एम एम सिंह
मेरे मित्र ने मुझे एक पोस्ट शेयर की है।
राज्य में इलेक्शन की तैयारी चल रही है। इसलिए उसने साथ में लिखा, ‘आपके यहां ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ खूब चलाया जा रहा है। पहले देश में चलाया, पर ज्यादा नहीं चल पाया। हमारे पड़ोसी देश की पैदाइश तो इन्हीं गुणसूत्रों के साथ हुई है… हालात दुनिया देख रही है… बस इतना ही!’
अब एक नजर उस पर जो पोस्ट उन्होंने शेयर की है…
बहस भी पुरानी है, बात भी, लेकिन कही जानी जरूरी है, बार-बार पढ़ी जानी जरूरी है। तो पेश है इस बार ये बात हिमांशु जी की कलम से…
पाकिस्तान की तानाशाही के दौर में फैज ने लिखा, ‘हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे।’
इस नज्म की एक लाइन पर भाजपा, आरएसएस मंडली ने बहुत हंगामा किया था।
फैज ने लिखा है-
‘बस नाम रहेगा अल्लाह का,
जो गाएब भी है, हाजिर भी,
जो मंजर भी है, नाजिर भी,
उट्ठेगा अनल-हक का नारा,
जो मैं भी हूं और तुम भी हो,
और राज करेगा खल्क-ए-खुदा,
जो मैं भी हूं और तुम भी हो’
इन लाइनों को लेकर कई बार प्रगतिशील लोग भी चक्कर में पड़ जाते हैं कि पैâज जो खुद वामपंथी और नास्तिक थे, उन्होंने यह क्यों लिखा होगा?
लेकिन अगर इन लाइनों को ध्यान से देखा जाए तो पैâज इसमें कह रहे हैं कि किसी भी बगावत या बदलाव में ईश्वर का महज नाम रहता है, लेकिन बदलाव के बाद सत्ता जनता के हाथ में रहती है जो आप भी हैं और मैं भी हूं।
इन लाइनों के द्वारा पैâज यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि कोई भी बदलाव असल में ईश्वर नहीं करता है, बल्कि आवाम करती है।
अनल हक अहम् ब्रह्मास्मि का दर्शन है,
यानी ईश्वर और मैं एक ही हूं,
यह तसव्वुर इस्लाम में मना है
पैâज साहब ने इस नज्म में अवाम को ही खुदा कहा है।
‘राज करेगी खल्के खुदा’
लीजिए पूरी नज्म पेश है-
‘हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिख्खा है
जब जुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिरां
रूई की तरह उड़ जाएंगे
हम महकूमों के पांव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो गाएब भी है हाजिर भी
जो मंजर भी है नाजिर भी
उट्ठेगा अनल-हक का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी खल्क-ए-खुदा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो’
-फैज अहमद फैज
लगता है कि बात वाकई काफी गहरी है…समझ से परे… मुझे पूरा यकीन है कि आपकी समझ में कुछ-कुछ आ रहा होगा! आमीन!