मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनानमस्ते सामना : पत्थर से हो गए

नमस्ते सामना : पत्थर से हो गए

ताल्लुक इस कदर दरमियां हो गए।
लाजमी फासलों के फैसले हो गए।
कोरे कागज से बस रह गए हम।
हर्फ मेरे सारे जानें कहा खो गए।
चाहा था बहुत कुछ कहना तुमसे।
फिर मौन के मौन से संवाद हो गए।
तुम अपने थे तो शिकवे ही शिकवे थे
मुस्करा के मिलने लगे जब से गैर हो गए।
ख्वाब जो जगाते थे मुझको रात भर।
वो भी सारे थक कर कहीं सो गए।
हम भी थे बहुत जिंदादिल इंसान।
लोग कहते है अब पत्थर से हो गए।
-प्रज्ञा पांडेय मनु, वापी गुजरात

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