मनी नाही भाव
म्हणे देव मला पाव!
देव अशानं पावायचा नाही रे
देव बाजारचा भाजीपाला नाही रे
अर्थात, मन में श्रद्धाभाव नहीं है और चाहते हो कि ईश्वर आपको मिल जाए तो ऐसे ईश्वर नहीं मिलते। ईश्वर कोई बाजार में मिलनेवाली सब्जी नहीं है। ऐसा तुकडो जी महाराज द्वारा मराठी में रचित एक अभंग की पंक्तियों का अर्थ है। यह आज भी लोकप्रिय है। उस अभंग का अर्थ यह है कि मन में आस्था की भावना नहीं है, लेकिन लोगों को दिखाने के लिए भगवान के सामने सिर झुकाना, यह ढोंग है। गुरुवार की रात शिवतीर्थ स्थित शिवसेनाप्रमुख की समाधि पर इसी दिखावे का प्रदर्शन किया गया और लोग इस दिखावे का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए। इस पर कुछ लोगों ने यह राय व्यक्त की कि शिवतीर्थ पर जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि दिल्ली का सुल्तान मराठी लोगों को विभाजित करके, विवाद कराकर तमाशा देख रहा है। लेकिन यह संघर्ष भी अटल ही है। १७ नवंबर को शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का स्मृति दिवस है। इस उपलक्ष्य में लोग जाति, धर्म, राजनीतिक दल से ऊपर उठकर स्मृतिस्थल पर आते हैं। वहां किसी के लिए कोई बाधा डालने का सवाल ही नहीं है, लेकिन जिन लोगों ने शिवसेनाप्रमुख के विचारों से घात किया है, वे वहां आएं और आस्था का बाजार लगाएं, यह ठीक नहीं है। वर्तमान सत्तारूढ़ ‘घाती’ समूह ने बालासाहेब के विचारों और आस्था को बेच दिया और फिर भी ‘हम शिवसैनिक हैं’, ऐसा चिल्लाते हुए समाधिस्थल पर पहुंच गया। ये दिखावा नहीं तो क्या है? बालासाहेब ने दिखावे और आडंबर का सदैव तिरस्कार किया। इसलिए शिवसेनाप्रमुख की स्मृतिस्थल को ऐसे ढोंगी अपवित्र न करें, यदि ये जनभावना है, तो यह गलत नहीं है। गद्दार गुट खुद को ‘शिवसेना’ मानता है। यह गुट कल खुद को अमेरिका का रिपब्लिकन, डेमोक्रेट या इंग्लैंड का हुजूर अथवा मजदूर पार्टी भी समझ सकता है। यही उनकी समस्या है। चार आने की भांग पीने अथवा चिलम में एक रुपए मूल्य का गांजा भरकर दम मारते ही इस तरह के विचार सूझने लगते हैं। यहां, खोके ही खोके होने की वजह से उच्च गुणवत्ता वाले नशीले पदार्थों का सेवन करने से विचार सूझते होंगे। मूलत: शिवसेना किसकी है? ये फैसला मोदी-शाह का चुनाव आयोग नहीं करेगा। यह फैसला जनता की अदालत में होगा, लेकिन जनता की अदालत में जाने की हिम्मत इनमें नहीं है। दूसरी बात यह है कि शिवसेना के गद्दार गुट के खिलाफ जनता के मन में आक्रोश है। इसलिए, इस समूह के कुछ सांसदों और विधायकों ने घोषणा की कि यदि जरूरत पड़ी तो हम कमल के निशान पर लड़ेंगे। अब कमल के निशान पर लड़ेंगे, ऐसा कहनेवालों की ‘शिवसेना’ कैसे हुई? और कमलाबाई के समूह में पहुंचे लोग ‘शिवसैनिक’ कैसे हुए? इसलिए इस समूह के शिवतीर्थ पर पहुंचते ही शिवसैनिकों ने उन्हें रोका। सत्ता के मद में चूर इन लोगों ने स्मृतिस्थल पर हंगामा किया। वे लोग विवाद बढ़ाना चाहते थे और असल में १७ नवंबर को शिवाजी पार्क इलाके में धारा १४४ लगवाकर बालासाहेब के स्मृति दिवस पर नाकाबंदी करनी थी। ऐसा सोचनेवाले लोग अघोरी स्वभाव वाले होते हैं और उन पर एतबार नहीं किया जा सकता है। इससे पहले मुंब्रा में शिवसेना की एक पुरानी शाखा को कमलाबाई के घातियों ने बुलडोजर चलाकर गिरा दिया। उद्धव ठाकरे वहां पहुंचे और उनके पीछे-पीछे हजारों लोग सड़क पर उतर गए। मुंब्रा की यह तस्वीर कमलाबाई समर्थक घातियों की नींद उड़ाने वाली साबित हुई। उसी निद्रा अवस्था में ये लोग शिवतीर्थ पहुंचे और अपना सम्मान कराकर लौट आए। शिवसेनाप्रमुख के समाधिस्थल पर कमलाबाई द्वारा प्रायोजित कुछ लोग ‘बालासाहेब’ हमारे भी ‘बाप’, ऐसा ताव में आकर बोल रहे थे। यह सुनकर हंसते-हंसते लोगों का पेट दुखने लगा। बालासाहेब निष्ठावानों के ‘पिता’ हैं और रहेंगे।’ गद्दार गुट का या तो कोई बाप नहीं होगा और यदि कोई होगा तो वह गुजरात या दिल्ली में होना चाहिए। क्योंकि जिस निरंकुश तरीके से वे लोग बर्ताव कर रहे हैं और महाराष्ट्र के खिलाफ साजिशों में शामिल हो रहे हैं, उसे देखते हुए उनके पिता शिवराय की धरती और बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना में हो ही नहीं सकते हैं। मोदी-शाह महामंडल का अंतिम लक्ष्य मुंबई के महत्व को नष्ट करना, महाराष्ट्र को कमजोर करना, मराठी मानुष को गरीब बनाना, उसके स्वाभिमान को नष्ट करना और उसके लिए शिवसेना पर प्रहार करना, यही है। मराठियों को लड़ाकर मजा देखना, इसका फॉर्मूला है। चूंकि फिलहाल इस साजिश में वर्तमान ‘घातियों’ के समूह के पूरी तरह से शामिल होने के कारण महाराष्ट्र द्रोहियों को मराठी मन के गौरव, शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे का नाम लेने का कोई अधिकार नहीं है। वे कमलाबाई की गोद में जाकर बैठ गए हैं। उन्हें वहीं बैठना चाहिए, नहीं तो मामला और आगे बढ़ जाएगा! कुछ भी हो जाए फिर भी ‘बालासाहेब’ उन पर कृपा नहीं करेंगे!