धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
महाराष्ट्र की अधिकांश जेलों में उनकी क्षमता से अधिक कैदी हैं। इसके चलते इनमें से कई कैदी विभिन्न बीमारियों का सामना कर रहे हैं। इस सबके बीच स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बहुत की चौंकानेवाली जानकारी दी है। उनके मुताबिक, प्रदेश की जेलों में मनोरोगियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य की सभी जेलों में इस वक्त करीब ढाई हजार मनोरोगी कैदी हैं। इसके साथ ही यह बात भी सामने आई है कि मनोरोगी कैदीयों के इलाज के लिए जरूरी दवाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि स्वास्थ्य विभाग में मनोचिकित्सकों के ९७ स्वीकृत पदों में से ८१ पद खाली हैं।
ज्ञात हो कि महाराष्ट्र में कुल ६० जेल हैं, जिसमें नौ सेंट्रल, ३१ जिला, १९ खुली और एक खुली महिला जेल शामिल है। इन सभी जेलों की कुल क्षमता २४,७२२ है। हालांकि, जनवरी २०२३ के अंत में इन जेलों में कुल ४१,०७५ कैदी थे। इसमें ३९,५०४ पुरुष, १,५५६ महिलाएं और १५ किन्नर वैâदी शामिल हैं। राज्य की सभी जेलें खचाखच भरी हुई हैं, जिसमें मुख्य रूप से मुंबई, ठाणे, यरवदा और नागपुर सेंट्रल जेल शामिल हैं। विधानमंडल सत्र में कुछ विधायकों ने मुंबई जेल में क्षमता से ३२५ फीसदी, ठाणे जेल में २८८ फीसदी, यरवदा में १८० फीसदी और नागपुर जेल में ५६ फीसदी कैदियों के बंद होने का मुद्दा उठाया था। जिला स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि विभिन्न जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने और उचित स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलने के कारण कई कैदी चर्म रोग से पीड़ित हैं। इसके साथ ही वे मानसिक रोगों के भी शिकार हो रहे हैं।
अमरावती सेंट्रल जेल में सबसे अधिक वैâदी मानसिक रोगी
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, अमरावती सेंट्रल जेल में मानसिक रूप से बीमार मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा ९७४ है, उसके बाद ठाणे सेंट्रल जेल में २०० मनोरोगी कैदी हैं। पिछले महीने यह पाया गया था कि मानसिक बीमारी के इलाज के लिए दवाएं कम मात्रा में उपलब्ध हैं। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने कहा कि जेल प्रशासन दवाओं की उपलब्धता पर नजर रख रहा है और यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है कि वैâदियों को उचित चिकित्सा सुविधाएं मिलें। ठाणे के बाद पालघर में १५० और नागपुर सेंट्रल जेल में ११४ मनोरोग रोगी हैं। रायगड जेल में १०९ और यवतमाल जिला जेल में ८६ मनोरोग रोगी हैं। अकोला में ५४ मनोरोगी कैदी हैं, जबकि लातूर और जलगांव की जेलों में क्रमश: ५६ और ३८ मनोरोगी कैदी हैं। नासिक जेल में ५० मनोरोगी कैदी हैं। इसी तरह मुंबई के यरवदा और तलोजा सेंट्रल जेल में मनोरोगी कैदी के बारे में बार-बार अनुरोध के बावजूद स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों से जानकारी नहीं मिल सकी है। हालांकि, इन दोनों सेंट्रल जेलों में मानसिक रूप से बीमार कैदी की एक बड़ी संख्या है। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार, इनमें से अधिकांश वैâदी पहले से ही नशे के आदी हैं, जिसका असर उनके दिमाग पर पड़ रहा है और वे मानसिक रोगों के शिकार हो रहे हैं।
ठाणे सेंट्रल जेल में ६०० महिला कैदी
ठाणे सेंट्रल जेल में ६०० से अधिक महिला कैदी हैं और उनमें से सौ से अधिक का मानसिक बीमारियों का इलाज चल रहा है। इनमें से कई महिलाएं अवसादग्रस्त पाई गई हैं। हर महिला सेल में छह से आठ महिला वैâदी हैं। कई महिलाएं अपर्याप्त जगह और गंदगी के कारण भी नींद की कमी से पीड़ित होती हैं। स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि महिला कैदीयों की स्थिति अन्य जेलों में भी ऐसी ही है। गंभीर बात यह है कि मानसिक रोगों के इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास पर्याप्त संख्या में डॉक्टर भी नहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत मनोचिकित्सक और अन्य कर्मचारियों के पद बड़े पैमाने पर रिक्त पड़े हैं।
अक्सर इन मनोरोगी कैदियों को नियमित आधार पर कुछ दवाएं देने की आवश्यकता होती है। अगर कैदियों को दवा नहीं मिलती तो वे उत्तेजित होकर चिल्लाने लगते हैं। इतना ही नहीं, कभी-कभी ये हिंसक भी हो जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि इस वजह से उन्हें दूसरी दवाएं दी जाती हैं, क्योंकि उनके पास वह दवा नहीं है, जिसकी उन्हें जरूरत है। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग इस पर सीधे तौर पर बोलने को तैयार नहीं है। जेल नियमों के मुताबिक, जेलों में आनेवाले प्रत्येक कैदी का मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण कराना अनिवार्य है। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने कहा कि डॉक्टरों की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण ऐसी जांच अक्सर नहीं की जाती हैं।