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ईडी के राज में मनरेगा मेहनताने के लिए भटक रहे मजदूर! …७ महीने से रु. २९ करोड़ मजदूरी बाकी

भुखमरी के कगार पर पालघर के श्रमिक
योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
ग्रामीण मजदूरों को गरीबी से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभानेवाली ‘मनरेगा’ यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का पालघर जिले में हाल बेहाल है। यहां मनरेगा मजदूरों को पिछले ७ महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। अपने मेहनताने यानी मेहनत के पैसों को पाने के लिए मजदूर दर-दर भटकने को मजबूर हो रहे हैं।
मनरेगा में फावड़ा चलाकर अपना पसीना बहाने वाले आदिवासी मजदूरों को पिछले करीब ७ माह से मजदूरी नहीं मिली है। पालघर जिले के आठ तालुकों में २८ करोड़ ९३ लाख २१ हजार ६६३ रुपए का मेहनताना बकाया है। विक्रमगढ़ तालुका में सबसे ज्यादा करीब ११ करोड़ रुपए मजदूरों की मजदूरी बाकी है।
नवंबर २०२३ से मजदूरी का भुगतान नहीं होने से ग्रामीण गांव छोड़कर शहरों में काम की तलाश में भटकने को मजबूर हैं। मजदूरी भुगतान को लेकर जिम्मेदार अधिकारी भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पा रहे हैं। उनका कहना है कि फंड आते ही भुगतान हो जाएगा।
दरअसल, मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को गांव के भीतर ही काम उपलब्ध कराने का काम किया जाता है, ताकि ग्रामीणों को अपना गांव छोड़कर काम की तलाश में भटकना न पड़े। इसके साथ ही मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एक अहम माध्यम भी है, लेकिन वर्तमान में पालघर जिले के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में मनरेगा को लेकर स्थिति अच्छी नजर नहीं आ रही है। योजनाओं में गांव में काम मिलने से ग्रामीण संतुष्ट थे, लेकिन वर्तमान में मनरेगा के तहत काम करने के बाद ग्रामीण मजदूरी भुगतान के लिए भटक रहे हैं।
जिले में नौकरियों की संख्या पहले से ही कम है। विभिन्न सरकारी विभागों में पद खाली पड़े हैं और कई वर्षों से भरे नहीं गए हैं। ऐसे में कम से कम अस्थायी तौर पर परिवार का भरण-पोषण करने के उद्देश्य से कई युवा भी जिले में विभिन्न विभागों के माध्यम से चल रहे रोजगार गारंटी योजना के कार्यों में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें ७ महीने के बाद भी भुगतान नहीं दिया गया है, जिससे ये मजदूर भुखमरी के कगार पर आ गए है।
निर्धारित काम दिवस के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई खुदाई, आवास निर्माण, सड़को का निर्माण, वृक्षारोपण, जमीन का समतलीकरण, ग्राम पंचायत कार्यालय का निर्माण, सार्वजनिक शौचालय, सुरक्षात्मक दीवार सहित अन्य कार्य मनरेगा में कराए जा रहे हैं।

नहीं मिल रही मजदूरी, पलायन करना मजबूरी
पालघर के ग्रामीण इलाकों में मजदूरों को मनरेगा योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ७ महीने से मजदूरों को मजदूरी तक नहीं मिली है। मजदूरी नहीं मिलने से मजदूर भी काम में रुचि नहीं ले रहे हैं। तमाम मजदूर शहरों और पड़ोसी राज्य गुजरात और मुंबई और आस-पास के शहरों में मजदूरी करने के लिए पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं।
जानिए क्या कहते हैं मजदूर
ग्रामीण विजय ने बताया कि मनरेगा हम लोगों के जीने का आधार है गांव में ही काम चल जाता था, लेकिन भुगतान न होने से अब मजदूर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। एक तो मजदूरी की और अब मजदूरी के पैसे के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

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