सामना संवाददाता / मुंबई
बीते कई सालों से लगातार शुरू यूनिवर्सल मेडिसिन वैंâपेन की बदौलत महाराष्ट्र के कई जिलों में फाइलेरिया या हाथीपांव (एलिफेंटाइसिस) बीमारी का खात्मा हो रहा है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, प्रदेश के करीब आठ जिले इस बीमारी से मुक्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर मानसिक बीमारी के बाद यह दूसरी सबसे अधिक विकलांग करनेवाली बीमारी मानी जाती है।
उल्लेखनीय है कि बारिश के मौसम में मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसी वजह से डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का भी खतरा भी बढ़ जाता है। मच्छरों के काटने से लिम्पैâटिक फाइलेरियासिस या एलिफेंटिएसिस बीमारी भी होती है, जिसे आम भाषा में हाथीपांव कहते हैं। यह बीमारी काफी दर्दनाक होती है। साल २०२०-२१ की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र में करीब ३१,२५८ लिम्फेडेमा और ११,९२९ हाइड्रोसील के मामले सामने आए थे। एलिफेंटिएसिस उर्फ लिम्पैâटिक फाइलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में चंद्रपुर, गढ़चिरौली, गोंदिया, भंडारा, नागपुर, वर्धा, अमरावती, यवतमाल, लातूर, नांदेड़, धाराशिव, सिंधुदुर्ग, नंदुरबार, सोलापुर, अकोला, जलगांव, ठाणे और पालघर हैं।
तेजी से घट रहे मामले
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, यूनिवर्सल मेडिसिन वैंâपेन की वजह से यह बीमारी तेजी से घट रही है। साल २०२३ के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में अब हाथीपांव के ३०,३३४ और हाइड्रोसील के ७,२५६ मामले हैं। एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि, इस वैंâपेन ने जलगांव, वर्धा, सिंधुदुर्ग, अकोला, अमरावती, लातूर, धाराशिव, सोलापुर, ठाणे के शहापुर तालुका और यवतमाल में बीमारी को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हाथीपांव का इलाज और रोकथाम
डॉक्टरों के मुताबिक, हाथीपांव में इंफेक्शन के पहले स्टेज पर ही अगर पहचान हो जाए तो इसे रोका जा सकता है। शुरुआत में लक्षणों की पहचानकर इसके चक्र को ब्रेक कर दिया जाता है, जिससे परजीवी मच्छर आगे न बढ़ने पाएं। इस बीमारी को रोकने के लिए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन जैसे कई मेडिकल इलाज पर काम चल रहा है। इसके लिए दवाइयां बांटी जा रही हैं। गर्भवती महिलाएं और दो साल से कम उम्र के बच्चों समेत सभी को ये दवाइयां दी जाती हैं।
देश में एलिफेंटिएसिस खतरनाक
फाइलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें पैर सूजकर हाथी के पैर जैसे मोटे हो जाते हैं। इस बीमारी में टेस्टिकल्स में भी सूजन आ जाती है। अगर समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो इसकी वजह से विकलांगता का खतरा भी हो सकता है। जानकारी के मुताबिक, हिंदुस्थान में हाथीपांव का खतरा काफी ज्यादा है। अकेले हिंदुस्थान में दुनियाभर के कुल मामलों का ४० प्रतिशत केस पाया जाता है। आज के समय की बात करें तो देश में करीब ७.४० करोड़ लोगों को ये बीमारी होने का खतरा है।