मुख्यपृष्ठस्तंभउड़नछू : अशांति में शांति

उड़नछू : अशांति में शांति

अजय भट्टाचार्य
एक आदमी शराब पीकर घर लौटा। उसके लड़खड़ाते कदम देखकर उसके बीबी-बच्चे समझ गए कि जनाब शराब पिए हुए हैं, इसीलिए घर में कोई कुछ भी न बोला। सुबह ही बड़े लड़के ने शहर जाकर पढ़ने को खर्च मांगा था, बीबी ने भी घर में आमदनी और खर्च मे संतुलन न बिठा पाने के कारण आय बढ़ाने के लिए उससे बोला था। आदमी दिनभर इन झंझटों से बच निकलने के उपाय खोजता रहा और शराब पीकर घर लौटा।
घर में सब तरफ शांति देखकर वह बेचैन हुआ और लड़के से बोला, ‘क्यों बे तुमको बहुत चर्बी सवार हो गई है, बाप जिंदगीभर गधे पर सामान ढो-ढोकर घर का खर्च चला रहा है और तुम शहर जाकर पढ़ाई करोगे।‘ लड़का समझ चुका था पिता शराब के नशे में हैं इसीलिए वो कुछ बोला नहीं। शांत रहा, अब तो यह आदमी और बैचैन हो गया और उसने लड़के के एक झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया। लड़का रोने लगा, तभी उसकी पत्नी बीच में आकर बोली, तो वह बोला, ‘आ गई मालकिन, क्यों सवेरे घर की आमदनी बढाओ, महंगाई बहुत है, घर खर्च चलाने में दिक्कत हो रही है न?’ पत्नी ने भी संयत होते हुए उत्तर दिया, ‘एक तो घर में खाने की वैसे ही किल्लत है और ऊपर से तुम शराब पीकर आए हो और इस बेचारे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा, जो तुमने इसको थप्पड़ मार दिया।‘
बात धीरे-धीरे बढ़ती गई और फिर अचानक उस आदमी ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू करने के साथ अपने कपड़े फाड़ना शुरू कर दिया। अब पूरा मोहल्ला उसके दरवाजे पर। लोगों ने देखा कि वह बचाओ-बचाओ चिल्ला रहा था और उसके सब कपड़े फटे थे। एक पड़ोसी उसको बचाव की मुद्रा में घर से बाहर निकाल लाया और पूछा कि क्या हुआ, तुम्हारी ये हालत किसने बनाई? आदमी अपने घर की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘इस घर में सब जेहादी, अलगाववादी, नक्सली, अर्बन नक्सली, कांगी, वामी रहते हैं, ये सब कहते है हमें पैसा दो। लड़के को शहर जाकर पढ़ना है, बीबी को घर चलाने में दिक्कत है। मैंने कहा कि देखो हम गधे से सामान ढो-ढोकर किसी तरह से घर चला रहे है और पैसे कहां से दूं तो इन लोगों ने मेरा यह हाल बना दिया।
दूर खड़ा उस आदमी का एक दोस्त यह सब देख रहा था। जब सब चले गए तो दोस्त ने पूछा, ‘सच बताओ बात क्या है। तब वह आदमी बोला, ‘जब शांति होती है तो लोग जीवन स्तर ऊंचा करने की सोचते हैं। अशांति में जान ही बच जाए बहुत होता है इसीलिए घर-परिवार में ऐसे उपद्रव करने पड़ते हैं। देश में गड़े मुर्दे भी इसलिए उखाड़े जा रहे हैं, ताकि नागरिक मस्जिद-मजार के नीचे मंदिर मूर्ति में उलझा रहे और सरकार से सवाल करने की बजाय खुद के हिंदू-मुस्लिम होने पर ही सोचता रहे। सरकार को अशांति में अपनी शांति नजर आती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

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