अनिल तिवारी
मुंबई
एक दशक के बाद ही सही, आखिर केंद्र सरकार ईवी टू व्हीलर, थ्री व्हीलर और अन्य कुछ वाहनों के लिए एक उपयोगी प्रोत्साहन योजना लेकर आई है, जिसमें विशेष रूप से टू और थ्री व्हीलर का जिक्र किया गया है, परंतु अब भी उसमें कई खामियां हैं। क्योंकि देर से लाई गई इस पॉलिसी को समय के साथ बनाए रखने का प्रावधान नहीं किया गया है। सरकार ने ई-थ्री व्हीलर्स खरीद के लिए तो प्रोत्साहन नीति बनाई है पर उसके ट्रांसफॉर्मेशन और मेकओवर की जरूरत पर कोई ध्यान ही नहीं दिया है। लिहाजा, कहीं ऐसा न हो कि जब तक उपभोक्ता इन ई-थ्री व्हीलर की ओर आकर्षित हों, तब तक ये वाहन ही बाजार से आउट डेटेड हो जाएं।
टू व्हीलर को अब तक ‘ऑल इलेक्ट्रिक’ कर लेना कितना जरूरी था और सरकार कब और कैसे इससे चूकी, इस पर हम पिछले आलेख में चर्चा कर ही चुके हैं। लिहाजा, आज फोकस थ्री व्हीलर के ऑल इलेक्ट्रिक कन्वर्जन पर करते हैं और यह समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर टू व्हीलर के बाद सबसे ज्यादा जरूरी सभी थ्री व्हीलर और ऑटोरिक्शा का ऑल इलेक्ट्रिक बाजार क्यों है और क्या इस बाजार का केवल फ्यूल वर्जन ही बदलना जरूरी है या इस सेगमेंट का पूरा का पूरा कायापलट भी समय की मांग है। हिंदुस्थान में आमतौर पर दो ही तरह के थ्री व्हीलर इस्तेमाल में आते हैं। पेसैंजर और लोड वैâरियर, यानी या तो इन्हें पब्लिक कैरियर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है या फिर गुड्स कैरियर के तौर पर इनका उपयोग होता है। निजी वाहन के तौर पर थ्री व्हीलर को इस्तेमाल करनेवालों का आंकड़ा देश में लगभग नगण्य है। मतलब इस सेगमेंट के लगभग सभी वाहनों का कॉमर्शियल इस्तेमाल ही होता है जो इन्हें हर हाल में ईंधन किफायती रखने पर जोर देता है। उपभोक्ता इस सेगमेंट में हमेशा सस्ता ईंधन विकल्प तलाशते हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष २०२३-२४ में देश में सीएनजी, एलपीजी और बैटरी ऑपरेटेड करीब १२ लाख थ्री व्हीलर बिके थे। बात एल-५ श्रेणी की हो या एल-३ या ई-कार्ट श्रेणी की, चूंकि इसके अधिकांश उपभोक्ता इन वाहनों का इस्तेमाल रोजी-रोटी के जुगाड़ के लिए करते हैं, अत: इनके चालक और मालिक इसे ज्यादा से ज्यादा र्इंधन किफायती रखना चाहेंगे, यह स्वाभाविक है। इसी का नतीजा है कि अब तक सरकार की किसी प्रभावी प्रोत्साहन योजना के आभाव में भी देश में बड़ी संख्या में ई-थ्री व्हीलर बढ़े हैं। एक लंबा कालखंड बीत जाने के बाद भी सरकार न तो ई-थ्री व्हीलर्स के प्रोडक्शन पर जोर दे पाई, न ही उसके ट्रांसफॉर्मेशन और मेकओर पर, न ही उसकी कॉस्ट कटिंग पर। फिर भी इनका चलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है तो इसलिए कि लोग अब तक सेगमेंट में फिर से सस्ता विकल्प चाहते हैं।
देश के टू टियर, थ्री टियर और उनसे छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में थ्री व्हिलर की विभिन्न ई-व्हीकल श्रेणियों को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। जहां तक शहरी भागों का सवाल है तो यहां आज भी सीएनजी और एलपीजी थ्री व्हीलर ऑटोरिक्शा ने ई-थ्री व्हीलर पर बढ़त बना रखी है। सरकार चाहती तो पिछले एक दशक में वह बड़ी ही खूबसूरती से एल-५, एल-३ और ई-कार्ट श्रेणी के सभी थ्री व्हीलर्स को फेज आउट करके उन्हें ऑल इलेक्ट्रिक में कन्वर्ट कर सकती थी। जिस तरह कभी उसने पेट्रोल और डीजल के अधिकांश थ्री व्हीलर वैरियंट को सीएनजी और एलपीजी में बदला था। तब इस काम में उसे ज्यादा अड़चनें भी नहीं आई थीं क्योंकि खुद उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल का सस्ता विकल्प चाहता था। लिहाजा, बहुत ही कम समय में थ्री-व्हीलर्स को गैस आधारित फ्यूल में आसानी से कन्वर्ट कर लिया गया। ठीक उसी तरह यदि गत एक दशक में सरकार प्रयास करती तो वह चरणबद्ध तरीके से गैस चालित थ्री व्हीकल को आसानी से ई-व्हीकल में बदल सकती थी, क्योंकि आज दो दशक बाद फिर से ऑटोरिक्शा चालकों के समक्ष महंगे ईंधन का प्रश्न मुंह बाये खड़ा है। कभी बेहद सस्ती रही ऑटो गैस आज तकरीबन पेट्रोल-डीजल के बराबर पहुंच चुकी है। ऑटो चालकों का परिचालन खर्च बढ़ा है, जबकि मुनाफा कम हुआ है। इसलिए यदि सरकार ऑटो मोबाइल सेक्टर पर दबाव बनाकर नेचुरल ऑटो गैस वाले थ्री व्हीलर्स का निर्माण निमंत्रित करती और ई-थ्री व्हीकल्स का निर्माण तेज करवाती तो आज भारतीय सड़कों पर तस्वीर अलग हो सकती थी। बड़े पैमाने पर पैसेंजर और गुड्स कैरियर के तौर पर इस्तेमाल होनेवाले सभी श्रेणी के थ्री व्हीलर्स ई-वाहनों की श्रेणी में आ चुके होते। माना इस काम में थोड़ी आर्थिक कठिनाइयां आतीं, पर भविष्य के लाभ के लिए ऐसा हो ही सकता था, बल्कि यदि सरकार थोड़ा और जोर लगाती तो एल-५ श्रेणी को संपूर्ण रूप से लाइट फोर व्हीलर्स, मसलन टाटा नैनो और क्वाड्रिसाइकिल जैसे विकल्प में इलेक्ट्रिक वर्जन के साथ तब्दील कर सकती थी।
आज भारत में नैनो का बाजार खत्म हो चुका है, जबकि बजाज की क्वेट (क्वॉड्रिसाइकिल) की बिक्री नहीं के बराबर है। इस वर्ष जुलाई तक क्वेट की देश में जहां ३,२०० के करीब यूनिट्स ही बिकी थी तो विदेशों में इनका दस गुना से ज्यादा निर्यात हुआ है। मिस्र जैसे देश ने अपने सभी थ्री-व्हीलर्स को क्वेट में तब्दील करने की योजना बनाई है। यदि भारत में बननेवाली क्वेट को विदेशी अपना सकते हैं तो हम क्यों नहीं? वैसे भी भारतीय सड़कों पर दौड़नेवाले थ्री व्हीलर्स पर यदि सर्वे किया जाए तो यकीनन १०० में से ९५ वाहन चालक थ्री व्हीलर्स के पक्ष में नजर नहीं आएंगे। क्योंकि थ्री व्हीलर्स आमतौर पर यातायात को धीमा करने, विजिबिलिटी बाधित करने, अड़चनें पैदा करने और कई मामलों में दुर्घटना का कारण बनने के तौर पर जाने जाते हैं। इसलिए इन्हें अब तक, न केवल रिप्लेस करके लाइट फोर व्हीलर्स में तब्दील करने की जरूरत थी, बल्कि इन्हें ई व्हीकल श्रेणी में लाना भी जरूरी था। थ्री व्हीलर्स सड़कों पर यातायात संबंधी कई अड़चनें पैदा करते हैं जो समय, ईंधन और पर्यावरण की बर्बादी के तौर पर सामने आती हैं। शायद यही वजह है कि मुंबई जैसे कई शहरों के चुनिंदा इलाकों में थ्री व्हीलर्स के परिचालन पर पाबंदी है। सरकार को चाहिए कि वो इस सेगमेंट के इलेक्ट्रिक श्रेणी में ट्रांसफॉर्मेशन के साथ-साथ इसे थ्री से लाइट फोर व्हीलर की श्रेणी में ले आए और इसके लिए टाटा नैनौ या बजाज के क्वॉड्रिसाइकिल जैसे पर्याय को संसोधित ई श्रेणी में तब्दील करे।