अजय भट्टाचार्य
पिछले दस साल से उपलब्धियों का श्रेय बंट रहा था। सबका कद घट रहा था। एक ही आदमी लपक रहा था। एक ही चेहरा चमक रहा था। इधर से थैंक यू, उधर से धन्यवाद, शुक्रिया..! सड़क, संसद, रेल, डिब्बा, पटरी, प्लाजा, पुल, नल सबका श्रेय एक ही जेब में जा रहा था। मंतरी, संतरी, जंतरी, तंतरी सबकी तरफ से थैंक यू फलाने जी! वाह..! कमाल कर दिया। आप हो तो मुमकिन है। हमारे अहोभाग्य कि हमने जीते जी आपके रूप में अवतारी आत्मा के दर्शन कर लिए। आप न बताते कि आप नॉन बायोलॉजिकल ढंग से उत्पन्न अर्थात प्रगट हुए, तो हम आपकी महिमा नहीं जान पाते। अद्भुत, अद्भुत चामत्कारिक अनुभव और दृश्य था। आज मंदिर, सड़क, संसद, पुल, नल, जल, थल, आकाश, पाताल सब जगह से श्रेय टपक रहा है, लेकिन गजब यह है कि इस श्रेय को लेने के लिए कोई क्यों नहीं लपक रहा..! यूक्रेन-रूस युद्ध रुकवाने का दावा करने वाले अवतारीलाल के चेले-चपाटे इंतजार कर रहे हैं कि बांग्लादेश में शांति बहाल हो और यहां वाट्सऐप यूनिवर्सिटी ज्ञान दे सके कि फलानेजी ने बांग्लादेश में शांति स्थापित करने में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दुनिया में अपने विश्वगुरु होने का लोहा मनवा लिया है। भले मणिपुर अभी भी सुलग /जल रहा हो, बांग्लादेश में शांति के उनके प्रयास जारी हैं / रहने चाहिए। कम से कम श्रेय लेने का अवसर तो न चूके!
अब कोई बिहार के अररिया जिले के रानीगंज के एक गांव में खुले मैदान में ३५ फुट लंबे पुल की पीड़ा समझे, जिसके दोनों ओर सड़क का कोई निशान नहीं है। खेत पर खड़ा पुल यही सोच रहा होगा कि काश मेरे भी शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक का श्रेय श्रीजी ले लेते तो मुझे इतना अपमानित नहीं होना पड़ता। बताइए पुल का काम जोड़ना होता है, मगर यहां सिर्फ पुल है, जुड़ने-जोड़ने और पार जाने के लिए नदी-नाला नहीं है। किसी फिल्म में नायिका ने गीत इसी पुल की पीड़ा को समर्पित किया होगा कि नदी नारे न जइयो श्याम पईयां पड़ूं। मजा यह है कि पुल बनकर तैयार है, लोग गुस्से में हैं कि खेत पर पुल बनाने का उच्च विचार किस मूर्धन्य के दिमाग में अतार्किक (नॉन लॉजिकली) ढंग से उत्पन्न हुआ। जिला प्रशासन ने ग्रामीण निर्माण विभाग से रिपोर्ट मांगी है। मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत परमानंदपुर गांव में २.५ किलोमीटर लंबी सड़क पर काम शुरू हो गया था, लेकिन स्थानीय किसानों से जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी। पुल इस परियोजना का हिस्सा होना था और इसका उद्देश्य सड़क बनने के बाद भी खेत के एक तरफ से दूसरी तरफ पानी का प्रवाह बनाए रखना था। भूमि अधिग्रहण करने और पहले सड़क निर्माण शुरू करने के बजाय, ग्रामीण निर्माण विभाग ने अधिग्रहित भूमि के एक टुकड़े पर ३५ फुट का पुल बना दिया, जबकि तर्कसंगत तरीके से परियोजना को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। गांव के निवासियों को इस परियोजना के बारे में बहुत कम जानकारी थी और वे खेत के बीच में पुल के निर्माण से हैरान थे। यह पुल करीब छह महीने पहले बना था। लोगों को लगा कि यह किसी बड़ी परियोजना का हिस्सा हो सकता है, लेकिन जब आगे कोई काम नहीं हुआ और भविष्य की किसी योजना का भी कोई संकेत नहीं मिला, तो इसे सरकार के संज्ञान में लाना जरूरी था। पूरा सरकारी अमला अपने स्तर पर खेत में उग आए पुल से अपना पीछा छुड़ाने में जुटा हुआ है। श्रेय लेने में अग्रणी अवतारी पुरुष फिलहाल, उत्तर प्रदेश में उठे पार्टीगत बवंडर को शांत होने का श्रेय लेने का इंतजार कर रहे हैं और उनके सभी दरबारी लाल भी हे देवतुल्य आपके प्रताप से सब ठीक हो गया है, कहने का श्रेय लेने की प्रतीक्षा में हैं। अररिया खेत में खड़ा पुल चाह रहा होगा कि जहां इतने पुल बिहार में गिर चुके हैं, मुझे भी खेत में गिर जाना चाहिए। ताकि गा सकूं कि तेरी मिटटी में मिल जावां और हां चलते-चलते यह सवाल भी दिमाग में आ गया कि विनेश फोगाट ओलिंपिक से गोल्ड मेडल लाने से चूकने का श्रेय किसे दिया जाए? विनेश को सिल्वर मेडल देने की मांग भी अमेरिकी पहलवान ने की, भारतीय ने नहीं। इसका श्रेय किसे दिया जाए? लगता है श्रेय लावारिस हो गया है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)