मुख्यपृष्ठस्तंभक्या मोदी हेट स्पीच से चुनाव जीत पाएंगे?

क्या मोदी हेट स्पीच से चुनाव जीत पाएंगे?

सुषमा गजापुरे

भारत में पिछले कई वर्षों से हेट स्पीच पर लगातार बहस होती रही है। विशेष रूप से कई हिंदू धर्मगुरु, भाजपा के नेता तथा हिंदू संगठनों से जुड़े व्यक्तियों ने समय-समय पर सांप्रदायिकता का जहर उगला है। अधिकतर वक्तव्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर दिए जाते हैं और उन्हें देशद्रोही बताने की पुख्ता कोशिशें की जाती रही हैं। योगी आदित्यनाथ का ८०:२० का फॉर्मूला मुसलमानों को हाशिए पर धकेलने जैसा ही था। कई हिंदू समाराहों में खुलकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ जिस प्रकार से विषवमन किया जा रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है। हिंदुओं में बढ़ती कट्टरवादिता अब विश्व में चर्चा का विषय बनी हुई है। नूपुर शर्मा ने जिस प्रकार प्रोफेट मुहम्मद के प्रति जो अपशब्द कहे थे, उन पर जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं आई थीं, वो हम सब अभी तक भूले नहीं हैं।
हेट स्पीच या नफरती भाषण आखिरकार क्यों दिए जाते हैं। इन नफरती भाषणों के द्वारा विद्वेष, वैमनस्य, जातीय रंजिशें, सामाजिक विद्वेष पैâलाकर अपने जाति, धर्म के लोगों को अपने पक्ष में करने के प्रयास किए जाते हैं। सोशल मीडिया के दुरुपयोग के द्वारा नफरती संदेशों को करोड़ों लोगों तक पहुंचाया जाता है, ताकि एक वर्ग विशेष के खिलाफ घृणा का संचार हो सके। एक सरकारी रिपोर्ट कहती है कि भारत में हेट स्पीच को किसी भी कानून में स्पष्ट परिभाषित नहीं किया गया है। जितने भी नियम-कानून हैं, उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार सरकारी तंत्र इस्तेमाल करता है। नेतागण इससे वाकिफ हैं इसीलिए वे खुलेआम बिना भय वक्तव्य देते हैं और खुलकर सामाजिक मान्यताओं की धज्जियां उड़ाते हैं। चुनावों के दौरान आज के चुनाव आयोग से अब कोई उम्मीद नहीं बची है, क्योंकि वो अब सत्ताधीशों के गुलामों की तरह व्यवहार कर रहा है।
प्रज्ञा ठाकुर हो या स्वामी नरसिंहानंद हो, इन सबके जहरीले वक्तव्य हम सबको ज्ञात हैं। महात्मा गांधी की तस्वीरों पर गोली मारना और गोडसे का महिमामंडन करना अब कट्टर हिंदुओं में आम रूप से प्रचलित होता जा रहा है। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि अब महात्मा गांधी के राष्ट्रपिता होने पर भी सवाल उठाए जाते हैं और उनको मुसलमानों का हितैषी बताकर बदनाम किया जाता है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री मोदी ने अब सभी हदें पार कर ली हैं। जिस प्रकार से उन्होंने अपनी कई चुनावी सभाओं में मुसलमानों के प्रति विषवमन किया है, वह हैरान कर देने वाला है। क्या किसी देश का प्रधानमंत्री इतना नीचे गिर सकता है कि चुनाव जीतने के लिए वो किसी गली के छुटभैये जैसे व्यवहार करना शुरू कर दें। चुनावी सभाओं में मोदी जी के द्वारा कहे हुए कुछ वक्तव्य नीचे दिए हैं।
‘पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे- जिनके ज्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे। क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? आपको मंजूर है ये… अगर कांग्रेस सत्ता में आई, तो वह लोगों की संपत्ति को मुसलमानों में फिर से बांट देगी। ये ‘शहरी नक्सली’ मानसिकता, माताओं और बहनों, आपका ‘मंगलसूत्र’ भी नहीं छोड़ेंगे। वे उस हद तक जा सकते हैं। कांग्रेस के घोषणापत्र में दावा किया गया है कि वह माताओं और बहनों के पास मौजूद सोने की गणना करेगी, उसके बारे में जानकारी इकट्ठा करेगी और फिर उस संपत्ति को वितरित करेंगे। वे इसे किसको वितरित करेंगे? मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।’
अगर हम कानूनी प्रावधानों को देखें तो मोदी जी ने देश के हर उस कानून का उल्लंघन किया है, जिसके फलस्वरूप उन्हें न केवल कटघरे में खड़े होना पडेगा, बल्कि उन्हें इसके लिए सजा भी दी जा सकती है। आइए देखते हैं हेट स्पीच पर कानूनी प्रावधान क्या कहते हैं:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद १९ (२) के प्रावधानों के अनुसार नफरती भाषण प्रतिबंधित हैं। यह अनुच्छेद प्रâीडम ऑफ स्पीच के उपयोग-दुरुपयोग में जो अंतर है उसे मोटा- मोटा परिभाषित करता है। ऐसे भाषण जो देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सार्वजनिक व्यवस्था पर नकारात्मक असर पहुंचाते हैं, उन्हें प्रतिबंधित भी करता है। भारतीय दंड संहिता १५३ ए एवं १५३ बी भी इस तरह की किसी भी हरकत करने वालों के लिए ही बना है। आईपीसी की धारा २९५ ए एवं २९८, ऐसे मामलों के लिए है, जो जान-बूझकर एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किए गए हों। आईपीसी की धारा ५०५ (१) एवं ५०५ (२) ऐसे प्रकाशनों पर केंद्रित है, जो घृणा, दुर्भावना के उद्देश्य से किए गए हों और उन्हें अपराध की श्रेणी में रखता है। एससी-एसटी एक्ट भी इस पर रोक लगाता है। नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम १९५५ लिखित, मौखिक, इशारों, संकेतों तथा किसी भी विजुअल माध्यम से इस तरह के कृत्य पर दंड का प्रावधान करता है।
अगर इन प्रावधानों को देखें तो मोदी जी ने प्रधानमंत्री पद पर होते हुए समाज में एक वर्ग विशेष (मुसलमान) के खिलाफ नफरत पैâलाने का कार्य किया है। इसके सारे साक्ष्य भी मौजूद हैं और उन्हें कभी भी अदालती कटघरे में घसीटा जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या भारत की संस्थाएं इतना साहस जुटा पाएंगी कि वो प्रधानमंत्री को अदालत में ले जाएं। ब्रिटेन में कानूनी संस्थाएं वहां के प्रधानमंत्रियों को भी दंडित करने से नहीं चूकती हैं और यही लोकतंत्र की शक्ति है।
वैसी उम्मीद कम ही है कि चुनाव आयोग ऐसी हिम्मत जुटा पाए कि वो मोदी के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई करे। ऐसे में लोकतंत्र और संस्थाओं पर बढ़ता हुआ खतरा देश की नींव को कमजोर ही करेगा तथा देश को तानाशाही के एक नए आयाम की ओर धकेल देगा। पर फिर भी उम्मीद है जनता इस बार कुछ ऐसा पैâसला देगी, जिससे देश के लोकतंत्र को और मजबूती मिले तथा देश फिर से उन मूल्यों को पुनर्स्थापित कर पाए जिनका ह्रास हमने पिछले कई वर्षों में देखा है।
(स्तम्भ लेखक आर्थिक और समसामयिक विषयों पर चिंतक और विचारक है)

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