दरिया के पास प्यासे आने लगे हैं,
बदलेगा मौसम बताने लगे हैं।
कभी सोचने से न होती है बारिश,
मन का वो बादल उड़ाने लगे हैं।
आई है धूल ये उसी काफिले से,
धड़कन मेरी वो बढ़ाने लगे हैं।
जाएंगे लौट वो शहद चाट करके,
तड़प मुझको अपनी दिखाने लगे हैं।
आसमानों के पानी में तैरेंगे वो सब,
ख्याली पुलाव वो पकाने लगे हैं।
मुबारक हो उनको चांदवाली बस्ती,
मुझे आजकल वो घुमाने लगे हैं।
चुभने लगी खुद को बदन की ये हड्डी,
मुझे बात अपनी रटाने लगे हैं।
पहाड़ों के जैसी ये जिंदगी है काटी,
दामन वो अपना बिछाने लगे हैं।
रोएगा बादल जब रोएगी धरती,
हवाओं में विष वो बोने लगे हैं।
लाओ रुत बहार की मेरे दोस्तों,
गए दिन तुम्हारे बुलाने लगे हैं।
-रामकेश एम. यादव
मुंबई