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हम सब अश्वत्थामा हैं

हम सब अश्वत्थामा हैं
अपने-अपने मन के कारागार में बंदी
अपने-अपने नरक भोगते हुए
हत्या हो चुकी हमारे अंदर के सत्य-शिव और सुंदर की
जी रहे एक अबूझे प्रतिशोध की ज्वाला में जलते हुए
बह रही भ्रष्टाचार की पीव व्रणों से
अनास्थाओं के शोणित
आस्थाओं को जलाते हुए
जिंदा है नर पशुओं की तरह
नपुंसक अस्तित्व को वहन करते
अनाचार की अंधी गुफाओं में भटकते हुए
फिर भी यात्रा जारी है अनुभूति और आस्था की खोज की
निकलेंगे कभी चक्रव्यूह को भेद कर
प्रखर सूर्य की तरह चमकते हुए।

-डॉ. कनक लता तिवारी

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