अजय भट्टाचार्य
एक आदमी कटी हुई मुर्गी लेकर कसाई की दुकान पर आया और कहा कि भाई जरा इस मुर्गी को काट कर मुझे दे दो।
कसाई ने मुर्गी रखकर आधे घंटे बाद आने को कहा। थोड़ी देर बाद ही शहर का काजी कसाई की दुकान पर आ गया और कसाई से कहा कि ये मुर्गी मुझे दे दो। कसाई ने मुर्गी किसी और की है कहकर काजी को देने से मना कर दिया। तब काजी ने कहा कि कोई बात नहीं, ये मुझे दे दो मालिक आए तो कहना कि मुर्गी उड़ गई है।
कसाई बोला – ऐसा कहने का भला क्या फायदा होगा? कटी हुई मुर्गी वैâसे उड़ सकती है?
काजी बोला कि मैं जो कहता हूं उसे गौर से सुनो! बस ये मुर्गी मुझे दे दो। वह अंतत: तुम्हारे खिलाफ मुकदमा लेकर मेरे पास ही आएगा। कसाई ने मुर्गी काजी को पकड़ा दी।
मुर्गी के मालिक के आने पर कसाई ने मुर्गी उड़ जाने की बात कही। मुर्गी का मालिक हैरान कि मरी हुई मुर्गी वैâसे उड़ गई।
दोनों काजी के पास पहुंचे।
दोनों ने रास्ते में एक मुसलमान और यहूदी को लड़ते देखा। छुड़ाने की कोशिश में कसाई की उंगली यहूदी की आंख में जा लगी और यहूदी की आंख खराब हो गई। लोगो ने कसाई को पकड़ लिया और कहा कि अदालत लेकर जाएंगे। अब कसाई पर दो मुकदमे बन गए।
जब लोग कसाई को लेकर अदालत के करीब पहुंच गए तो कसाई अपने आपको छुड़ाकर भागने में कामयाब हो गया। मगर लोगों के पीछा करने पर करीबी मस्जिद में दाखिल होकर मीनारे पर चढ़ गया। लोग जब उसको पकड़ने के लिए मीनार पर चढ़ने लगे तो उसने छलांग लगाई तो एक बूढ़े आदमी पर गिर गया, जिससे वह बूढ़ा मर गया। अब उस बूढ़े के बेटे ने भी लोगों के साथ मिलकर उसको पकड़ लिया और सब उसको लेकर काजी के पास पहुंच गए।
काजी अपने सामने कसाई को देखकर हंस पड़ा, क्योंकि उसे मुर्गी याद आ गई। मगर बाकी दो केसों की जानकारी उसे नहीं थी। जब काजी को तीनों केसों के बारे में बताया गया तो उसने सिर पकड़ लिया। उसके बाद चंद किताबों को उल्टा-पुल्टा और कहा कि हम तीनों मुकदमात का एक के बाद एक पैâसला सुनाते हैं।
मुर्गी मालिक से काजी ने पूछा- ‘तुम्हारा कसाई पर दावा क्या है?
मुर्गी मालिक : मेरी मुर्गी चुराई है, क्योंके मैंने काट करके इसको दी थी, ये कहता है कि मुर्गी उड़ गई है। काजी साहब! मुर्दा मुर्गी वैâसे उड़ सकती है?
काज़ी : क्या तुम अल्लाह और उसकी कुदरत पर ईमान रखते हो?
मुर्गी मालिक : जी हां, क्यों नहीं काजी साहब।
काजी : क्या अल्लाह तआला बोसीदा हड्डियों को दोबारा जिंदा करने पर कादिर नहीं? तुम्हारी मुर्गी का जिंदा होकर उड़ना भला क्या मुश्किल है? ये सुनकर मुर्गी का मालिक खामोश हो गया और उसने अपना केस वापस ले लिया।
फिर काजी के सामने यहूदी को पेश किया गया तो उसने अर्ज किया कि काजी साहब इसने मेरी आंख में उंगली मारी है, जिससे मेरी आंख खराब हो गई। मैं भी इसकी आंख में उंगली मारकर इसकी आंख खराब करना चाहता हूं।
काजी ने थोड़ी देर सोचकर कहा: ‘मुसलमान पर गैर मुस्लिम की नीयत निसफ है इसलिए पहले ये मुसलमान तुम्हारी दूसरी९ आंख भी फोड़ेगा, उसके बाद तुम इसकी एक आंख फोड़ देना। नतीजतन यहूदी भी अपना केस वापस लेकर चलता बना।
अब मरनेवाले बूढ़े के बेटे ने काजी से कहा कि इसने मेरे बाप पर छलांग लगाई, जिससे वह मर गया।
काजी बोला : ऐसा करो, तुम उसी मीनारे पर चढ़ जाओ और कसाई पर उसी तरह छलांग लगा दो, जिस तरह कसाई ने तुम्हारे बाप पर छलांग लगाई थी।
नौजवान ने कहा : काजी साहब, अगर ये दाएं-बाएं हो गया, तब तो मैं जमीन पर गिरकर मर जाऊंगा। काजी ने कहा : ये मेरा मसला नही है, मेरा काम इंसाफ करना है, तुम्हारा बाप दाएं-बाएं क्यों नहीं हुआ?
मतलब साफ है कि अगर आपके पास काजी को देने के लिए मुर्गी है तो फिर काजी भी आपको बचाने का हर हुनर जानता है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)