अजय भट्टाचार्य
भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम भारतीय मनीषा में मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं। भगवान राम की लीलायात्रा में एक प्रसंग आता है शबरी का। शबरी के आश्रम पहुंचने और शबरी द्वारा भगवान राम को झूठे बेर खिलाने की कथा सभी जानते हैं। राम जब बेर खा चुके तब-
पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी।
प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी।।
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी।
अधम जाति मैं जड़मति भारी।।
अधम ते अधम अधम अति नारी।
तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी।।
फिर वे हाथ जोड़कर आगे खड़ी हो गर्इं। प्रभु को देखकर उनका प्रेम अत्यंत बढ़ गया। (उन्होंने कहा-) मैं किस प्रकार आपकी स्तुति करूं? मैं नीच जाति की और अत्यंत मूढ़ बुद्धि हूं। जो अधम से भी अधम हैं, स्त्रियां उनमें भी अत्यंत अधम हैं और उनमें भी हे पापनाशन! मैं मंदबुद्धि हूं। तब भगवान राम ने जो उत्तर दिया वही किसी भी धर्म का सार कहा जा सकता है, भगवान बोले-
कह रघुपति सुनु भामिनि बाता।
मानउँ एक भगति कर नाता।।
जाति-पाँति कुल धर्म बड़ाई।
धन बल परिजन गुन चतुराई।।
भगति हीन नर सोहइ वैâसा।
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।।
श्री रघुपति अर्थात राम ने कहा – हे भामिनि! मेरी बात सुन! मैं तो केवल एक भक्ति ही का संबंध मानता हूं। जाति-पाति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुंब, गुण और चतुरता- इन सबके होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य वैâसा लगता है, जैसे जलहीन बादल (शोभाहीन) दिखाई पड़ता है। इसके बाद प्रभु श्रीराम ने नवधा भक्ति के बारे में शबरी को ज्ञान दिया। शबरी की भक्ति प्रतीक्षा भक्ति है, जिसने अपने इष्ट से मिलने के लिए अपने जीवन को एक कुटिया में समेट लिया क्योंकि शबरी के गुरु ने उससे कहा था कि एक दिन राम इसी मार्ग से गुजरेंगें, जहां तुम्हारा निवास है। मतलब शबरी ने अपने इष्ट को खोजने के लिए जंगल-जमीन नहीं खोदी।
हाल ही में ईश्वर को खोजने की प्रक्रिया में जो खुदाई अभियान शुरू हुआ है, उसकी एक झांकी मध्य प्रदेश के सागर में देखने को मिला है। धर्मस्थल विवाद को लेकर हिंसा हुई है कि असल में किसका है- हिंदू अपना बता रहे है जैन अपना।
ताजी हिंसा पर हिंदू संगठनों का आरोप है कि जैन युवकों ने तोड़फोड़ की है, वहीं एक चैनल बता रहा है कि मुसलमानों और ईसाइयों के बाद अब जैन भी हिंदू कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं।
यही वह खतरा है, जिसके बारे में हम जैसे लोग आगाह करते रहते हैं कि हिंसा के दुष्चक्र की यही खासियत होती है- आप सिर्फ शुरू कर सकते हैं। रोकना किसी के बस में नहीं होता! अभी एकाध महीने पहले ही जैन ‘मुनि’ विनम्र सागर ने हिंदुओं की घटती आबादी पर बड़ी चिंता जताई थी। बोले थे हम दो, हमारे दो का नारा इंदिरा गांधी का है- इसको बदलने की जरूरत है! पता नहीं अब भी हिंदुओं की जनसंख्या पर ही चिंतित हैं याष्ठ
तब तक पेश है एक शेर:
यहां भी खुदा है वहां भी खुदा है
जहां नहीं खुदा है वहां भी खुदा है
हिंदू कट्टरपंथी पहुंच रहे हैं। हिंदुत्व एक्सप्रेस सागर के जैनियों तो पहुंच चुकी है। अगला नंबर किसका होगा? यहां पर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ को समझना होगा। वसुधैव कुटुंबकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुंबकम)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम् — (महोपनिषद्, अध्याय ६, मंत्र ७१)
अर्थ – यह (मेरा) बंधु है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त (संकुचित मन) वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (संपूर्ण धरती ही परिवार है।
यही सनातन धर्म का मूल संस्कार और विचारधारा है। बाकी आजकल के अंध भक्त सनातनी अपने ही देशवासियों से नफरत करते है और मुगलों की संतान और न मालूम क्या-क्या अलंकारों से पुकारते हैं, अब आप बताए क्या ये वास्तव में सनातनी कहलाने के लायक हैं?
या तो कह दे हम शास्त्रों को नहीं मानते या तो फिर कह दें कि हम मतलब के हिसाब से शास्त्रों के अनुवाद और उपयोग को मानने वाले सनातनी हैं। मुंबई में हिंदुत्व को प्रदर्शित करनेवाला मेला चल रहा है। मेले का उद्घाटन पार्टी चोर गिरोह के मुखिया ने किया। गोस्वामी तुलसीदास ने उत्तरकांड में लिखा है-
मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा।
पंडित सोइ जो गाल बजावा।।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई।
ता कहुँ संत कहइ सब कोई।।
अर्थात जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरंभ करता (आडंबर रचता) है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं। फर्जी हिंदुत्व में ऐसे लोगों की भरमार है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)