योगेश कुमार सोनी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि चुनाव आयोग पक्षपात पूर्ण रवैये के साथ काम कर रहा है और लगातार समय मांगने के बाद भी हमें समय नहीं मिल रहा है। स्पष्ट है कि यदि देश को संचालित करने वाली ऐसी एजेंसी व आयोग भी इस तरह का काम करेंगी या शक के घेरे में आएंगी तो यह लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जाएगा, जिसकी शुरुआत इस दौर में हो चुकी है। लगातर विपक्ष को ही घेरना या उनके प्रति नकारात्मक रवैया यह दर्शाने के लिए काफी है कि वह किस तरह पक्षपात के शिकार हो रहे हैं। यदि हमारे देश के चुनाव आयोग की बात करें तो वह समय के साथ अपडेट व अपग्रेड नहीं माना जा रहा है। सरकार के अनुसार, हमें ‘मेक इन इंडिया’ व ‘डिजिटल इंडिया’ में प्रवेश किए हुए लगभग ८ वर्ष हो चुके हैं, लेकिन उस हिसाब से संचालन प्रक्रिया की उन्नति व धरातल पर सच्चाई शून्य सी लगती है। मोदी सरकार में भारत की तस्वीर बदलने की हुंकार जितनी जोर-शोर पर सुनाई दी थी वह उतनी ही जल्दी हल्की पड़ती नजर आई। लगातार चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल खड़े होना यह भविष्य की राजनीति के लिए एक बड़ा और बेकाबू होने वाला खतरा बन सकता है। सरकार चाहे किसी की भी हो, हर किसी को अपनी ताकत दुरुपयोग करने की चाह हमें कमजोर बनाती है। सरकारों के पास सिस्टम की पारदर्शिता के नाम पर सिर्फ बातें हैं लेकिन उसको साबित करने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि तंत्र में घुसने और सच जानने की अनुमति किसी को नहीं दी जाती है। दरअसल, सरकारों को यह लगता है कि विशेषज्ञ व जनता खेल को समझ नहीं पा रही लेकिन यह मात्र उनकी भूल है। अब हर कोई गुणात्मक प्रणाली के आधार पर बातों को समझता है। सरकार कुछ भी करे या कहे उसको सामने वाला क्यों माने, यह बात सरकार को समझने में कहा समस्या आ रही है? एक आम हिंदुस्थानी आज भी इस तर्ज पर अपने आपको सुरक्षित समझता है कि उसे कहीं इंसाफ नहीं मिलेगा तो कोर्ट से मिलेगा और लगभग मिलता भी है लेकिन कुछ लोग इस मिसाल को आर्थिक व शक्ति प्रकरण से भेदना चाहते हैं। कहते हैं कि राजनीति की कोई जाति व रंग नहीं होता, जहां जिस पार्टी व नेता को फायदा नजर आता है वो वहां वैसा ही चोला ओढ़कर अपनी रोटी सेंकने लगता है। इस बात को इस कहावत के आधार पर समझिए ‘जहां देखी तवा- परात, वहीं बिताई सारी रात’। लेकिन अब इन चीजों को बदलना होगा, क्योंकि कहानी दुनिया के सबसे बड़े देश की है। हमारे यहां कि प्रतिभाओं को दुनिया ने जाना है। जिस रफ्तार से हम परिवर्तन की ओर बढ़ रहे हैं वह सरकारों के कुछ कृत्य से बात बिगड़ न जाए। अब राजनीतिक पार्टियां समन्वय व संधि के आधार पर नहीं चलती। हम बीते समय से ईवीएम में गड़बड़ी की बात सुनते आ रहे हैं। यहां एक बात यह समझने की है कि जो देश युवाओं का हैं कहीं वह लोकतंत्र के प्रति बागी न हो जाए और यदि युवा ऐसी चीजों को देखते हुए चुनावों में रुचि लेना बंद कर दिया तो स्थिति अच्छी नहीं होंगी और हमारा देश सबसे अधिक युवा वर्ग का देश है। बनते-बिगड़ते हाल की तस्वीर का सबसे बड़ा गवाह भारत है। लगातार राजनीति में ऐसी बातों का होना कुशलता को व्यर्थ करता है। इसलिए देश को संचालित करने वालों को यह बात समझनी होगी कि तंत्र प्रणाली के साथ छे़ड़छाड़ न करें। यदि खेल बिगड़ गया तो संभाले नहीं संभलेगा क्योंकि सरकारें तो बदलती रहेंगी, लेकिन नियम-कानून व लोकतंत्र वहीं रहता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)