अनिल मिश्रा / उल्हासनगर
उल्हासनगर की सीमा से बहने वाली उल्हास नदी लाखों लोगों की प्यास बुझाती है, लेकिन इस नदी को हर वर्ष जलकुंभी जैसा रोग घेर लेता है। सामाजिक संस्थाओं के विरोध के बाद मनपा प्रशासन, जिलाधिकारी कार्यालय के तमाम विभाग जलकुंभी को खत्म करने का दावा करते हुए तमाम उपाय करते हैं। लाखों रुपए का वारा-न्यारा किया जाता है, परंतु सारे सरकारी उपाय फेल होते दिखाई दे रहे हैं।
बता दें कि उल्हास नदी कर्जत से लेकर अंबिवली (मोहना) होकर कल्याण की खाड़ी में मिलती है। उल्हास नदी से कल्याण, नई मुंबई, ठाणे, उल्हासनगर, अंबरनाथ, बदलापुर एमआईडीसी के लोगों की प्यास बुझा रही है। हालांकि, बढ़ते प्रदूषण और उससे निपटने में प्रशासनिक उदासीनता का असर इस नदी पर पड़ने लगा है। उल्हास नदी की सफाई को लेकर सामाजिक संस्था के लोगों द्वारा नदी के बीच में बैठकर आंदोलन किया गया, राज्य सरकार को पोस्ट कार्ड भेजकर विरोध जताया गया, हस्ताक्षर अभियान चलाया गया, न्यायालय में जनहित याचिकाएं दायर की गर्इं, नदी की सफाई पर करोड़ों रुपए स्वाहा कर दिए गए। मछलियां छोड़ी गर्इं, ड्रोन से रसायन का छिड़काव किया गया। इतना ही नहीं, न्यायालय की फटकार के बाद उल्हासनगर मनपा द्वारा खेमानी, कमला नेहरू नगर के नाले एसटीपी प्लांट शुरू किया गया जो उल्हास नदी में जाकर मिलता था। इसके बावजूद उल्हास नदी के किनारे बसे सैकड़ों गांव, शहर, फार्महाउस, कंपनी का दूषित पानी नदी में बिना प्रक्रिया के छोड़ा जा रहा है। जलशुद्धिकरण विभाग, पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि प्रदूषण ही जलकुंभी की जननी है, जिसे रोकने में नपा, मनपा, ग्राम पंचायत फेल साबित हो रही है। सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद उल्हास नदी में जलकुंभी का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। हर वर्ष जलकुंभी निकाली जाती है, इसके बाद भी अगले वर्ष फिर से इसका जाल नदी में पैâल जाता है।