एड. राजीव मिश्र मुंबई
आजकल शादी-बियाह में पंगत वाला भोज सपना होय गवा है। उ का जमाना रहा जब सारे मेहमान टाटपट्टी पे बइठत रहें। फिर एक के बाद एक ढाक के पात के पत्तल परोसा जात रहा। साथ में पानी के लिए मिट्टी के पुरवा अउर खीर रसेदार के लिए कसोरा दिया जात रहा। पत्तल पर गरम-गरम पूड़ी अउर सब्जी के साथ ही मिठ्ठी चटनी के जवन आनंद रहा उ आज ५६ भोग मा भी देखाय नही परत है। आजकल बुफे सिस्टम अइसन खाना होइ गवा है जेहिमा प्लेट लइके खाना तक पहुँचब सबसे बड़ी वीरता हय। आज गजोधर पहिली बार बुफे सिस्टम मा खाये खातिर जइसे पहुँचे तो देखत हयं लंबी लाइन लागि रही। एक जन से पूछे तो पता चला ई प्लेट के लाइन हय। प्लेट लइके सलाद तक पहुँचय मा गजोधर के पसीना आइ गवा। नेबुआ लेवय के चक्कर मा उनके ऊपर केहु अचार गिराय के निकरि गवा। सलाद के बाद पूरी सब्जी, गुलाबजामुन, दही-वड़ा अउर दाल-चावल के अइसन गठबंधन भवा, गुलाबजामुन दही से अकवारी लगि के दहीबड़ा होइ गवा। रायता पापड़ के ऊपर कब्जा जमाय के बैठि गवा है। पूरी प्लेट मा न कहीं दाल के शिनाख्त होइ रही है न सब्जी के। चावल सलाद मिलिके वेज पुलाव बनि गए। अइसे तइसे पूरी प्लेट लादि के गजोधर जइसय कोना पकड़े तइसय एक ठो भउजी बगल से धकियावत एस निकरी की प्लेट के पूरा सामाजिक सौहार्द गजोधर के कुरता पर पैâल गवा। रही सही कसर जेहिके बियाह रहा ओहिके छोटका भाय गजोधर के देखि के बोला, का चचा तोहके नेवता खाना खाएं के मिला अहइ खाना से नहाए के नही, गजोधर गुस्सा से कसमसाई के रही गए। यहि हृदयविदारक दुर्घटना से उबरे तो सोचे लाओ जो प्लेट में बचा होय उहै खाय लेई। तब तक एक लौंडा प्लेट सहित कुर्सी के अइसा धक्का मारिस अब गजोधर न खाना के शिनाख्त कइ पाए न खाना प्लेट के। गजोधर के हालत अइसन होइ गवा जइसे केउ उनका लथेर-लथेर के मारिस होय।