• हथियारबंद जवानों की नहीं करती रेलवे कोई मानसिक जांच
• आरपीएफ यूनियन ने लगाया प्रश्नचिह्न
• आईजी समेत संबंधितों पर कार्रवाई की मांग
नागमणि पांडेय / मुंबई
आतंकियों एवं अपराधियों के रडार पर रहनेवाली रेलवे में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अब तक कई बार सवाल खड़े हो चुके हैं, लेकिन रेल यात्रियों के लिए रेलवे के रक्षक अर्थात बीमार रेलकर्मी भी खतरा बन सकते हैं, ऐसा जयपुर-मुंबई सुपरफास्ट एक्सप्रेस में कल आरपीएफ कॉन्सटेबल द्वारा की गई गोलीबारी के बाद सामने आया है। भोर में साढ़े ५ बजे के दौरान घटी इस घटना में रेलवे कॉन्सटेबल द्वारा की गई १२ राउंड फायरिंग में एक एएसआई व ३ अन्य यात्रियों की मौत हो गई। इस घटना के बारे में पश्चिम रेलवे के पुलिस आयुक्त ने आरपीएफ जवान को मानसिक रूप से बीमार बताया है, जिसके बाद ऐसे सवाल उठने लगे हैं कि यात्रियों की सुरक्षा के लिए ट्रेनों में स्कॉटिंग के लिए किसी मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को शस्त्र देकर आला अधिकारी वैâसे तैनात कर सकते हैं? इसी के साथ आईजी सहित अन्य तमाम अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग तेज हो गई है।
जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन में सोमवार भोर मे गोलीबारी की घटना को लेकर पश्चिम रेलवे पुलिस आयुक्त ने बताया कि आरपीएफ कांस्टेबल चेतन कुमार की तबीयत खराब थी। उसे हाल ही में गुजरात से मुंबई ट्रांसफर किया गया था। वह बहुत ही उग्र स्वभाव का व्यक्ति था।
सोमवार को उसने ट्रेन में उसके साथ तैनात अधिकारी (एएसआई) व तीन अन्य यात्रियों को गुस्से में गोली मार दी। मरने वाले आरपीएफ के एएसआई की पहचान टीकाराम मीणा के रूप में सामने आई है, जबकि बाकी तीन सामान्य रेल यात्री थे।
सूरत में चढ़ा था आरोपी चेतन
आरोपी कॉन्सटेबल चेतन उत्तर प्रदेश के हाथरस का रहने वाला है। पहले उसकी पोस्टिंग गुजरात में थी। हाल ही में गुजरात से मुंबई ट्रांसफर हुआ था। आरपीएफ सूत्रों ने बताया कि एक्सप्रेस ट्रेन की सुरक्षा के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी और तीन से चार पुलिसकर्मी हमेशा तैनात रहते हैं। एक्सप्रेस ट्रेनों पर नजर रखना ट्रेन एस्कॉर्टिंग कहलाता है। वे ट्रेन से यात्रा करते हैं। कल आरोपी चेतन एक ट्रेन को सूरत रेलवे स्टेशन तक ले गया। सूरत रेलवे स्टेशन पर कुछ घंटे आराम किया। चेतन आज सुबह २.५० बजे सूरत रेलवे स्टेशन से जयपुर मुंबई सेंट्रल सुपरफास्ट एक्सप्रेस में चढ़ा। चेतन का नेतृत्व दो अन्य कांस्टेबल और एएसआई टीकाराम कर रहे थे। वापी स्टेशन से रवाना हुई ट्रेन पालघर रेलवे स्टेशन से गुजर रही थी, तभी चेतन ने फायरिंग कर दी। विरार स्टेशन के बाद आरोपी ने चेन खींच ली। आरोपी भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन पहले से ही अलर्ट किए गए रेलवे स्टेशन पर पुलिस ने उसे पकड़ लिया। बाद में ट्रेन को बोरीवली रेलवे स्टेशन ले जाया गया, जहां शव को उतारकर पोस्टमार्टम के लिए शताब्दी अस्पताल भेज दिया गया। आरोपी कॉन्स्टेबल द्वारा जयपुर एक्सप्रेस के कुल तीन डिब्बों में गोलीबारी की गई। आरपीएफ कांस्टेबल चेतन सिंह ने बी-५, एस-६ और पेंट्री कार में फायरिंग की।
गार्ड को भी दी धमकी
ट्रेन में मौजूद गार्ड विकाश जीना ने मामले के बारे में अपने ग्रुप में जानकारी देते हुए बताया कि ट्रेन की चेन पुलिंग की गई थी। पता चला कि आरपीएफ कर्मी ने अपने ही स्टाफ को गोली मारी थी। वह डाउन थ्रू लाइन पर मेरी ओर दौड़ रहा था, जब मैंने उससे पूछा तो वह तेजी से भाग रहा था और उसने मुझे भी बंदूक दिखाई। गार्ड ने कहा, ‘मुझे यात्रियों से पता चला कि उसने ४ लोगों को गोली मारी है और यात्री इस हरकत से डरे हुए थे। घटना के संदर्भ में जानकारी के लिए विकास जीना से संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी। मिली जानकारी के अनुसार, रेलवे ने उन्हें किसी से भी बात मना करने से मना किया है।
ड्यूटी दिए जाने पर सवाल
आरपीएफ यूनियन के पूर्व महासचिव डीसी पांडेय ने बताया कि हर आरपीएफ जवान की साल मे एक बार मेडिकल जांच होती है। वह अगर फिट नहीं होते हैं तो उनका उपचार करने के साथ ही उसके अनुसार ही ड्यूटी दी जाती है, लेकिन यह मानसिक रूप से बीमार होने की पुष्टि खुद आरपीएफ आयुक्त कर रहे हैं, इसका मतलब विभाग को इसकी जानकारी थी। इसके बावजूद मानसिक रूप से बीमार जवान को रेलवे ट्रेन स्कॉर्ट करने के लिए हथियार वैâसे दिया गया, इसके लिए दोषी अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराते हुए कार्रवाई की जानी चाहिए।
कितनी सुरक्षित है रेल सुरक्षा?
यात्रियों के सुरक्षित सफर के लिए जिम्मेदार सभी रेलकर्मियों का स्वस्थ होना उतना ही जरूरी होता है, जैसा कि हवाई यात्रा के दौरान पायलट और दूसरे क्रू मेंबर्स के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। लेकिन कल जयपुर-मुंबई सुपरफास्ट ट्रेन में मानसीक रूप से अस्वस्थ आरपीएफ के जवान द्वारा की गई फायरिंग की घटना ने रेल सफर के दौरान यात्रियों एवं उनकी सुरक्षा में तैनात लोगों की सुरक्षा को सवालों के घेरे में ला दिया है। एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर जानकारी देते हुए बताया कि आरपीएफ के जवान या अधिकारियों के लिए मात्र ६ महीने पर सिर्फ ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी आम जांच ही की जाती है। रेलवे द्वारा मानसिक तनाव या मानसिक स्वास्थ्य को लेकर किसी भी प्रकार की जांच नहीं की जाती है, वहीं एक अन्य अधिकारी ने दावा किया कि आरपीएफ के जवानों के स्वास्थ्य की हर ५ साल में विस्तृत जांच की जाती है लेकिन इसमें भी स्ट्रेस टेस्ट किया जाता है या नहीं इसका खुलासा नहीं हो सका।
रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, आरोपी के पिता भी रेलवे में थे पिता की मृत्यु के बाद आरोपी को क्षतिपूर्ति के आधार पर रेलवे में नौकरी दी गई थी। प्रारंभ में उसे आरपीएसएफ (रेलवे सुरक्षा विशेष बल) में तैनात किया गया था, बाद में पश्चिम रेलवे (परे) आरपीएफ में स्थानांतरित कर दिया गया। उनके अनुरोध पर मार्च २०२३ में उसे भावनगर डिविजन से मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया था। पश्चिम रेलवे के एक अधिकारी ने कहा कि हाल ही में वह छुट्टी पर अपने मूल स्थान पर गए थे, जहां से वह लौट आए और १८ जुलाई, २०२३ को ड्यूटी में शामिल हो गए। इससे पहले आरोपी कॉन्स्टेबल पर रतलाम में एक ऑटोरिक्शा चालक एवं भावनगर में एक अन्य एसएसआई पर हमला करने का आरोप लग चुका है।