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विकास मार्टम :ईवी आधे मन से क्यों? …इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन में खुद कमजोर है केंद्र

अनिल तिवारी

अब भी सरकारी विभागों, मंत्रियों के काफिलों और सार्वजनिक परिवहन में भारी तादाद में फॉसिल फ्यूल से चलनेवाले वाहन ही शामिल हैं। अब गडकरी भले ही यह दावा कर रहे हों कि भविष्य में स्क्रेप होनेवाले सरकारी वाहनों का स्थान ई-वाहन लेंगे, पर इसके हकीकत में बदलने पर भी शक है। जब तक इसके लिए पुख्ता कोई सरकारी नीति नहीं होगी और सरकार तमाम सरकारी वाहनों तथा देश के समस्त सार्वजनिक सड़क परिवहन को इलेक्ट्रिक नहीं करेगी, कार्बन उत्सर्जन पर नकेल कसने के मंसूबे पूरे नहीं हो पाएंगे। इन मंसूबों को पुख्ता आधार देने के लिए सरकार को एनर्जी कंजर्वेशन कानून को लागू करने से पहले खुद के लिए पुख्ता नीति बनानी होगी।

अभी कल ही खबर आई है कि केंद्र सरकार करीब ३,५०० नई ई-बसें खरीदने के लिए निविदा जारी कर सकती है। ये बसें देश के उन ९ शहरों में चलाई जाएंगी, जिनकी आबादी ४० लाख से अधिक है। नई निविदा के बाद इस योजना के तहत ई-बसों का लक्ष्य १० हजार से पार हो जाएगा। इस संबंध में सरकार ने तमाम दावे किए हैं और पुरजोर तरीके से यह जतलाने का प्रयास भी किया जा रहा है कि केंद्र देश में फॉसिल फ्यूल (पेट्रोल-डीजल) की खपत को नियंत्रित करने और कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाने के तमाम प्रयास कर रहा है और नई निविदा उसी प्रयास का एक विस्तार है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या वाकई केंद्र के ये प्रयास काफी हैं या इस मामले में भी सरकार की नीति पुख्ता नहीं है, बल्कि वो खुद ही इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन में कमजोर साबित हो रही है।
१० हजार से अधिक इलेक्ट्रिक बसों का आंकड़ा देखने में तो काफी बड़ा लगता है। परंतु जब आप १३०-१४० करोड़ की आबादी वाले देश में इस आंकड़े की ऊंचाई परखेंगे तो हकीकत खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी। हिंदुस्थान जैसे देश में कार्बन उत्सर्जन को काबू करने के लिए न तो १० हजार ई-बसें काफी हैं, न ही ४० लाख की आबादी से कम वाले शहरों को इससे दूर रखना उचित। केंद्र सरकार इस मुद्दे पर यदि गंभीरता से काम करना चाहती है तो उसे सबसे पहले उन शहरों में ई-बसों का संचालन सुनिश्चित करना होगा, जहां मेट्रो, ईएमयू या ट्रॉम व सबर्बन ट्रेनों जैसी कोई सुविधा नहीं है। यह कड़वी सच्चाई है कि देश में अपेक्षाकृत अधिक प्रदूषण छोटे शहरों से ही होता है, जहां धड़ल्ले से पेट्रोल-डीजल में मिलावट की जाती है और मिट्टी के तेल से वाहनों को दौड़ाया जाता है। ऐसे शहरों में न तो उपभोक्ता प्रदूषण की परवाह करते हैं न ही प्रशासन प्रदूषण पर नियंत्रण। यह देश की ज्वलंत समस्या है।
अभी पिछले वर्ष ही केंद्र सरकार संसद में एनर्जी कंजर्वेशन (अमेंडमेंट) बिल २०२२, लेकर आई थी। जिसमें कार्बन ट्रेडिंग, एनर्जी एफिशिएंसी और कार्बन एमिसन्स के कड़े मानदंड थोप दिए गए थे। इस पर विपक्ष ने आपत्ति भी उठाई थी और वो काफी हद तक जायज भी थी। बेशक, केंद्र सरकार कार्बन फुटप्रिंट को कम करना चाहती है, लेकिन इसके लिए उसे शुरुआत खुद से करनी चाहिए थी, यह वो हमेशा भूल जाती है। आज भी सरकारी विभागों में पारंपरिक जैविक र्इंधन से चलनेवाले वाहनों की भरमार है और धड़ल्ले से नए वाहनों को शामिल करने की प्रक्रिया जारी है। केंद्रीय सड़क परिवहन और महामार्ग मंत्री नीतिन गडकरी कई बार दावे कर चुके हैं कि प्रशासकीय अमलों के वाहन अब इलेक्ट्रिक में तब्दील हो रहे हैं पर हकीकत की जमीन पर वो तब्दीली आज तक नजर नहीं आई है। अब भी सरकारी विभागों, मंत्रियों के काफिलों और सार्वजनिक परिवहन में भारी तादाद में फॉसिल फ्यूल से चलनेवाले वाहन ही शामिल हैं। अब गडकरी भले ही यह दावा कर रहे हों कि भविष्य में स्क्रेप होनेवाले सरकारी वाहनों का स्थान ई-वाहन लेंगे, पर इसके हकीकत में बदलने पर भी शक है। जब तक इसके लिए पुख्ता कोई सरकारी नीति नहीं होगी और सरकार तमाम सरकारी वाहनों तथा देश के समस्त सार्वजनिक सड़क परिवहन को इलेक्ट्रिक नहीं करेगी, कार्बन उत्सर्जन पर नकेल कसने के मंसूबे पूरे नहीं हो पाएंगे। इन मंसूबों को पुख्ता आधार देने के लिए सरकार को एनर्जी कंजर्वेशन कानून को लागू करने से पहले खुद के लिए पुख्ता नीति बनानी होगी। अतीत में जिस तरह तमाम ऑटो-टैक्सियों को पेट्रोल-डीजल से सीएनजी-एलपीजी में तब्दील करने पर जोर दिया गया था, उसी तरह भविष्य में भी स्क्रेप होनेवाले ऑटो-टैक्सियों की जगह ई-व्हीकल आ सकें, इसे सुनिश्चित करना होगा। थ्री व्हीलर ऑटो की जगह क्वाड्रिसाइकिल या नैनो ई-कार के चार पहिया वाहनों को स्थान देना होगा। वहीं, भीड़ का दबाव झेल रहे बड़े शहरों में ई-बाइक्स को भी अनुमति देनी होगी। मिनी साइज-ई टैक्सी, बिग साइज ई-टैक्सी को वर्गीकृत करके पूरे देश में ई-चार्जिंग का एक मजबूत नेटवर्क निजी क्षेत्र की मदद से स्थापित करना होगा। स्मार्ट होटल-ढाबा विद ई-चार्जिंग पैâसिटिली का कॉन्सेप्ट लाना होगा। इतना ही नहीं, देश के तमाम हवाई अड्डों पर चलनेवाले टर्मिनल वाहनों को भी ई-व्हीकल में तब्दील करना होगा, चाहे वो पैसेंजर को ढोनेवाली हवाई कंपनियों की बसें हों या हवाई जहाज को उड़ान के लिए तैयार करनेवाला ब्रिगेड। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि हवाई अड्डों पर टैक्सी बोट का अधिकाधिक इस्तेमाल हो।
एविएशन सेक्टर के ग्राउंड व्हीकल्स का संपूर्ण इलेक्ट्रिकरण किए बिना और सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम वाहनों को विद्युतीकृत किए बिना, देश में ई-वाहन पॉलिसी को प्रोत्साहन नहीं मिल सकता। यदि केंद्र सरकार सही मायने में हिंदुस्थान से कार्बन फुटप्रिंट कम करना चाहती है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग में इस्तेमाल होनेवाली विद्युत सोर्स ग्रीन हो। पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का इसमें ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो। अन्यथा, ये प्रयास केवल आंखों में धूल झोंकनेवाले साबित होंगे। यदि हम कोयला जलाकर थर्मल पावर स्टेशनों से विद्युत उत्पादन करते रहेंगे तो उस विद्युत से ई-वाहन चलाकर किसी भी तरह से प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं पा सकेंगे। सरकार थर्मल पावर का उपयोग कम करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी से ही सही, छोटे-छोटे कदम उठाकर बड़ा काम कर सकती है। तमाम रेलवे स्टेशनों की छतों, बस डिपो की इमारतों व शेड्स के साथ-साथ सड़क पर लगे बिजली के खंभों को भी सोलार एनर्जी हासिल करने का जरिया बनाया जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों का इंप्रâास्ट्रक्चर बहुत बड़ा है, उसे गैर परंपरागत ऊर्जा का स्रोत बनाया जा सकता है और उसी से सरकारी ई वाहनों को ऊर्जा प्रदान की जा सकती है। इसके अलावा मुंबई जैसे बड़े शहरों में स्कॉय सिस्टम बनाकर उस पर पॉड टैक्सी का संचालन किया जा सकता है। ऐसा एलिवेटेड सिस्टम सड़कों का कंजेशन भी कम करेगा और वाहनों का प्रदूषण भी। यदि सरकार अपनी ओर से इतनी- भी पहल कर लेगी, तब भी देश में कार्बन फुटप्रिंट काफी हद तक नियंत्रण में आ जाएगा और जहां तक देश के आम नागरिक का सवाल है तो वो ई-व्हीकल्स को प्राथमिकता दे ही रहा है, पर सरकार के सहयोग के अभाव में, सब्सिडी में भारी कटौती के चक्कर में, वो इस ओर कदम नहीं बढ़ा पा रहा है। तमाम सरकारों का पेट्रोल-डीजल से मिलनेवाला वेट व अन्य टैक्सों का मोह कम नहीं हो पा रहा है। यदि सरकार यह मोह कम करे और ई-वाहन नीति पर फोकस करे तो बात बन सकती है। आनेवाले दिनों में सड़कों पर ग्रीन रजिस्ट्रेशन नंबर वाले वाहन बढ़ सकते हैं।

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