फिल्म ‘बाजीगर’ से अपने करियर की शुरुआत करनेवाली शिल्पा शेट्टी ने ‘जानवर’, ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’, ‘लाइफ इन मेट्रो’, ‘अपने’, ‘फिर मिलेंगे’ जैसी सफल फिल्में दी हैं। ‘इंडियाज गॉट टैलेंट’ रियलिटी शो में जज के रूप में शिल्पा शेट्टी को काफी पसंद किया जा रहा है। फिल्म ‘सुखी’ में एक पंजाबी महिला का किरदार निभानेवाली शिल्पा शेट्टी की ये फिल्म २२ सितंबर को रिलीज हो रही है। पेश है, शिल्पा शेट्टी से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
फिल्म ‘सुखी’ स्वीकारने की क्या वजह रही?
फिल्म को स्वीकारने की एक ठोस वजह यह थी कि इंसान किसी भी उम्र का चाहे क्यों न हो, उसके मूड्स बदलते रहते है। इस फिल्म की कहानी की मुख्य किरदार सुखी की जर्नी है। सुखी का जीवन ही इस फिल्म की कहानी है।
सुखी और शिल्पा शेट्टी में कितनी समानता है?
सुखी की कहानी तो वैसे हर दूसरी महिला का जीवन है। कोई भी स्त्री जिसके बाल-बच्चे और परिवार है, उसका जीवन काफी हद तक सुखी से अवश्य रिलेट करेगा। खुद उसे क्या चाहिए ये उसके लिए मायने नहीं रखेगा, बल्कि परिवार और बच्चों की जरूरतें क्या हैं, यही सोच उसकी जिंदगी में बनी रहती है। हां, मैंने भी मेरा जीवन सुखी से रिलेट किया। यह तय है कि शादी और बच्चे होने के बाद जीवन के मायने बदल जाते हैं। मेरा प्रोफेशनल स्टेटस होने के बावजूद बच्चे होने के बाद मैंने हमेशा फील किया कि मैं मां हूं। लगातार काम करते हुए मैंने अपने बच्चों के सामने एक आदर्श रखने की कोशिश की, एक मां का कामकाजी होना अच्छा है। बच्चों को भी मां का सम्मान करना चाहिए।
व्यस्त रहने के बावजूद आपने घर और करियर कैसे मैनेज किया?
मैं खुद इस बात पर बिलीव करती हूं कि हर स्त्री को ईश्वर ने मल्टी टास्किंग बनाया है। सुबह की पहली चाय से लेकर नाश्ता, खाना, टिफिन, घर की सफाई, कोई बीमार हो तो उसे दवा देना, घर-गृहस्थी की चीजें लाना बस यह एक मां करती है। घर की हर जिम्मेदारी ढोने वाली मां किसी देवी से कम नहीं होती। शहरों में रहनेवाली महिलाएं नौकरी करने के साथ-साथ घर-परिवार भी देखती हैं। अगर मैं अपनी बात करूं तो मैं सब्जियों के रेट्स से लेकर हर चीज के दाम तक जानती हूं। मैं एक ऑलराउंडर मां हूं और मैं सब जानती हूं।
आपका बचपन कैसा रहा?
मध्यमवर्गीय परिवार में मेरा बचपन बीता। त्योहारों पर हमें नए कपड़े मिलते थे। मध्यमवर्गीय संस्कारों के बीच मैं पली-बढ़ी और उन्हीं संस्कारों में मैंने अपने बच्चों को पाला। मेरी माली हालत अच्छी है, इसके बावजूद मैंने अपने बच्चों को पैसों का महत्व और बड़ों का रिस्पेक्ट करना सिखाया।
पिछले कुछ सालों से खासकर अभिनेत्रियों के पीछे पैपराजी लग जाते हैं। क्या इसके लिए आप मानसिक रूप से तैयार रहती हैं?
सच कहूं तो जब मैं अकेली होती हूं, तब अगर मेरी फोटोज पैपराजी क्लिक करते हैं तो मुझे एतराज नहीं होता। लेकिन बच्चों को मैं मीडिया अटेंशन से दूर रखना चाहती हूं। स्टारों की अपनी पारिवारिक जिंदगी है, लेकिन फोटोग्राफर्स का क्या उन्हें बस फोटो चाहिए। मतलब चाहिए। इसकी शिकायत किससे करें?
क्या आप इस बात को मानती हैं कि आपको सफलता ४० के पार मिली है?
फिल्म ‘बाजीगर’ से मैंने फिल्मों में डेब्यू किया और फिल्मों का सिलसिला अनवरत जारी रहा। अपने ३० वर्ष के करियर में मुझे कभी शिखर की १० अभिनेत्रियों का दर्जा नहीं मिला। अभिनय, ग्लैमर, हिट फिल्में होने के बावजूद मैं जो डिजर्व करती थी, वो स्थान मुझसे दूर रहा। शायद उस वक्त मेरी किस्मत ने मेरा साथ नहीं दिया। सफलता मुझसे दूर रही। अब टीवी के रियलिटी शो ने मुझे मेरी पहचान लौटा दी है। मुझे उस वक्त न सही, अब न्याय मिला है। मैं आज से ३० वर्ष पहले भी रिलेवेंट थी और आज भी हूं।
अपने सास और ससुर का जिक्र आपने कभी नहीं किया?
मेरे सास-ससुर पिछले ४०-४५ वर्षों से लंदन में रहते हैं। बच्चों की हर छुट्टियों में उन्हें लेकर मैं अपने सास-ससुर के पास लंदन चली जाती हूं। फिल्म ‘सुखी’ देखने के लिए मेरी सासू मां बहुत एक्साइटेड हैं। सासू मां बताती हैं कि जब वो लंदन गर्इं, तब उन्हें अंग्रेजी बोलना और समझना नहीं आता था। सास और ससुर दोनों एक कॉटन पैâक्टरी में काम करते थे। तब राज बहुत छोटे थे। उन्होंने बड़े संघर्षमय दिन बिताए, लेकिन अपनी मेहनत और सच्चाई के साथ वे आगे बढ़ते गए। मुझे उन पर गर्व महसूस होता है।