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वीकेंड वार्ता : यहां शोर बच्चे मचाते नहीं…

राज ईश्वरी

खालिद अबरार ने लिखा है
यहां शोर बच्चे मचाते नहीं हैं
परिंदे भी अब गीत गाते नहीं हैं।

ये पंक्तियां आज के दौर में दुनिया के उन इलाकों के वास्ते मौजूं है जहां पर जंग छिड़ी हुई है।
बड़े शोर शराब और जश्न के साथ सारी दुनिया ने २०२५ का इस्तकबाल किया। एक ओर करोड़ों रुपए पंâूक दिए गए और दूसरी तरफ करोड़ों बच्चे भूखे रहे, तकलीफ में रहे, दर्द से बिलबिलाते रहे, शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा का शिकार बने। इनमें से कई कम नसीब भी रहे जिन्होंने २०२४ के साथ दम तोड़ दिया, उन्हें २०२५ का सूरज नसीब नहीं हुआ।
यूनिसेफ की रिपोर्ट पर आप नजर डालें तो आपकी रूह कांप जाएगी, आत्मा रो उठेगी।
यूनिसेफ के मुताबिक, २०२४ संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में बच्चों के लिए सबसे खराब वर्षों में से एक रहा है। ४७३ मिलियन से अधिक बच्चे या हर ६ में से १ – अब ऐसे इलाकों में रहते हैं जो लड़ाइयों के चलते तबाह हैं। यह आंकड़ा १९९० के दशक में हर १० बच्चों में से एक से ऊपर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सेकंड वर्ल्ड वार के खत्म होने के बाद से दुनिया आज किसी भी समय की तुलना में अधिक संघर्षों से त्रस्त है। गाजा, लेबनान, यमन, सीरिया, सूडान, चाड, इथियोपिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और यूक्रेन से हैती तक जो आग जल रही है इसका सबसे ज्यादा बुरा असर मासूमों पर पड़ रहा है। इसी मसले से जुड़े और डाटा को अगर आप खंगालते हैं तो वे भी खौफनाक हैं। २०२४ के पहले नौ महीनों में, संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध में मारे गए बच्चों की संख्या पर नजर रखी, जिसमें गाजा पर इजरायल के विनाशकारी हमले ने २०२३ की तुलना में अधिक संख्या में बच्चों की मौत को शामिल किया।
दुनिया भर में लड़ाइयां चल रही हैं। गाजा और यूक्रेन में सीधे-सीधे मासूमों की जिंदगी जहन्नुम बनाने का क्रूर खेल चल रहा है। मौत यहां पर अब सबसे सस्ती चीज बन कर रह गई है। मौत के अलावा बहुत कुछ है जो जिंदगियों को तिल-तिल कर मार रहा है। नमूने के तौर पर इजरायल द्वारा महीनों तक जानबूझकर-घोषित-अभियान चलाया गया, ताकि फिलिस्तीनी क्षेत्र में भोजन, दवा और अन्य आवश्यक आपूर्ति को सीमित किया जा सके, जिसके कारण अकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई। इस जानबूझकर तैयार किये गये तीव्र कुपोषण से निश्चित रूप से बच्चों की एक पूरी पीढ़ी पर गंभीर असर पड़ेगा। गाजा के सभी यूनिवर्सिटी, छोटे-बड़े शैक्षणिक संस्थान यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित स्कूल भी बमबारी की चपेट में आ गए हैं। क्या यह बच्चे जो पढ़-लिखकर अपना भविष्य बनाना चाहते थे, उजले सपने देख रहे थे उनके लिए भविष्य का दरवाजा हमेशा के लिए बंद नहीं हो गया? इन्हीं इलाकों में इनक्यूबेटर में बच्चे मर गए हैं, क्योंकि इजरायल ने अस्पतालों को भी बिजली नहीं दी। अस्पतालों और मेडिकल सपोर्ट सेंटर्स को भी नहीं बख्शा जा रहा है। बमबारी की जाती है और रोगियों और डॉक्टरों को अस्पताल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। जहां पर हर वक्त जिंदगी बचाने की जद्दोजहद चल रही हो वहां पर साफ-सफाई इस कदर हासिए पर है कि लाखों बच्चे बीमारियों की चपेट में आकर अपना दम तोड़ रहे हैं। गाजा में पोलियो फिर से सर उठा रहा है। इससे कितने मासूमों को जिंदगी भर रेंगते हुए जिंदगी गुजारनी पड़ेगी।
इसी दुनिया के दूसरे कोने में रूस मानसिक रूप से यातना दे रहा है। उसने हजारों यूक्रेनी बच्चों को जबरन उनके परिवारों से दूर कर दिया है। यहां भी जुलाई में, इसने यूक्रेन के सबसे बड़े बाल चिकित्सा क्लिनिक पर बमबारी की। गाजा, यूक्रेन और अन्य जगहों पर बच्चों पर यह युद्ध प्रभावित समुदायों के भविष्य के लिए खतरा बन गया है। न जाने यह जंग की आग कब खत्म होगी और कब तलक कितने मासूमों की जिंदगी को लील लेगी। ये जंग इन मासूमों की पीढ़ी के दिलों और दिमागों में जिंदा रहेंगी, उनके अपंग शरीरों में, उनके गुस्से और आघात में। जंग से घायल हुई उनकी आत्माओं को उनके अपने देश और दुश्मन देश ने घायल तो किया ही, लेकिन शेष दुनिया ने भी उन्हें निराश ही किया है। उनका दर्द या तो उन्हें घुट-घुटकर मार देगा या फिर किसी सुप्त ज्वालामुखी के लावे की तरह फूटकर भविष्य में दुनिया में तहलका भी मचा देगा, कोई नहीं जानता!
साल दर साल दीवारों पर टंगे कैलेंडर बदलते जाते हैं, जंग के मैदान बदलते जाते हैं, लेकिन जो बदलता नहीं है किस्मत उनकी, वे हैं मासूम जो जंग में बेमौत मारे जाते हैं।
मुनव्वर राना की कलम ने मासूमों की तकलीफों को कुछ इस तरह बयां किया है-
फरिश्ते आ कर उन के जिस्म पर खुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं
राना साहब गुस्ताखी माफ करें
जंग में मारे जा रहे बच्चों के लिए ये कुछ इस तरह उमड़ पड़ी है –
क्या फरिश्ते आ कर उन के जिस्म पर खुश्बू लगाते हैं?
वो बच्चे जो जंग की आग में अपनी जान गंवाते हैं।

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