सामना संवाददाता / नई दिल्ली
समलैंगिक शादियों के मामले में वादी और प्रतिवादी दोनों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प दलीलें पेश की जा रही हैं। अदालत के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए एसजी तुषार मेहता ने अगर आदमी-आदमी की शादी को इजाजत दे भी दी गई तो पति कौन और पत्नी कौन बनेगा। केंद्र की ओर से पेश तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि यह एक बहुत जटिल विषय है, जिस पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही है और इसका गहरा सामाजिक प्रभाव है।
तुषार मेहता ने तर्क दिया कि शादी के दौरान पत्नी का डोमिसाइल होता है और यह तय करना होगा कि पत्नी कौन है। उत्तराधिकार अधिनियम पिता, माता, भाई, विधवा, विधुर प्रदान करता है। यदि इस संबंध में एक साथी की मृत्यु हो जाती है तो कौन पीछे रह जाता है विधवा या विधुर? मेहता ने कहा कि अगर आपके आधिपत्य को पति या पत्नी के स्थान पर व्यक्ति पढ़ना था, तो एक व्यक्ति को दूसरे से रखरखाव का दावा करने का अधिकार होगा। मतलब, विषमलैंगिक विवाह के मामले में पति-पत्नी से दावा कर सकता है।