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दुष्टता जब पूज्य होती है

दुष्टता जब पूज्य होती है
तब पैदा होता है
रावण
कंस दुर्योधन
और तमाम आततायी
राजा बनकर।
समझदार निर्वासित हो जाते हैं
पूरे राज्य से।
एक अजीब सा मंज़र बन जाता है
हवा हें।
जिसे ढ़ोते हैं
दिग्भ्रमित
नालायक
दृष्टिहीन
अपनी नासमझी से।
शराफत अवाक
ताकने लगती है
मौसम की ओर
कातर नजरों से।
और विवशता
घिसटने लगती है
जमीन पर
हताशा ओढ़कर।
भीष्म ढोने लगते हैं भ्रम
विदुर पलायन
और द्रोणाचार्य कुंठा
अपने कर्म की।
आते हैं कृष्ण
सत्यमेव जयते कहते हुए
हो जाता है युद्ध
हो जात है रक्तपात
नश्वरता का।
सार्थक कहकर।।

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