विजयपथ

ना रुका है ना रुकेगा,ना थामा है न थमेगा।
इंतजार भले ही लंबा था,
बुनियादों पर हौसला बना था।
यह बाजी थी जिद्द की,
बरसों से समेटे हुए उम्मीद की।
लक्ष्य पर खरा उतरना था,
क्योंकि विश्व विजेता बना था।
घाव गहरे थे,
अंत समय था कठिन।
नामुमकिन सा था कुछ पल,
ना हटा और हो गया मुमकिन।
प्रार्थनाओं का दौर था,
स्वयं की प्रतिभाओं को आंकना था।
१४० करोड़ देशवासियों का स्वप्न था,
बारबाडोस में तिरंगा गाड़ना था।
सीखा है आज हमने विश्वास और संयम का पाठ,
जश्न में डूबा हुआ भारत देश और करोड़ों धड़कनों की आस।
आगे भी लहराना है देश के नाम का परचम,
लक्ष्य पर खरा उतरना था,
क्योंकि विश्व विजेता बना था।

– मानसी श्रीवास्तव ‘शिवन्या’
मुंबई

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