एम.एम.सिंह
पेरिस की एक संस्था है ‘एफएटीएफ’ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स, जिसे फाइनेंशियल मामलों में ग्लोबल वॉच डॉग के तौर पर जाना जाता है। एफएटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में तारीफ करते हुए कहा है कि मनी लॉॅन्ड्रिंग को रोकने और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए भारत के उपाय (कानून) अच्छे परिणाम प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन ग्लोबल वॉच डॉग इस बात का पता नहीं लगा पाया कि देश में उन कानूनों का किस तरह से दुरुपयोग किया गया है।
सरकार पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि गैर-सरकारी संगठनों के लिए विदेशी फंडिंग पर कड़े नियम लागू करने के लिए (एफसीआरए) फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट में संशोधन किया गया, जिससे सरकार की आलोचना करने वाले जमीनी स्तर की संस्थाओं के लिए काम करना मुहाल हो गया। इसी तरह, ( यूएपीए) अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रीवेंशन एक्ट में संशोधन से बिना पर्याप्त सबूतों के मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने और व्यक्तियों को आतंकवाद से जोड़े जाने का रास्ता आसान हो गया। इसका इस्तेमाल अक्सर एक्टिविस्ट और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ किया जाता है। वहीं (पीएमएलए ) प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट का भी मनी लॉड्रिंग (धनशोधन ) की परिभाषा को व्यापक बना दिया गया। जिससे सरकार को पर्याप्त सबूतों के बिना जांच करने और संपत्ति जब्त करने में सक्षम बनाया गया है। कानूनों के इस तरह के दुरुपयोग और उल्लंघनों से देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के क्षरण को लेकर चिंताएं बढ़ीं हैं। सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन के खिलाफ सख्त रुख अपनाया जाता है, अक्सर पीएमएलए जैसे मनी लॉॅन्ड्रिंग कानूनों का इस्तेमाल करके उन्हें काम बंद करने के लिए मजबूर किया गया या उनकी संपत्ति को जब्त कर ली जाती है। इसके उलट, केंद्र द्वारा क्रोनी वैâपिटलिस्टों के प्रति नरम रुख अख्तियार किया जाता है, जिसमें मनी लॉॅन्ड्रिंग और वित्तीय घोटालों के आरोपी हैं, जिनकी सत्ता से नजदीकी है या शामिल हैं। अडानी समूह के खिलाफ आरोपों के प्रति सरकार की उदासीनता, जिस पर शेल कंपनियों के जरिए मनी लॉॅन्ड्रिंग के आरोप हैं और २०१८ में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की शुरुआत को, इस दोहरे मापदंड के दो प्रमुख उदाहरणों को एक तौर पर देखा जा सकता है। यह अब खुला हुआ सच हो गया है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह पर मॉरीशस में फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल कर मनी लॉॅन्ड्रिंग के आरोप के बावजूद सरकार ने कॉर्पोरेट दिग्गज का बचाव किया। रेगुलेटरी बॉडी पर व्यापारिक इकाई के खिलाफ आरोपों को छिपाने के आरोप लगे हैं और राजनीतिक संरक्षण के चलते अडानी समूह को जांच से बचाने के विपक्षियों के आरोप जगजाहिर हैं। लेकिन, भारत से बाहर अडानी को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में कॉर्पोरेट धोखाधड़ी के गंभीर आरोपों की जांच से बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में भी भारतीय चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक जैसी संस्थाओं ने मनी-लॉन्ड्रिंग के जोखिमों की चेतावनी दी थीr, लेकिन केंद्र ने इस योजना को आगे बढ़ाया। सौभाग्य से, सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल फरवरी में इस योजना को रद्द कर दिया। यह एक तरह से मनी लॉन्ड्रिंग ही थी! विपक्ष लगातार इस बात पर उंगली उठाता रहा है कि सरकार इन कानूनों के इस्तेमाल में दोहरा मापदंड अपना कर एक समूह का बचाव कर रही है तो दूसरे समूह को कानूनन दोषी ठहरा रही है! यदि एफटीएफ की रिपोर्ट पॉजिटिव है तो सरकार का फर्ज है की ईमानदारी से उस पॉजिटिविटी को बनाए रखने की कोशिश करे और भरोसा कायम रखे। वरना जो भद पिटेगी वह दुनिया भर में शर्मसार करके छोड़ेगी।