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लावारिस, नाजायज मतदान!

देश के गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति मुर्मू ने संदेश दिया कि गणतांत्रिक मूल्यों का प्रतिबिंब हमारी संविधान सभा की संरचना में दिखाई देता है। न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व आदि हमारी विरासत का हिस्सा हैं। सच तो यह है कि हाल में ऐसे भाषणों का कोई मतलब नहीं रहा है और इसके लिए हमारे राष्ट्रपति को दोष देने का कोई मतलब नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि पिछले दस वर्षों में संविधान के किसी भी मूल्य का सम्मान नहीं किया गया है। राष्ट्रपति संविधान के संरक्षक हैं, लेकिन क्या उन्होंने संरक्षक का काम ईमानदारी से किया है? राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आधी रात में नींद से जगाकर इमर्जेंसी के आदेश पर हस्ताक्षर कराए गए। आज यह सब खुलेआम, दिनदहाड़े चल रहा है। राष्ट्रपति भवन तब भी रबर स्टैंप था और अब भी रबर स्टैंप है इसलिए संविधान के मूल्यों को तोड़कर शासन चलाया जा रहा है। जहां  केंद्रीय चुनाव आयोग ही संविधान के मूल्यों को कायम नहीं रखता और राष्ट्रपति चुनाव आयोग के बाबत शिकायतों को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं, वहां दूसरों को क्या दोष दें? महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में घपले-घोटाले हुए हैं। उसके बिना भाजपा और उसके झूठे लोमड़ी-भेड़िया जीत नहीं सकते। पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने सबूत, आंकड़े, डेटा पेश किए। कांग्रेस के डेटा एनालिटिक्स विभाग के अध्यक्ष प्रवीण चक्रवर्ती ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर जो सवाल उठाए हैं, वही सवाल महाराष्ट्र के आम मतदाता के जेहन में भी हैं। जब महाराष्ट्र में वयस्क पुरुषों और महिलाओं की कुल संख्या ९ करोड़ ५४ लाख है तो चुनाव आयोग के पास विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य में ९ करोड़ ७० लाख मतदाता कैसे हैं? उन्हीं आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में अचानक
१६ लाख वोटर बढ़े
दिखते हैं। उसका हिसाब-किताब कहीं नहीं है। पृथ्वीराज चव्हाण ने एक मुद्दा उठाया, वो ये कि जो मतदाता बढ़े हैं उनके वोट सिर्फ भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन (महायुति) को ही कैसे मिले? ४८ लाख नए वोटर पंजीकृत हुए, क्या उन सभी का वोट एक ही पार्टी को मिला? क्या ये मतदाता असली थे? क्या ये वोट आसमान से गिरे? क्या ये फर्जी वोटर थे? या फिर दूसरे राज्यों के लोगों का वोटर लिस्ट में घुसपैठ करवाकर वोट डलवाया गया? केवल भाजपा और उसके सहयोगियों को वोट बढ़े। वोटिंग इतनी सख्ती से कैसे हो सकती है? इसका जवाब कोई नहीं देता। अभ्यावेदन, प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग के पास गए, लेकिन ‘ऐसा हो सकता है’ या ‘कुछ भी संदेहास्पद नहीं’ जैसे गोलमाल जवाब दिए गए। सभी पार्टियों के लोग राष्ट्रपति के पास जाते हैं तो राष्ट्रपति इस पर बात करने और कार्रवाई करने को तैयार नहीं। धांधली करके चुनाव जीतना संविधान के किन मूल्यों में फिट बैठता है? यह गणतंत्र के किस मूल्य को दर्शाता है? राष्ट्रपति को इस सवाल का भान होना चाहिए। देश में सब कुछ फर्जी चल रहा है। गुजरात में सब कुछ नकली है। फर्जी अदालतें, फर्जी जज, फर्जी सीबीआई, फर्जी ईडी, फर्जी डिग्रियां ये सब पिछले कुछ दिनों में गुजरात की धरती पर हुआ और पाया गया इसलिए असली संविधान को ढककर नकली संविधान के आधार पर देश चलाया जा रहा है। जाली नोट बड़े पैमाने पर चलन में हैं। २०१४ के बाद देश को आजादी दिलाने का दावा करनेवाले ये लोग देश को वैâसे आगे ले जाएंगे? भारतीय जनता पार्टी के लोग झूठ बोलने और झूठ को सच समझाने में ‘उस्ताद’ हो गए हैं। देवेंद्र फडणवीस विदेशी निवेश लाने के लिए ‘दावोस’ गए थे। लौटते वक्त
पुणे-हैदराबाद की कंपनियों के साथ करार
कर वापस आए और घोषणा की कि उन्होंने १० लाख करोड़ रुपए के निवेश का करार किया है। यह फर्जी मतदाता, ईवीएम घोटाला जैसा दिखावा है। भारत में कोई संवैधानिक राज नहीं बचा है। संविधान का उल्लेख केवल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर भाषणों में किया जाता है। गणतंत्र दिवस पर ‘पद्म’ पुरस्कारों की घोषणा की गई। अधिकांश महत्वपूर्ण ‘पद्म’ पुरस्कार मरणोपरांत हैं। ये पुरस्कार संबंधित व्यक्ति के जीवित रहते भी दिए जा सकते हैं। लेकिन इस सरकार की नीति इंसान के जीवन में सुख और आनंद नहीं आने देने की है। जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसकी चिता पर शुद्ध घी और चंदन डालकर स्यापा करने वालों का ही यह प्रताप है। जो बातें संविधान, लोकतंत्र के दायरे में फिट नहीं बैठतीं, उन्हें अब सम्मान मिल रहा है और देश का हर चुनाव इसमें फंसा है। विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत वास्तविक पंजीकृत मतदाता से अधिक कैसे हो गया? एक बूथ पर ४११ मतदाताओं ने वोट डाले और ईवीएम खुलते ही ५२२ वोट कैसे हुए? इस प्रकार महाराष्ट्र के प्रत्येक बूथ में १००-१२५ अतिरिक्त वोट प्राप्त हुए और उसके मुताबिक, हर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में २५-३० हजार बेनामी, नाजायज, लावारिस वोट गिने गए। यह कैसे हो गया? अगर उनकी जीत का बाप लावारिस है तो यह चुनाव और उनकी जीत असंवैधानिक होगी। जब यह सब गला फाड़कर कहा जा रहा था, राष्ट्रपति भवन की दीवारें कठोरता से लोकतांत्रिक संविधान की हत्या की गवाह बनती रहीं। उसी राष्ट्रपति भवन से संविधान सभा के गणतांत्रिक मूल्यों पर संदेश का मिलना देश को आश्चर्यचकित कर गया। पहले ये बताइए कि महाराष्ट्र का लावारिस मतदान संविधान के किस मूल्य में फिट बैठता है!

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