अमिताभ श्रीवास्तव
वस्तुत: इसे भगवान शिव को अर्पण किया जानेवाला पदार्थ माना जाता है। शिव को भांग प्रिय है। यह एक मिथक है। यदि असल में शिव को जानेंगे और भांग के अर्पण की बात करेंगे तो यह एक संकेत है जीवन के लिए कि शिव ने लगभग त्याज्य चीजों को भी अपनाकर मनुष्यों के सामने उदाहरण रखा है कि प्रकृति की कोई भी वस्तु जीवन के लिए त्याज्य नहीं है यदि उसका उपयोग एक उचित ढंग से किया जाए। क्योंकि भांग भी औषधीय गुणों से भरी पड़ी है। अंग्रेजी में इसे वैâनाबीस, बीड कहते हैै, जिसमें टेट्राहाइड्रोकार्बनबिनोल पाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मैंगनीज, विटामिन ई, मैग्नीशियम एवं फास्फोरस समेत कई पोषक तत्व होते हैं। इसे सही मात्रा में खा लेने से कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है क्योंकि भांंग खून को प्यूरिफाई करने का काम करती है।
दूसरी तरफ जो एक मान्यता है, उसके महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। एक कथा है कि समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था, वो शिव ने गले के नीचे नहीं उतरने दिया। ये विष बहुत गर्म था। इस कारण शिव को गर्मी लगने लगी। शिव वैâलाश पर्वत पर चले गए। विष की गर्मी को कम करने के लिए शिव ने भांग का सेवन किया। भांग को ठंडा माना जाता है। इसके बाद से भगवान शिव को भांग बहुत पसंद है। भगवान शिव की पूजा के दौरान भांग का इस्तेमाल भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भांग के बिना शिव की पूजा अधूरी है। कहा जाता है कि शिव पूजा में भांग अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। भांग के साथ धतूरा और बेलपत्र भी अर्पित किया जाता है।
ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों में भी इसका जिक्र है। अथर्ववेद में जिन पांच पेड़-पौधों को सबसे पवित्र माना गया है, उनमें भांग का पौधा भी शामिल है। इसे मुक्ति, खुशी और करुणा का स्रोत माना जाता है। इसके मुताबिक भांग की पत्तियों में देवता निवास करते हैं। अथर्ववेद इसे ‘प्रसन्नता देनेवाले’ और ‘मुक्तिकारी’ वनस्पति का दर्जा देता है- पञ्च राज्यानि वीरुधां सोमश्रेष्ठानि ब्रूम:। दर्भो भङ्गो यव: सह ते नो मुञ्चन्त्व् अंहस: पांच पौधों में सोम श्रेष्ठ है ऐसी औषधियों के पांच राज्य, दर्भ, (भङ्ग) भांग, (यव:) जौ और (मह:) बलशाली धान को (ब्रूम:) हम कहते हैं कि वे हम सबको पाप से बचावे। कहते हैं कि भांग और धतूरे के सेवन से ही भगवान शिव हलाहल विष के प्रभाव से मुक्त हुए थे इसलिए शंकर को भांग पसंद है।
दूसरी बात यह भी कि होली पर भांग का प्रचलन काशी से अधिक पैâला। यूं तो पूरे देश में अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग तरह की प्रथाएं और भांग का उत्सव है। राजस्थान में अलग तो ब्रज की बात भी निराली है। यहां तो यह भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने भी भांग का सेवन किया था और गोपियों के साथ होली खेली थी। इन सबके बावजूद काशी विशेष रूप से प्रसिद्ध हुई है। इसका कारण है कि बाबा विश्वनाथ की नगरी होने तथा इस शहर के स्वभाव में मौज, मस्ती और एक अल्हड़पन के होने से भी होली जैसे त्योहार पर ठंडाई का प्रचलन बढ़ा। काशी के रंगोत्सव का देशभर के रंगोत्सव से भिन्न आनंद है। इसमें कला भी है, साहित्य भी, विज्ञान और अध्यात्म भी। यहां बरसों से आबाद ठंडाई की दुकानें सत्ता-साहित्य से जुड़े लोगों का अड्डा रही हैं। जयशंकर प्रसाद और रूद्र जी तो बिना भंग की तरंग के सृजन के आयाम ही नहीं खोलते थे। बनारस का मुनक्का प्रसिद्ध है। मुनक्का का सेवन स्वास्थ्यवर्धक होता है। मुनक्के में काजू, किशमिश, पिस्ता, बादाम का पेस्ट और उसी अनुपात में भांंग होती है। बहुत ही स्वादिष्ट। भांग का भाषा की शुद्धता से भी कोई रिश्ता है क्योंकि हिंदी का पहला व्याकरण लिखने वाले कामता प्रसाद गुरु, संस्कृतनिष्ठ हिंदी के प्रवर्तक महाकवि जयशंकर प्रसाद, कथाकार रूद्र काशिकेय, महाप्राण निराला जैसे साहित्यकारों को भांग पसंद रही।
बहरहाल, ले-देकर होली पर भांग के सेवन करने के बहानों में हमारे देश में चल रही पौराणिक कहानियों का हाथ भी ज्यादा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली के दिन भगवान शिव और विष्णु की दोस्ती के प्रतीक के तौर पर भांग का सेवन करते हैं। दरअसल, ऐसा माना जाता है कि भक्त प्रह्लाद को मारने की कोशिश करनेवाले हिरण्यकश्यप का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप लिया था। लेकिन हिरण्यकश्यप का संहार करने के बाद वे क्रोधित थे। उन्हें शांत करने के लिए भगवान शिव ने शरभ अवतार लिया था। इसे भी एक कारण माना जाता है कि होली के दिन भांग का सेवन किया जाता है। प्रसाद के रूप में इसका सेवन किया जाता है। इसके अलावा कई अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं।
मुगलकालीन इतिहास में भी होली के अवसर पर भांग के सेवन का जिक्र है। मुगल बादशाह हुमायूं भी ‘माजूम’ के शौकीन थे। इसे भांग में दूध, घी, आटा और कुछ मीठा मिलाकर बनाया जाता था, वहीं मध्यकाल के मुगलिया दौर में यूनानी चिकित्सा में भी भांग का इस्तेमाल किया जाता था।
अजीब नशा है
होली पर बनाई जानेवाली मिठाइयों में भांग का इस्तेमाल होने लगा है। यहां तक कि भजिए, पकौड़े आदि जैसे नमकीन व्यंजनों में भी इसे मिलाया जाने लगा है। वैज्ञानिक दृष्टि से भांग का महत्व भी है और इसके सेवन से नुकसान भी है। इसलिए हम तो होली के इस अवसर पर यही कहेंगे कि भांग न खाई जाए। यह एक नशा है और यदि खाई भी जाए तो बहुत कम मात्रा में। रंगोत्सव में भांगोत्सव कहीं रंग में भंग न डाले, बस इसी समझ के साथ होली मनाई जाए। क्योंकि अब इसके नुकसान को भी पढ़ा जाए। अगर इसका बहुत ज्यादा मात्रा में सेवन किया जाता है तो दिमाग ठीक से काम करना बंद कर सकता है। चिंता बढ़ जाती है। लोग कुछ भी बोलने लगते हैं। अजीब-अजीब सी चीजें दिखने लगती हैं।
हार्ट अटैक की संभावनाएं और ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है, आंखें लाल होने लगती हैं। सांस लेने की परेशानियां बढ़ सकती हैं। महिलाओं को गर्भ धारण करने में भी पेरशानी हो सकती है। हालांकि, भांग का इस्तेमाल दवा के रूप में भी किया जाता है क्योंकि इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया की करीब २.५ फीसदी आबादी यानी १४.७ करोड़ लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। दुनिया में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि यह सस्ती मिल जाती है और ज्यादा नशीली होती है।
रंगोत्सव को रंगों के जरिए ही मनाया जाए तो उत्साह अधिक होता है। साथ ही हम अपने पर्व के मान-सम्मान को भी बढ़ावा दे सकते हैं। यह प्रेम का पर्व है। प्रेम के रंगों का उत्सव है। भले ही भांग पीने या इसके सेवन की एक प्रथा भी अमल में लाई जाती है मगर यह उत्सव के आनंद को घटाती ही है क्योंकि मस्तिष्क जब नशे में हो जाता है तो पर्व की गरिमा का खयाल नहीं रह पाता। भांगोत्सव न रहे यह रंगोत्सव ही हो, इस अपेक्षा के साथ आप सब पाठकों को होली की शुभकामनाएं।
(लेखक सम सामयिक विषयों के टिप्पणीकर्ता हैं। ३ दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं व दूरदर्शन धारावाहिक तथा डाक्यूमेंट्री लेखन के साथ इनकी तमाम ऑडियो बुक्स भी रिलीज हो चुकी हैं।)