झूठ की शान दिखाने की ज़रूरत क्या थी?
छेद ग़ुर्बत के छुपाने की ज़रूरत क्या थी?
हम तो खुद तीर-ए-नज़र से ही हैं मरे बैठे
अब तो हम पर यूँ निशाने की ज़रूरत क्या थी?
तेरे दिल में ही था रहना ये ठान कर आए
और फिर कोई ठिकाने की ज़रूरत क्या थी?
मैंने इज़हार कभी तो न मुहब्बत का किया
तोड़ कर दिल को यूँ जाने की ज़रूरत क्या थी?
फ़ेंक देते हैं बुजुर्गों को भी घर से बाहर
क्योंकि दुनिया में पुराने की ज़रूरत क्या थी ?
मैकदे बन गए हैं नैन कटीले उनके
अब बताओ कि पिलाने की ज़रूरत क्या थी?
ये ‘कनक ‘ सोच लिया हाल -ए-दिल बयाँ होगा
आखिर अब उनसे छुपाने की ज़रूरत क्या थी?
डॉ कनक लता तिवारी