सोशल मीडिया अकांउंट पर भी तिरंगे के साथ डीपी लगाने का आदेश दिया गया है।
पिछले कुछ सालों से हालांकि स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस समारोहों पर सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति अनिवार्य बनाने की खातिर ऐसे आदेश निकाले जाते रहे हैं पर हमेशा ही इसे हल्के तौर पर लिया जाता रहा है। पर इस बार यह आदेश 15 दिन पहले जारी कर प्रशासन ने सख्ती दिखाने का मूड भी बनाया है। पहली बार इसकी खातिर विभागाध्यक्षों को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि उनके अधीन आने वाले सारे कर्मियों और अधिकारियों की उपस्थिति स्वतंत्रता दिवस समारोहों के दौरान दर्ज की जाए और गैर हाजिर होने वालों का वेतन काटने के साथ साथ उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जाए।
यह तो कुछ भी नहीं, प्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारियों को अपने सभी सोशल मीडिया एकाउंट्स पर अपनी डीपी बदलने का फरमान भी सुनाया गया है। उन्हें तिरंगे के साथ फोटो डीपी की जगह लगाने के लिए कहा गया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि यह डीपी कितने दिनों तक सोशल मीडिया एकाउंट्स में लगी रहनी चाहिए। वैसे स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर समारोह स्थलों पर सरकारी कर्मियों की उपस्थिति अनिवार्य बनाए जाने संबंधी जारी सरकारी अध्यादेश कोई नया नहीं है। कश्मीर में आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही यह विवाद आरंभ हुआ था जो आज भी जारी है।
ऐसे आदेश को सख्ती से लागू करने का कार्य वर्ष 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की सरकार के दौरान हुआ था जिन्होंने तब स्थानीय विधायकों को भी सख्त ताकिद की थी कि अगर उनके इलाके के सरकारी कर्मचारी अनुपस्थित हुए तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
आजाद के ही मुख्यमंत्रित्व काल में आम नागरिकों को गणतंत्र व स्वतंत्रता दिवस सामारोहों की ओर आकर्षित करने के इरादों से मुफ्त सरकारी बसों की व्यवस्था आरंभ हुई थी और अखबारों तथा अन्य संचार माध्यमों में विज्ञापन देकर उनमें जोश भरने की कवायद भी।
दरअसल कश्मीर में आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को होने वाले सरकारी समारोह सिर्फ और सिर्फ सुरक्षाबलों के लिए बन कर रह गए थे क्योंकि आतंकी चेतावनियों और धमकियों के चलते आम नागरिकाें के साथ ही सरकारी कर्मियों की मौजूदगी नगण्य ही थी जबकि जो नागरिक इसमें शामिल होने की इच्छा रखते थे उन्हें लंबे और भयानक सुरक्षा व्यवस्था के दौर से गुजरना पड़ता था।