सुरेश एस. डुग्गर / जम्मू कश्मीर घाटी तीन दशकों से जारी सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसा की कीमत अपनी दिमागी सेहत खोकर चुका रही है। कश्मीर के युवाओं में नशीली दवाओं का दीवानापन हद से ज्यादा बढ़ चुका है। हालत यह है कि राज्य के ४० फीसदी युवा नशे के शिकार हो चुके हैं। अब सवाल है कि इन युवाओं को नशीली दवाओं का कौन बना रहा है आदी?
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में नशे के शिकार लोगों का आंकड़ा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। पोस्त और भांग की खेती तो बढ़ ही रही है, नशीली दवाओं व हेरोइन ने भी हजारों लोगों को गुलाम बना लिया है। माना जा रहा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी सीमा पार से बड़ी संख्या में इस पार ड्रग्स भेजकर इन्हें इसकी आदी बना रही है। इनमें छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा है। नशा छुड़ाने वाली संस्थाओं का अनुमान है कि कश्मीर में स्कूल और कॉलेज के ४० फीसदी छात्र ड्रग्स की चपेट में आ चुके हैं। वादी में उभर रहे हालात पर अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी से शोध कर रहे छात्र सैबा वर्मा कहते हैं कि अकेले श्रीनगर में नशे के आदी लोगों की संख्या कम से कम ६० से ९० हजार हो सकती है। मगर समाज के साथ-साथ सरकार भी सामने दिखती इस चुनौती की तरफ से आंखें मूंदे है। आलम यह है कि समस्या से निबटने की बात तो दूर, समस्या कितनी गंभीर है, इस बारे में एक भी विस्तृत सर्वेक्षण नहीं किया गया है। नशे की भेंट चढ़ी पूरी पीढ़ी
डॉक्टरों और मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि ७० से ८० प्रतिशत लोग आसानी से मिलने वाली दवाओं मसलन, अल्कोहल आधारित कफ सीरपों, दर्द निवारक दवाओं, निशान मिटाने वाले केमिकल, नेल और शू पॉलिश से नशा करते हैं। बाकी लोग या तो शराब लेते हैं या घाटी में उगने वाली भांग और तंबाकू के मिश्रण से काम चलाते हैं। श्रीनगर में पुलिस कंट्रोल रूम में चलाए जा रहे एक नशा मुक्ति केंद्र में काम करने वाले डॉ. खान कहते हैं कि हमारी एक पूरी पीढ़ी नशे की भेंट चढ़ने वाली है। नौजवानों में इतनी ज्यादा असुरक्षा काफी हद तक सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से पैदा हुई है। नशे के आदी अधिकतर लोग १८ से ३५ साल के बीच के हैं।