महाराष्ट्र में ओलावृष्टि का प्रहार और बेमौसम की बारिश के कारण किसानों के अस्तित्व पर ही बन आई है। पिछले दो दिनों से बेमौसम बारिश ने राज्य में जगह-जगह हाहाकार मचा रखा है। ओलावृष्टि के झटके से हजारों हेक्टेयर के फल बाग बर्बाद हो गए हैं। खेत ओलों से पट गए हैं। कश्मीर और हिमाचल में बर्फबारी की तरह बर्फ की चादर बिछे होने जैसा दृश्य दिखाई दे रहा है। यही स्थिति उत्तर महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और विदर्भ के कई जिलों में भी दिखाई दे रही है। नासिक, नगर और बीड जिले में तो इस ओलावृष्टि का रूप रौद्र ही था। छत्रपति संभाजीनगर सहित मराठवाडा के जालना, लातूर, धाराशिव, नांदेड़, परभणी और हिंगोली जिले के कई स्थानों पर बेमौसम बारिश से फसलों और बागों को भारी नुकसान पहुंचा है। लगातार आनेवाली बेमौसम बारिश की वजह से मक्का, ज्वार, गेहूं, प्याज, चना जैसी फसलों को एक बार फिर नुकसान हुआ है। गोलियों की बौछार की तर्ज पर हुई ओलावृष्टि से खेत में तरबूजों और खरबूजों के चिथड़े उड़ गए। अंगूर के बाग धराशाई हो गए। बेमौसम बारिश से अंगूर के साथ-साथ केले और संतरे के बागों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। कोकण में जामुन, काजू, कोकम, आम को भी तगड़ा झटका लगा है। पिछले दो-ढाई महीने में बेमौसम बारिश ने किसानों को यह तीसरा झटका दिया है। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, पिछले दो दिनों में कुल १४ जिलों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का भारी झटका लगा है। बताया जाता है कि करीब २८ हजार हेक्टेयर फसल को नुकसान हुआ है, लेकिन हजारों हेक्टेयर में क्षतिग्रस्त क्षेत्रों का पंचनामा अब तक चिह्नित नहीं किया जा सका है। एक तरफ प्रकृति के प्रकोप का बढ़ता सिलसिला किसानों का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं है और दूसरी तरफ सरकार इस विपदा में किसानों के साथ मजबूती से खड़ी नहीं है। ऐसे दोहरे संकट में प्रदेश का बलीराजा फंसा हुआ है। मार्च महीने में राज्य के कई जिलों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने भारी नुकसान किया था। इस संकट से किसान वर्ग संभल भी नहीं पाया था कि अप्रैल महीने के पहले सप्ताह में ही तूफानी बारिश और ओलावृष्टि के भयानक झटके ने राज्य के कोने-कोने में फसलों, बागों व सब्जियों को भारी नुकसान पहुंचाया है। पिछले दो दिनों से ओलावृष्टि ने कहर बरपाया है, जबकि अभी भी मौसम विभाग ने दो से तीन दिनों तक बेमौसम बारिश की आशंका जताई है। इसके अलावा, अप्रैल के अंत तक फिर एक बार बेमौसम बारिश कहर बरपा सकती है, ऐसा कयास कुछ विशेषज्ञों ने लगाया है। दुर्भाग्य से, यदि यह पूर्वानुमान सच होता है तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि किसानों का क्या हाल होगा? हजारों रुपए की लागत से उगाई गई फसल, लाखों रुपए खर्च कर मेहनत से तैयार किए गए बागों को आंखों के सामने उजड़ते देख किसानों के आंसू छलकते हैं। लगातार दूसरे महीने आए बेमौसम संकट के कारण बलीराजा अवसाद की गर्त में धकेल दिए गए हैं। किसानों का ढाढ़स बढ़ाने, सहारा देने और प्रत्यक्ष नुकसान भरपाई देकर किसानों की आंखों का आंसू पोंछने का काम सरकार को करना चाहिए, यह नई सरकार का कर्तव्य है। लेकिन राजनीतिक मीन-मेख निकालने और विरोधियों को किसी अपराध में उलझाकर जेल में डाला जा सकता है, इस आशय की साजिश और दांव-पेच में ही इस सरकार का आधे से ज्यादा समय चला जाता है। बदले की राजनीति में रमे शासकों के पास किसानों की पीड़ा समझने, उनका दर्द जानने और किसानों के आंसू पोंछने का समय ही कहां होगा? मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश ने राज्य के ३० जिलों में एक लाख हेक्टेयर से अधिक फसल और बागों को नष्ट कर दिया। उसके बाद अप्रैल महीने में भी बेमौसम की तीसरी मार ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया है। जो उगाया और पक चुका है, उसका आधे से अधिक बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार से नष्ट हो जाता है और फसल हाथ आई उसका कोई मूल्य नहीं मिलता है, ऐसी किसानों की दयनीय स्थिति हो गई है। इसके पहले कि नुकसान-भरपाई की मदद सरकारी नियमों और फाइलों की यात्रा में कागजों पर अटकी हुई है और उसी में फिर बेमौसम का संकट गिरा है। इससे किसानों के मन में यह भावना प्रबल होती जा रही है कि अब हमारा कोई माई-बाप नहीं बचा है। किसानों को रामभरोसे छोड़कर मिंधे सरकार के राजा केवल अयोध्या में श्रीराम के सामने शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे। हर तरफ से हो रही आलोचना होते ही अयोध्या की यात्रा समाप्त होने के बाद अब मिंधे सरकार खेतों तक पहुंची है। यह देर से सूझी चतुराई है। जनता को बेसहारा छोड़कर यात्रा में जाना क्या इसे ही ‘राजधर्म’ कहा जाए? संकटकाल में प्रजा के साथ नहीं होना रामराज्य की अवधारणा में क्या फिट बैठता है? खेत में आनेवाले मिंधे सरकार से किसानों को अब ये सवाल अवश्य पूछना चाहिए!