मन की कोख से जन्म लेती ख्वाहिशें,
जीने का सहारा बनती रंगीन ख्वाहिशें,
दिन की महफिल सजाती ये ख्वाहिशें,
रातों की रौनक बनाती ये ख्वाहिशें,
हर पल जीवंत होती ये ख्वाहिशें,
जीवन राग और धड़कन की ताल हैं ख्वाहिशें,
धरती का सीना चीर, बीज़ सी ख्वाहिशें,
मंज़िल की खातिर हदें तोड़ती ख्वाहिशें,
नभ छूने को बेताब, परिंदों की ख्वाहिशें,
होतीं ख्वाहिशें ख़ुदगर्ज इतनी
ख़ुद की हसरतो की खातिर,
भुला दे इंसा दूजे की ख्वाहिशें,
भूलती भेद अपने पराये का ख्वाहिशें,
अनजान होती हैं तभी रहती,
रिश्तों से बेखबर ख्वाहिशें,
सांस की अंतिम डोर तक
वफा निभाती ये ख्वाहिशें !
-मुनीष भाटिया
मोहाली