अजय भट्टाचार्य
बृहदारण्यकोपनिषद् (१.३.२८) का सर्वविदित मंत्र है जिसे पवमान मंत्र भी कहते हैं। यह मंत्र इस प्रकार है-ॐ असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्मामृतं गमय।।
इसका अर्थ है कि हे प्रभु! मुझे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।।
जाहिर है असत्य से सत्य की यह यात्रा बिना प्रभुकृपा के संभव नहीं है। आपने हमने सब ने सत्यनारायण भगवान की कथा सुनी है, जिसमें धन कमाकर लौटे वणिक से जब सत्यनारायण भगवान ब्राह्मण वेश में भिक्षा मांगते हैं तब वह वणिक स्वर्ण-रत्नों से भरी अपनी नाव की तरफ इशारा करके बोलता है कि महाराज इस नाव में लता-पात्र यानी घास-फूस भरी है। तब भगवान ने ब्राह्मण वेश में उस वणिक से कहा कि हे वणिक तुम्हारे वचन सत्य हों। ब्राह्मण के जाने के बाद वणिक ने अपनी नाव पर पड़े पर्दे को हटाकर देखा तो सारा धन घास-फूस में बदल चुका था। आगे क्या हुआ यह आप सभी जानते हैं, न भी जानते हों तो अगली बार कहीं सत्यनारायण की कथा हो तो अवश्य सुनें, ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे।
बार-बार पराजित होने के बाद असत्य ने भगवान सत्यनारायण से प्रार्थना की कि प्रभो मैं किस प्रकार आपकी माया से मुक्त होकर स्थापित हो सकूंगा? भगवान ने उत्तर दिया, ‘असत्य कितने भी रूप धारण कर ले, कितना भी वाग्विलास कर ले उसका सत्य बाहर आकर ही रहेगा। इसलिए हे असत्त्य सत्य पर विजय पाने की कल्पना मत करो। तुमसे भी बड़े-बड़े असत्य अवतार मेरी माया रचित धरती पर हुए हैं, पर वे कभी सत्य की तुला पर टिक नहीं सके। कलियुग में भले तुम्हारा कुछ भला हो मगर तुमसे भी बड़े असत्यदेव उत्पन्न होंगे जो तुम्हारा अहंकार तोड़ देंगे। यह सुनकर असत्य बहुत परेशान हुआ। युगों पश्चात असत्यनारायण रूप बदलकर २१वीं सदी में एकदा जंबुद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्ते गुर्जर प्रदेशे विचरण कर रहे थे। तभी उन्होंने सुना कि एक नये अवतारी के गुणगान हो रहे हैं। उनके उद्भव के साथ व्हॉट्सऐप यूनिवर्सिटी का जन्म हुआ जिसमें उनसे संबंधित किस्सों-कथाओं के नए-नए संस्करण संग्रहित थे। उनमें उनके गांव के तालाब में मगरमच्छ से उनकी कुश्ती से लेकर न बने रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने की बाल लीलाओं की कथाएं थीं। उनके युवाकाल में ३५ वर्ष भिक्षाटन से लेकर हिमालय में गुफा ध्यान के आध्यात्मिक दृष्टांत भी संकलित थे/हैं। असत्य भौंचक था! उसने असत्य की कई कथाएं पुरातन ग्रंथों में पढ़ी थीं मगर इतनी ऊंची-ऊंची फेक कथाओं से उसका पाला नहीं पड़ा था। उसने मन ही मन अपने आधुनिक उच्चावतार को प्रणाम किया और वापस ॐ असतो मा सद्गमय की दिशा पकड़ी। सत्यनारायण के सामने करबद्ध अवस्था में असत्य बोला, ‘भगवन क्या इनका भी हमारी तरह असत्य उजागर होगा?’ भगवन बोले, ‘अवश्य।’
कहावत है कि जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था। अब भारत में इस मुहावरे ने समय-समय पर रूपांतरण किया है। करीब सात साल पहले जब नोट बंदी लागू हुई थी और जनता नोट बदलने के लिए बैंकों के बाहर कतार में खड़ी थी तब हमारे युग के स्वयंभू दिव्यावतार जापान निकल गए थे। तीन महीने पहले जैसे ही दोहजारी नोट वापसी की घोषणा का सुअवसर रिजर्व बैंक को मिला तब भी महामानव जापान की यात्रा पर थे। और जब मणिपुर जल रहा था/है तब हमारे अवतारी महामानव अमेरिका में शुद्ध गपोले सुनाने गए थे। वहां भारतीयों के एक कार्यक्रम को संबोधित करते उनके श्रीमुख ने जो जानकारी दी उससे समस्त आधुनिक भक्त समाज में आनंद की लहर छा गई। वे बोले कि भारत में हर हफ्ते एक यूनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) बन रही है और हर साल एक आईआईटी/आईआईएम बन रहे हैं।
यही बात उनके श्रीमुख से जापान में भी उच्चरित हुई। फिर उनको लगा कि अमेरिका/जापान में उन्होंने जो दिव्य उपलब्धियां गिनाई हैं वे तो भारत से संबंधित हैं। लिहाजा, भारत के प्रधानसेवक ने वही बात भारत में दिल्ली विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह मे भी रिकार्डेड टेप की तरह दोहरा दी। कसम से उनका सीना ५६ इंच का हो न हो अपन का सीना यह उपलब्धि सुनकर फूलकर ५६ इंच होता उससे पहले ही भारत सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री ने इसी बुधवार को सदन में लिखित में बताया कि पिछले पांच ५ वर्षों से कोई आईआईटी/आईआईएम नहीं बनाया गया है। शिक्षामंत्री को ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योंकि इससे उनके जापान-अमेरिका में किए गए बड़े-बड़े दावों की धज्जियां उड़ गई हैं!