एम.एम. सिंह
कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में हुए नृशंस रेप मर्डर केस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए (एनटीएफ) ‘नेशनल टास्क फोर्स’ के जल्दी गठन करने का निर्देश दिया। तीन महीने के भीतर देशभर में मेडिकल प्रोफेशनल्स की उनके वर्क प्लेस पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपनाए जानेवाले तौर-तरीकों पर सुझाव देगी। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हमें एक राष्ट्रीय सहमति विकसित करनी चाहिए। काम की सुरक्षित स्थिति बनाने के लिए एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल होना चाहिए। अगर महिलाएं काम की जगह पर नहीं जा सकतीं और सुरक्षित महसूस नहीं कर सकतीं, तो हम उन्हें समान अवसर से वंचित कर रहे हैं। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए अभी कुछ करना होगा कि सुरक्षा की शर्तें लागू हों।’ इसमें दो राय नहीं कि यह सही दिशा में एक कदम है, लेकिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा हेल्थ वर्कर्स की व्यापक परिभाषा के बजरिए देखा जाए तो शहरी और ग्रामीण भारत में महिला हेल्थ वर्कर्स के विशाल नेटवर्क नजरअंदाज कर दिया गया है। खासकर, जब उनकी कार्य स्थितियां भी व्यवस्थित नहीं हैं और उनके लिए समाधान ढूंढ़ना आसान नहीं है। (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, पांच मुख्य वर्ग हेल्थ प्रोफेशनल के इस तरह हैं, हेल्थ प्रोफेशनल्स, हेल्थ एसोसिएट प्रोफेशनल्स और स्वास्थ्य सेवाओं में पर्सनल केयर वर्कर्स, हेल्थ मैनेजमेंट एंड सपोर्ट पर्सनल और अन्य हेल्थ सर्विसेज प्रोवाइडर्स।)
इस आदेश में मेडिकल प्रोफेशन में केवल इंटर्न, रेजिडेंट, सीनियर रेजिडेंट, डॉक्टर, नर्स और सभी मेडिकल प्रोफेशनल्स की ओर संकेत दिया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है, जो लाजिमी भी है कि क्या एनटीएफ के दायरे को उपर्युक्त मेडिकल स्टाफ तक सीमित करके सुप्रीम कोर्ट ने यह इशारा किया है कि मेडिकल प्रोफेशनल्स के खिलाफ हिंसा का मुद्दा चिंता का विषय तो है, मगर यह केवल मध्यम वर्ग के कार्यस्थलों और शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है, जबकि शहरों में मुख्य रूप से अनौपचारिक श्रमिक और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य वर्कर्स- जैसे कि मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य वर्कर्स (आशा वर्कर्स और आंगनवाड़ी वर्कर्स और उन पर होने वाली लैंगिक हिंसा के मुद्दों पर एनटीएफ द्वारा विचार नहीं किया जाएगा?
२०२२ के आंकड़ों के मुताबिक, आशा वर्कर्स की संख्या १०.५२ लाख से अधिक है। हमारे ग्राम समुदायों की प्रशिक्षित महिला सामुदायिक स्वास्थ्य वर्कर्स की यह, वह महत्वपूर्ण कड़ी है जो बुनियादी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हमारे समुदायों तक पहुंचती हैं। मौजूदा वक्त में हिंदुस्थान में आंगनवाड़ी वर्कर की संख्या तकरीबन १२,९३,४४८ और आंगनवाड़ी सहायकों की संख्या ११,६४,१७८ हैं। यह पूरी टीम बच्चों की देखभाल, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान करानेवाली माताओं तक पहुंचती हैं, बच्चों के विकास की निगरानी करती हैं और मेडिकल प्रोफेशनल्स के साथ मिलकर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा, रेफरल सेवाएं और टीकाकरण जैसी सेहत संबंधी जरूरतों को पूरा करती है। क्या इन लोगों के सहयोग के बिना समाज के अंतिम जरूरतमंद नागरिक तक स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं पहुंच सकती हैं? अनौपचारिक सफाई कर्मचारियों की भी गिनती नहीं की गई है, जिनकी भी स्वास्थ्य सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हम इस बात का जिक्र पहले ही कर चुके हैं कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने हेल्थ वर्कर्स को लेकर जो पांच व्यापक श्रेणियां तय की हैं, उस पर कोर्ट, एनटीएफ को गंभीरता से विचार करना चाहिए।