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मुंबई यूनिवर्सिटी में पद रिक्त! पीजी विभाग में केवल १५ प्रोफेसरों के कंधों पर है छात्रों का भविष्य

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई यूनिवर्सिटी के पीजी विभाग में प्रोफेसरों के ६१ फीसदी से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं। एमयू द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर सहित स्वीकृत ३६८ में से केवल १४२ पद ही भरे गए हैं। इसमें प्रोफेसर पद की सबसे अधिक रिक्तियां हैं। यूनिवर्सिटी के पीजी विभाग में कुल ८७ स्वीकृत पद हैं, जबकि केवल १५ प्रोफेसर ही छात्रों के भविष्य को संवारने का काम कर रहे हैं। बताया गया है कि गुजराती भाषा विभाग को छोड़कर सभी ३४ विभागों में प्रोफेसर के लिए कम से कम एक पद है। साथ ही यह भी बताया गया है कि २२ विभाग ऐसे हैं, जिसमें एक भी पूर्णकालिक प्रोफेसर नहीं हैं। दूसरी तरफ एसोसिएट प्रोफेसरों के लिए १२१ दों में से केवल ४० पद भरे हुए हैं। इसी तरह सहायक प्रोफेसरों के १६० पदों में से केवल ७३ पदों पर नियुक्तयां हुई हैं।

प्रोफेसरों को किया जाता है मजबूर
रिक्तियों के कारण विशेषज्ञता के क्षेत्र से बाहर के कई विषयों को पढ़ाने के लिए प्रोफेसरों को मजबूर होना पड़ रहा है। इसके अलावा उनका अधिकांश समय मास्टर के छात्रों को पढ़ाने में व्यतीत होता है। ऐसे में एमफिल और पीएचडी छात्रों के लिए बहुत कम समय बचता है। एक शिक्षक ने कहा कि साल २०१० से पहले लगभग ८-९ नियमित संकाय सदस्य हुआ करते थे, जो अब घटकर मात्र पांच रह गए हैं।
खत्म हो सकती है विरासत
एमयू के सीनेट सदस्यों का कहना है कि सरकार निजी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की उपेक्षा कर रही है। यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो विश्वविद्यालय की पूरी विरासत खत्म हो जाएगी और इसका सीधे अगली पीढ़ी को नुकसान होगा।

सरकार की मंजूरी का इंतजार

पिछले कुछ वर्षों में मुंबई यूनिवर्सिटी में बड़ी संख्या में प्रोफेसर सेवानिवृत्त हुए हैं, वहीं रिक्त सीटों के लिए नई नियुक्तियों पर राज्य सरकार की रोक लगी है। इस कारण बड़े पैमाने पर खाली हुए प्रोफेसरों के पद नहीं भरे गए हैं। एमयू के एक अधिकारी ने बताया कि यूनिवर्सिटी में १३६ शिक्षकों की नियुक्तियां अंतिम चरण में हैं, जिन्हें सरकार से मंजूरी का इंतजार है। अधिकारी ने बताया कि इस शैक्षणिक वर्ष से पीजी विभागों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० को लागू करना शुरू हो गया है। ऐसे में कर्मचारियों की भारी कमी मुंबई विश्वविद्यालय के अधिकारियों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। छात्रों और शिक्षकों का दावा है कि १६६ साल पुराने विश्वविद्यालय में नियमित शिक्षकों की कमी के कारण मास्टर कार्यक्रमों के साथ-साथ शोध पर भी असर पड़ा है।

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