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मणिपुर के विलेन! कुकी समुदाय से है सीएम का द्वेष, इसी कारण जल रहा है राज्य

तीन महीने से ज्यादा हो चुके हैं, पर मणिपुर की हिंसा शांत होने का नाम ही नहीं ले रही है। रह-रहकर वहां गोलियां बरसने लगती हैं। अब वहां से आनेवाली रिपोर्टस् बताती हैं कि इस सुलगते मणिपुर में सबसे बड़े विलेन बनकर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह उभरे हैं। मुख्यमंत्री वहां की बहुसंख्यक मैतेयी समुदाय से आते हैं। राज्य में इनकी आबादी ६० फीसदी है, जबकि कुकी आबादी २० फीसदी है। बाकी नागा समुदाय व अन्य जातियां हैं। मुख्यमंत्री पहले से ही कुकी विरोधी बयानों के लिए जाने जाते हैं। बीरेन सिंह का बतौर मुख्यमंत्री यह दूसरा टर्म है। कुकी उन्हें पसंद नहीं करते। इसलिए जब मई में दंगे शुरू हुए तो पुलिस के संरक्षण में मैतेयी समुदाय ने काफी हिंसा की। ४ मई की २ महिलाओं को निर्वस्त्र करने की घटना भी इसी की एक कड़ी है। वे महिलाएं पुलिस संरक्षण में थीं, लेकिन भीड़ ने उन्हें खींच लिया और उनके साथ गैंग रेप करके निर्वस्त्र घुमाया।
मणिपुर में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है। अफीम की खेती में ज्यादातर कुकी लोग शामिल हैं। दूसरे चरण में मुख्यमंत्री बनने के बाद बीरेन सिंह ने अफीम के खिलाफ अभियान छेड़ दिया, जिससे कुकी नाराज हो गए। कुकी लोगों को लगा कि मुख्यमंत्री उनकी रोजी-रोटी छीन रहे हैं। सरकार ने अफीम के खेतों को नष्ट करने का अभियान छेड़ दिया। उनमें ज्यादातर कुकियों से आबाद इलाकों में थे, लिहाजा यह समुदाय सीएम के इरादों पर शक करने लगा। बात तब और बिगड़ गई जब सीएम ने अफीम की खेती के लिए परोक्ष रूप से कुकियों को जिम्मेदार ठहरा दिया। हालांकि, उस इलाके में कुछ मैतेयी और नगा भी अफीम उगाते हैं। इससे दोनों समुदाय में कटुता काफी हद तक बढ़ गई। इससे साफ है कि वहां दंगा अचानक नहीं शुरू हुआ, बल्कि दोनों समुदाय में जहरीले बीज काफी पहले से बोए जा रहे थे।
सीएम से भाजपा के कई कुकी विधायक नाराज हैं। जातीय टकराव से पहले भी भाजपा के एक दर्जन विधायकों ने उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाने की मांग को लेकर दिल्ली में डेरा डाल दिया था। इनमें मैतेयी विधायक भी थे। अफीम की खेती और अवैध बस्तियों के खिलाफ उनके अभियान की वजह से भाजपा के कुकी विधायक भी उनके खिलाफ हो गए। मुख्यमंत्री का आरोप है कि उनके विरोधी अपने अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उनका विरोध कर रहे हैं। फिरहाल आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है और जल्द शांति के आसार नजर नहीं आ रहे।
चुनाव में भाजपा ने ली थी मदद
सशस्त्र संगठन ‘यूनाइटेड कुकी लिबरेशन प्रâंट’ के अध्यक्ष एसएस हाओकिप की तरफ से दायर एक जनहित याचिका इस आरोप की पुष्टि करती नजर आती है, जो उन्होंने ८ जून को एनआईए कोर्ट में दायर की थी। इसके साथ हाओकिप ने २०१९ का एक पत्र लगाया है, जो उन्होंने कथित तौर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लिखा था और उसमें उन्होंने दावा किया था कि यूकेएलएफ और एक अन्य कुकि संगठन यूनाइटेड पीपल्स प्रâंट ने असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा और पूर्वोत्तर में भाजपा के प्रभारी रहे राम माधव के साथ एक समझौते के तहत विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों की जीत तय करने में मदद की थी। पत्र में यह दावा भी है कि उन्होंने २०१९ के आम चुनाव में भी भाजपा की मदद की थी। अब यह खुलासा भाजपा की राज्य इकाई के लिए शर्मिंदगी का सबब बना, क्योंकि मैतेयी समुदाय ने इसे विश्वासघात के रूप में देखा। इससे बहुत मैतेयी भी भाजपा से नाराज हो गए। इस कारण भी भाजपा महा मुश्किल में फंस गई है। अब अगर वह कुकियों का दमन करेगी तभी मैतेयी उसके पास लौटेंगे। इसी पेंच को सुलझाने की कोशिश करती नजर आ रही है भाजपा।

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