पंकज तिवारी
कृपालू बबा भंइसी के बड़ा शौकीन मनई रहेन। आठ दस भंइस हमेशा दुआरे जरूर बंधीं रहत रहइ। बिना गोरुन के ओनकर सोउब जागब अपाढ़ होइ जात रहा। नशा जइसन होइ गऽ रहा गोरुन के। खाइ-खियावइ दुइनउ में बड़ा शौकीन रहेन, का मजाल कि केउ खाइ बइठइ अउर बिना दूधे अउर घीये कऽ उठी जाइ। अइयउ वोइसइ रहिन। काम भरे कऽ दूध गरमाइ लेंइ, बाकि अंगेठी में जमाइ देत रहिन। दूध-दही खोब इफराद रहा। मंगनी तऽ एस जात रहा जेकर कवनउ हिसाबइ नाइ रहा। केहू के घरे मेहमान आयेन। दूध मांगइ आइग। केहू के माठा पियइ के मन बा मेटका लिहेस बबा के दुआरे आइग। दुर्लभ परानी रहेन दुनउ जने, कभंउ ना त करबै नही किए। खटइ के दिन-दिन भर पड़ै पर केहू के तानौ नहीं मारत रहे कि राति-दिन खटी हम अउर माठा पीयइ तोहार परिवार। सबेरे माठा बदे लाइन लागत रही बबा के दुआरे अउर संझां की घंटन गलचौरा होई, जवने में भंइस भूसा अउर गोरुआर इहई चर्चा के मुख्य विषय रहइ। माठा एतना बढ़िया रहइ कि एकाक गिलास उपरैं पियाइ जात रहा, जबकि घियु त गजब दानेदार रहै। बबा खाइ-पीयै के शौकीन रहबै किहेन। हरियर सब्जी के खेतिउ खोब बढ़िया किहे रहेन। नेनुआ, चिचिढ़ा, कोंहड़ा, लौकी, अउरउ लगभग कुलियइ सब्जी दुआरे वाले खेते में अउर कुछु छानी के उप्पर चढ़ाइके बबा अपने खाइ भरे के का बल्की अउरइ होआइ लेत रहेन। एक बेर सबेरेन सबेरे झालर-झूलुर लगी सइकिल लिहे-दिहे बबा बहिनिअउरे जात रहेन। कच्ची सड़के से होत कंई नहरा वाले रस्ते से जइसइ बहिनों के गांउ में बबा ओलियानेन उंही गंउअइ के कमलेश भेंटाइ गयेन। बबा के संघतिया यार रहेन, बहिनिया के बियहवा में येइ अगुअई किहे रहेन। बबा ओहरइ चला गयेन। बड़की खटिया बइठइ के मिली अब की नाइ कुर्सी नाइ धरी गइ। देसी गुड़, इनारा कऽ ठंडा पानी आइ। थका माना बबा खोब मन से पानी पीयेन। कुछ देर बाद गाढ़इ दूध आइ गवा। दुधवा देखतइ मान बबा के लाग इ तऽ हमहूं से बढ़िया भंइस रखि लिहे बा का? बबा कहेन- ‘कमलेश हमइ पहिले आपन भंइस देखावऽ’। कमलेश उंहीं बिना बबा के अपने घरे लियाइन आइ रहेन, ओंहइ पइसा के जरूरत रही अउर ओ भंइस बेचवंइया रहेन। मनइ मन खोब खुश भयेन। बबा भंइस देखिके मोहाइ गयेन- ‘यार कमलेश ई भंइस हमइ देइदऽ। जेतना कहऽ दाम देइ देई।’ कमलेश जानि के रचि के ना-नुकुर किहेन बाद में सौदा तंय होइ गवा। बबा बयाना दिहेन अउर बिना बहिनिया के इंहां गयेन घरे लउटि लिहेन। रस्ता में दुइ चार संघिन के पइसा बिना सहेजि के बबा गांउ घरेउ से जूगाड़ करइ में लगि गयेन। राति होइ के पहिलेन बबा कुलि पइसा के जुगाड़ कइ भयेन अउर अराम से सोवइ चला गयेन। राति भरि आंखी में नींद कहां। दुआरे ओलरा बसि रहि-रहि के आसमानइ निहारंइ। कब सबेर होइ कब भंइसि आवई? ओहर कमलेश खाइ-पी के सोवइ अपने पाही पे चला गयेन। कुछु देर अपने भंइसी के बारे में सोचेन अउर सोइ गयेन। राति दुइ ढाई बजा होये कि पाही के बगले वाले नारे पे मनइन के फुसफुसाबे के अवाज आइ। कमलेश अकनतइ कि ओहरइ पंहुचि गयेन। का भऽ हो? के अहत गयऽ? का होत बाऽ यंह? ढेर प्रश्न सथवंइ दागि दिहेन कमलेश। ओन्हन दुइनउ सकपकानेन तउ पर ओहमा से एक मोर्चा संभालि लिहेस। भइया गऽ रहे मेला से भंइसि लियावइ रस्तवा में गड़ियइ बिगड़ि गइ रही, ओका उन्हीं छोड़ि के पैदलइ लेइके आवत रहे कि हेये गाड़ी वाले भइया भेंटाइ गयेन अब एन्हइन के लियाइ के घरे जात रहे तवन भंइसिया डलवा में चढ़तइ नाइ बा। हे भइया हलऽ कुछु तोंहऊं के देइ देथई भंइसिया लदवाइ देत। कमलेश रगड़ि के नोटे क अंदाजा लगायेन कम से कम पांच सौ बा। ओ तो मनइ मन मगन होइ गयेन। के अब सवाल पूंछइ? फट से भंइसि लदवाइन त दिहेन। सबेरे बबा भंइसि लेइ आयेन, येहर भंइसी के हेरवार छुटा हयेन। भंइसि चोरी होइ गइ रही। कमलेश अब केसी कहंइ कि हमहिन तऽ लदवाये हऽ आपन भंइसिया। रोइ-रोइ के बुरा हाल बाऽ।
(लेखक बखार कला पत्रिका के संपादक एवं कवि, चित्रकार, कला समीक्षक हैं)