अनायास काया हल्की हो गई
कपास के गोले जैसी अनुभूति हुई,
मैं बादलों सी उड़ने लगी
वायु मंडल में।
नासिका ने दैवीय कुसुम की
महक ग्रहण की,
गात पर होने लगी पुष्पित
पंखुड़ियों की वृष्टि।
असीमित आंनद भर गया मुझमें,
देह मेरी कांती से दमक उठी।
मंदिर की घंटियों का निनाद
आत्मा को तृप्त करने लगा,
क्षण भर में तन का आवरण
कसमसाने लगा
जैसे सर्प केंचुली से निकलने का
प्रयास कर रहा है।
विस्मित नयनों में अंधकार छा गया,
झनझनाहट से तन अस्थिर होने लगा,
तपन, दर्द, मोह रिश्तों का
झंझावात आ गया।
हंस उड़ गया अकेला
शांत शरीर धरा पर रह गया,
यह है मेरा अंतिम शाश्वत
सत्य से साक्षात्कार।
-बेला विरदी