मुख्यपृष्ठस्तंभउत्तराखंड और चुनाव : चुनाव बहिष्कार ने नींद उड़ाई

उत्तराखंड और चुनाव : चुनाव बहिष्कार ने नींद उड़ाई

मनमोहन सिंह
उत्तराखंड की पांचों सीटों पर पहले चरण में यानी १९ अप्रैल को मतदान होने जा रहा है। जहां एक तरफ राजनीतिक पार्टियां चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं, वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड के तमाम क्षेत्रों में चुनाव बहिष्कार भी देखा जा रहा है। इन घोषणाओं से चुनाव प्रबंधन में जुटे सरकारी अमले की पेशानी पर बल हैं। ग्रामीण चुनाव बहिष्कार करते हैं तो इसका फर्क न सिर्फ राजनीतिक दलों पर पड़ेगा, बल्कि मतदान फीसदी भी घट सकती है।
धुमाकोट के राजेश सिंह का कहना है कि सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याओं के दशकों से समाधान न हो पाने से परेशान जनता के सामने इसके सिवा और चारा भी नहीं है। अपनी बात सरकारी तंत्र तक पहुंचाने का यह सही अवसर लगता है। यही वजह है कि देहरादून, पौड़ी, चमोली जिले से लेकर ऊधमसिंह नगर और अल्मोड़ा तक कई स्थानों पर जनता अपने-अपने जन मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतर आई है और चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दे रही है।
गैरसैण की मंजुरानी कहती हैं, `लोकसभा चुनाव के बहाने पौड़ी से लेकर अल्मोड़ा तक गांवों और शहरों की तकलीफों का भी खुलासा हो रहा है। साथ ही सिस्टम की भी कलई खुली है कि लंबे समय तक उसने इन समस्याओं की परवाह नहीं की। यदि परवाह की होती तो लोग सड़कों पर उतरकर चुनाव बहिष्कार नहीं कर रहे होते।’
पौड़ी में `अपुणु गौ मुल्क विकास समिति’ के बैनर तले लोगों द्वारा चुनाव बहिष्कार की वजह एकेश्वर, बग्याली, अमरोड सड़क का कई वर्षों से डामरीकरण न होना है। यमकेश्वर विधानसभा में ३५ गांवों के लोग २४ साल से कौडिया किमसार मोटर मार्ग की समस्या का समाधान चाह रहे हैं। डोईवाला में तीन गांवों के लोग नाराज हैं कि आजादी के बाद से अब तक सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है।
कर्णप्रयाग में किमोली-पारतोली गांव लोग भी सड़क के डामरीकरण न होने से इतने नाराज हैं कि उन्होंने पोस्टर लगा दिए हैं कि उनके गांवों में कोई उम्मीदवार प्रवेश न करें। चमोली जिले के कई गांवों के लोग क्षेत्र में सड़कों की कमी के कारण चिकित्सा सुविधाएं मिलने में देरी को लेकर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए लोकसभा चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं। दरअसल, चुनावों के बहिष्कार का यह फैसला गांव वालों ने पिछले साल दिसंबर में कर दिया था। सड़कें न होने का सबसे ज्यादा खामियाजा बीमार लोगों को भुगतना पड़ता है।

क्या कहते हैं नेता?
हांलाकि, एक तरफ मतदाता चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस मामले में सियासी हलचल भी तेजी पर है। पिछले १० साल से केंद्र और ७ साल से राज्य में भाजपा की सरकार है। ये सरकार बड़ी-बड़ी बातें तो करती है, लेकिन आज भी प्रदेश के तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव बना हुआ है, जिसके चलते लोग चुनाव बहिष्कार पर उतर आए हैं। ये बातें भाजपा सरकार के विकास की पोल खोल रही है, ऐसा कहना है कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष मथुरा दत्त जोशी का। इस पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट कहते हैं, `भाजपा हमेशा से ही हर समस्या का समाधान करने में आगे रहती है, जिन जगहों से चुनाव बहिष्कार की बातें सामने आ रही है। उनकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। कभी-कभार तकनीकी दिक्कतों के चलते समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता लेकिन लोगों को मतदान करना चाहिए।’

 मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा
उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा है, लेकिन कुछ नहीं हुआ। पिछले दो सालों में दो महिलाओं ने अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही बच्चों को जन्म दिया, जिसके चलते आक्रोश उफान पर है। उनका साफ-साफ कहना है कि सड़क नहीं तो वोट नहीं। गनाई में ५५० से अधिक मतदाता हैं। गांव में अगर कोई बीमार हो जाता है तो ग्रामीणों को उसे कंधे पर उठाकर एंबुलेंस के लिए पातालगंगा बाजार तक ले जाना पड़ता है। इन इलाकों में सड़क कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

 पेयजल, सड़क, स्वास्थ्य की सुविधा नहीं
अल्मोड़ा में १५ गांवों के लोगों ने पेयजल, सड़क, स्वास्थ्य, बिजली और शिक्षा की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी है। सल्ट की ११ ग्राम पंचायतों के ग्रामीण झीपा-टनौला डबरा तक मोटरमार्ग पर डामरीकरण नहीं होने से नाराज हैं। सितारगंज में भूमि पर मालिकाना हक, पुलिस चौकी और उप चिकित्सालय की मांग को लेकर लोग गुस्से में हैं।

 सिर्फ आश्वासन ही मिला
पिथौरागढ़-बागेश्वर जिले की अंतिम सीमा पर स्थित ढनौलासेरा के ग्रामीणों ने फिर लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं करने की अपने गांव के मंदिर में कसम तक खा ली है। गांव में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य सहित विभिन्न समस्याओं का समाधान नहीं होने पर आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं करने की चेतावनी का पत्र डीएम को भेजा था। उसके बाद तहसीलदार सहित विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने गांव में बैठक कर समस्याओं का समाधान करने का भरोसा ग्रामीणों को दिया था। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होने से गुस्साए ग्रामीणों ने अब कसम खाई है कि जब तक गांव की समस्याओं का समाधान नहीं होता है, किसी भी मतदान में भाग नहीं लिया जाएगा।

 रोड नहीं तो वोट नहीं
मौजूदा स्थिति ये है कि एक जगह नहीं, बल्कि तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव बहिष्कार का बोलबाला दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर पहाड़ के तमाम क्षेत्रों में चुनाव बहिष्कार मतदाताओं को अपनी बात रखने, अपनी मांग रखने और सत्ताधारियों के खिलाफ अपना विरोध प्रकट करने का सबसे बड़ा हथियार लग रहा है। बुनियादी सुविधाओं के अलावा सबसे ज्यादा मामले सड़कों से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि अब उत्तराखंड के मतदाता `रोड नहीं तो वोट नहीं’ की बात कह रहे हैं।

 

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