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जहां हार तय, वहां चुनाव नहीं … डर गई मोदी सरकार! …चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव किए घोषित

जे एंड के और हरियाणा में भी नहीं गलेगी भाजपा की दाल
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
भारतीय चुनाव आयोग ने कल १० साल बाद जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही हरियाणा विधानसभा के चुनाव की भी घोषणा की गई है। हरियाणा में ९० विधानसभा सीटों के लिए एक अक्टूबर को मतदान होगा। चार अक्टूबर को रिजल्ट आएगा। वोटर सूची २७ अगस्त को जारी होगी। घोषणा के साथ ही जम्मू-कश्मीर में सियासी माहौल गर्माने लगेगा। राजनीतिक गलियारों में अब इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने वाला है। उससे पहले अक्टूबर में हमेशा की तरह अक्टूबर में क्यों नहीं चुनाव कराए जा रहे हैं। बताया जाता है कि मोदी सरकार हार से डर गई है। इसी हार की डर की वजह से महाराष्ट्र के चुनाव को साथ नहीं कराया जा रहा है।
उधर, सूत्रों का दावा है कि जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में भी भाजपा की दाल नहीं गलने वाली है। जम्मू-कश्मीर में चुनाव तीन चरणों में होंगे। चुनाव १८ सितंबर से ०१ अक्टूबर तक होंगे। यानी वोटिंग केवल १४ दिनों में हो जाएगी। हालांकि, परिसीमन में राज्य में जितनी सीटें निर्धारित की गर्इं, उतने पर चुनाव नहीं होंगे। इसकी क्या खास वजह है।
जम्मू-कश्मीर में कुल ११४ विधानसभा सीटें हैं, लेकिन राज्य में विधानसभा सीटों के डिलीमिटेशन के बाद चुनाव केवल ९० सीटों पर ही होंगे। क्यों ऐसा होगा, इसकी भी वजह है। दरअसल, ये २४ सीटें पीओके यानि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में राजनीतिक और प्रशासनिक परिवर्तनों के कारण इनमें से केवल ९० सीटों के लिए चुनाव होना तय है।
महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होंगे बाद में
माना जा रहा था कि हरियाणा के साथ महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव होंगे, लेकिन चुनाव आयोग ने तारीख की घोषणा नहीं की। चुनाव में क्यों बदलाव हुआ? इसे लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बड़ी वजह बताई है।
साल २०१९ में हरियाणा के साथ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि महाराष्ट्र में मौजूदा स्थिति को देखते हुए चुनाव बाद में कराने का पैâसला लिया गया। इस वक्त राज्य में भारी बारिश हो रही है, जिससे अभी तक वोटिंग लिस्ट का कार्य पूरा नहीं हो पाया है। साथ ही आने वाले महीनों में कई प्रमुख त्योहार हैं, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त की दलील लोगों के गले नहीं उतर रही है।

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