एम.एम.सिंह
भारत के बाद रियो डी जेनेरियो में आयोजित जी-२० शिखर सम्मेलन में ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने गरीबी को ‘मानवता को शर्मसार करनेवाला अभिशाप’ बताया। इस सम्मेलन में वैश्विक भूख और गरीबी से निपटने तथा जलवायु न्याय यानी सरल शब्दों में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लक्ष्य घोषित किए गए। सम्मेलन में जमा हुए राष्ट्रों से ‘सुपर-रिच’ पर कर लगाने, दुनिया के सबसे धनी लोगों पर २ प्रतिशत संपत्ति कर लगाने जैसी नीतियों को लागू करने की सिफारिश राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने की। इस नीति से २०० बिलियन डॉलर से अधिक राजस्व प्राप्त होगा। जलवायु परिवर्तन पर बातचीत भले ही हुई, लेकिन जी- २० में शामिल हुए नेताओं ने पिछले साल दुबई में ण्ध्झ्२८ जलवायु वार्ता में जीवाश्म र्इंधन से दूर ‘उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत परिवर्तन’ के लिए की गई प्रतिबद्धता को नहीं दोहराया। ब्राजील द्वारा आयोजित जी-२०, २०२२ में इंडोनेशिया और २०२३ में भारत के बाद ग्लोबल साउथ का तीसरा मेजबान देश था। अगला जी-२० दक्षिण अप्रâीका में होना है। ब्राजील शिखर सम्मेलन में गरीब, उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए समाधान पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद थी। हालांकि, इसकी टाइमिंग ने मुद्दे को कमजोर कर दिया और दुनिया के सामने मौजूद दूसरे मुद्दों को देखते हुए फोकस को भटका दिया। जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत का असर यहां भी दिखाई पड़ता रहा। ७ अक्टूबर को इजरायल पर हमले और गाजा और लेबनान पर उसके प्रतिशोध के बाद यह पहला जी-२० शिखर सम्मेलन था। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मद्देनजर जी-२० घोषणापत्र कमजोर रहा, जिसमें गाजा में मानवीय स्थिति पर केवल ‘गहरी चिंता’ व्यक्त की गई और रूस का सारा संदर्भ ही हटा दिया गया, जबकि ‘वैश्विक खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में पीड़ा’ पर प्रकाश डाला गया। इसमें संघर्षों को समाप्त करने के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं थी। पिछले साल के जी-२० शिखर सम्मेलन की तरह, ‘क्षेत्रीय अधिग्रहण के लिए बल प्रयोग की धमकी या प्रयोग’ की निंदा करते हुए उन्होंने रूसी आक्रामकता का कोई जिक्र नहीं किया। हालांकि, शिखर सम्मेलन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के ठीक बाद हुआ, जिससे इसकी छाया पड़ गई। अपने पहले कार्यकाल के दौरान उनके कदमों को देखते हुए, डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं देंगे। न ही वे वैश्विक तापमान वृद्धि से निपटने या जीवाश्म र्इंधन के दोहन को कम करने के लिए अमेरिका से अपेक्षित संसाधनों को खर्च करने की संभावना रखते हैं। उनके मंत्रिमंडल में जलवायु परिवर्तन को नकारने वाले लोग हैं और उनका अपना अभियान नारा था ‘ड्रिल, बेबी, ड्रिल’। संकेतों को देखते हुए, वैश्विक दक्षिण व इंडोनेशिया-भारत-ब्राजील-दक्षिण अप्रâीका के चौकड़ी को यह सुनिश्चित करना होगा कि अगला जी-२० विकासशील दुनिया की चिंताओं को ठोस रूप दे सके और गरीबी और भूख, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक शासन पर भविष्य के लिए एक रास्ता तय कर सके। पिछले वर्ष भारत में जी-२० के आयोजन को हाइप मोदी सरकार की घरेलू राजनीति को चमकाने के लिए किया गया। सम्मेलन के नतीजे पर गौर करें तो यह साफ हो जाता है कि जी-२० का आयोजन एक रस्म-अदायगी बनकर रह गया है और इस मंच की उपयोगिता संदिग्ध होती जा रही है। दुनिया के सबसे बड़ी २० अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के नेताओं का जुटना और दुनिया के अहम बुनियादी मसलों पर मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना की गति को प्राप्त होना इसके अलावा और क्या मैसेज देता है?