कविता श्रीवास्तव
मुंबई
हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें ९१ बार गाली दी है। लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि भाजपाइयों ने कांग्रेस पार्टी ही नहीं, बल्कि राहुल गांधी, सोनिया गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू आदि के बारे में कितनी बार अपशब्द कहे हैं। अन्य दलों के बारे में भी कितने अपमानजनक व आपत्तिजनक बातें कह जाते हैं। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम बात है, लेकिन स्तरहीन टिप्पणी या आपत्तिजनक शब्दों का चलन पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है। पुरानी बातों को कुरेदना कुछ दलों और उनके नेताओं का नियमित उपक्रम बन गया है। इससे राजनीतिक बयानबाजी का स्तर ही गिरता जा रहा है। प्रधानमंत्री को विषधारी नाग कहना स्वीकार नहीं है, लेकिन सोनिया गांधी को विषकन्या कहना भी स्तरहीनता की हद है।
कुछ समय पहले वीर सावरकर पर भी विवादित बयान आया था। स्वतंत्रता संग्राम के जांबाज वीर विनायक दामोदर सावरकर और स्वतंत्र भारत में हिंदुत्व की सबसे प्रखर और बुलंद आवाज हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने अपने-अपने समय में देश और सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए तत्कालीन परिस्थितियों से जमकर लोहा लिया। इन महापुरुषों ने हिंदुत्व के झंडे को कभी आंच नहीं आने दी। आम लोगों ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाए रखा। इन लोगों ने जो कुछ भी किया वह अब इतिहास बन चुका है। कोई कुछ भी कर ले वो इतिहास बदल नहीं सकता। वीर सावरकर ने अंग्रेजी हुकूमत को नाको चने चबाने पर मजबूर किया। अंग्रेजों के दमनकारी शासन ने उन्हें कालापानी की सजा दी, फिर भी अंग्रेज उनका इरादा और संकल्प बदल नहीं पाए। सावरकर ने सच्चे हिंदुत्व के लिए साहसी कारनामे किए, जो प्रेरणादायक इतिहास है। इसी तरह शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने हिंदुत्व को अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाए रखा। जब अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन तेज हुआ और अंतत: बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ तो उसकी जिम्मेदारी लेने को कोई आगे नहीं आया। उस समय केवल बालासाहेब ठाकरे ने छाती ठोककर कहा कि यदि मेरे शिवसैनिक ने यह काम किया है तो मुझे उसका अभिमान है। बाकी सभी लोग कार्रवाई के डर से दुबक गए। उस समय भाजपा के सुंदरलाल भंडारी ने तो स्वयं कहा कि यह काम शिवसेना का ही होगा। बालासाहेब ठाकरे ने यह बात स्वीकार कर ली। तब राम मंदिर आंदोलन के लिए महाराष्ट्र से अयोध्या गए लोगों ने ही नहीं, बल्कि हिंदुत्व की सोच रखने वाले समस्त जनसमुदाय ने बालासाहेब ठाकरे की दिलेरी पर गर्व का अनुभव किया। उनके खिलाफ मुकदमा भी चला। यह सब ऐतिहासिक सच है। बीते दिनों महाराष्ट्र के एक मंत्री और भाजपा के जिम्मेदार नेता ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के ऐतिहासिक सच पर प्रश्न उठाकर न केवल अपनी फजीहत करवाई, बल्कि इससे बालासाहेब जैसे महापुरुषों को अपमानित करने का प्रयत्न भी किया। उनके वरिष्ठ नेताओं ने उनको फटकार लगा दी है और इस मुद्दे पर वे अकेले-थकेले नजर आए। महाराष्ट्र के महापुरुषों पर इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणियां बीते कुछ दिनों से लगातार सामने आई हैं। भाजपा की पृष्ठभूमि से महाराष्ट्र के राज्यपाल बने भगत सिंह कोश्यारी ने अपने कार्यकाल में छत्रपति शिवाजी महाराज और महात्मा ज्योतिबा फुले पर विवादित बयान दिया था। इसका हर तरफ से विरोध होने के बाद अंतत: उन्हें इस्तीफा देकर जाना पड़ा। याद रहे कि `मोदी’ पर अपनी आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए ही राहुल गांधी को कोर्ट ने सजा सुनाई है और उनकी संसद सदस्यता भी नहीं रही।
गौरतलब है कि नेताओं में `बिगड़े बोल’ का चलन पिछले कुछ अर्से से राजनीति में बढ़ा है। २०१४ में नरेंद्र मोदी ने अपने प्रचार मंचों से `मां-बेटे की सरकार…मां-बेटे की सरकार…’ का सुर अलापा। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने नेहरू खानदान पर अनेक टिप्पणियां कीं। उनकी पार्टी ने राहुल गांधी के लिए `पप्पू’ संबोधन से हर जगह मजाक उड़ाया। आज भी हमारे प्रधानमंत्री अपने भाषणों में विरोधियों पर चुटकियां लेने से बाज नहीं आते। वे चुनावी भाषणों में आगामी मुद्दों पर बोलने से ज्यादा बीते सत्तर वर्ष की सरकारों और विरोधियों पर अक्सर अपना क्रोध उतारते दिखते हैं।
ध्यान रहे कि राजनीति में सभी नेता, पदाधिकारी और मंत्री हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के सम्मानित लोग होते हैं। उनके भाषणों पर पूरा देश गौर करता है। उसे लोकतांत्रिक आदर्श मानता है। एक समय था, जब खादी वस्त्रधारी नेता को बहुत ही सम्मान और आदर से देखा जाता था। उनके भाषणों को सुनने के लिए लोग दूर-दूर से एकत्रित होते थे। नेताओं को लोग अपना आदर्श मानते थे, लेकिन मौजूदा राजनीति में नेताओं द्वारा सामाजिक मुद्दों की बजाए निजी हमले करने की होड़ सी लगी है। पहले नेतागण व्यक्तिगत शब्दबाण नहीं चलाते थे। वे स्तरीय वक्तव्य देते थे। पर अब सत्ताधारी पक्ष की ओर से विरोधी दलों के लिए हर तरफ से स्तरहीन टिप्पणियां की जाती हैं।