सामना संवाददाता / मुंबई
अल नीनो का असर दुनिया भर में देखा जा रहा है। बारिश, ठंड, गर्मी हर मौसम में अंतर दिखाई दे रहा है। मौसम में लगातार हो रहे बदलाव की वजह से बीमारियों के बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि २०२३ और २०२४ में अल नीनो की वजह से डेंगू, चिकनगुनिया और जीका के मामले बढ़ सकते हैं। इसे लेकर तैयारी करने की जरूरत है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम ने कहा कि मौसमी घटनाओं की वजह से डेंगू, चिकनगुनिया और जीका जैसे वायरल बीमारियों के प्रसार में वृद्धि होने की संभावना है। फिलहाल डब्ल्यूएचओ जीका, चिकनगुनिया और डेंगू जैसी वायरल बीमारियों के प्रसार में वृद्धि से निपटने के लिए तैयारी कर रहा है। इस साल और अगले अल नीनो का सबसे ज्यादा असर दिखाई देने की संभावना है। इस वजह से डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां तेजी से पांव पसार सकती हैं। जलवायु परिवर्तन भी मच्छरों के प्रजनन और इन बीमारियों के प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं। बता दें कि अल नीनो की वजह से मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के आसपास समुद्र की सतह औसत से ज्यादा गर्म हो जाती है।
बीमारियां लेंगी महामारी का रूप
इस खतरे से निपटने के बारे में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने बताया कि छह बीमारियां महामारी का रूप लेंगी। उन्होंने कहा कि हमने पिछले साल एक ग्लोबल पहल की थी, जिसका उद्देश्य वायरस से होने वाली इन बीमारियों का पता लगाना और दुनिया भर में इसे फैलने से रोकने की क्षमता को मजबूत करना है। देशों ने जो क्षमताएं कोविड-१९ के लिए स्थापित की हैं, उनमें से कई का उपयोग डेंगू और अन्य बीमारियों के लिए भी किया जा सकता है।
क्या है अल नीनो?
यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार, अल नीनो तापमान के नए रिकॉर्ड बना सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जो पहले से ही अल नीनो के दौरान औसत से ऊपर तापमान महसूस कर रहे हैं। अल नीनो घटनाएं आमतौर पर हर २ से ७ साल में होती हैं। प्रशांत महासागर में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल नीनो कहा जाता है। आखिरी अल नीनो घटना फरवरी और अगस्त २०१९ के बीच हुई थी, लेकिन इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कमजोर था। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में अल नीनो दक्षिणी दोलन के कारण मानसून में देरी हुई। चक्रवात बिपरजॉय ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है।
अल नीनो के साइड इफेक्ट
बता दें कि जिस साल अल नीनो की सक्रियता बढ़ती है। उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर इसका असर पड़ता है। जिससे धरती के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ जगहों पर सूखे की स्थिति बन जाती है। भारत में इस बार कम बारिश होने की आशंका जताई जा रही है। अल नीनो की वजह से जहां बाढ़ के हालात बनते हैं वहां हैजा, डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया के मामले बढ़ जाते हैं। वहीं जहां सूखे की स्थिति होती है, वहां जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
अल नीनो से बढ़ रहा वायरस का खतरा
डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां फैलाने वाले मच्छर गर्म मौसम में तेजी से बढ़ते हैं। अल नीनो की वजह से दुनिया के विभिन्न हिस्सों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। दक्षिण अमेरिका से लेकर एशिया तक के क्षेत्रों में ट्रॉपिकल बीमारियों में पहले से ही वृद्धि हुई है।