धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
महाराष्ट्र में बढ़ते कुपोषण पर डबल इंजिन सरकार का कोई ध्यान नहीं है। यहां ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में हर साल सैकड़ों की संख्या में नौनिहाल कुपोषण के शिकार होते हैं। हालांकि, साल २०१९ में जैसे ही महाविकास आघाड़ी सरकार सत्ता में आई, उसने कुपोषण को रोकने के लिए कारगर कदम उठाए थे। इससे काफी हद तक कुपोषण के मामले कम हुए। लेकिन गद्दारी के रास्ते पर चलकर जैसे ही शिंदे सरकार सत्ता में आई, उसने महाविकास आघाड़ी सरकार की कई लोकोपयोगी योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसका सीधा असर महाराष्ट्र के लोगों पर पड़ा और वे इस तरह की योजनाओं के लाभ से वंचित रह गए। इसमें से कुपोषण को कंट्रोल करने के लिए बनाई गई नीतियों का भी समावेश है। इस तरह से यह डबल इंजिन की सरकार राज्य के कुपोषितों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।
इस सरकार की ओर से बरती गई लापरवाही के कारण कुपोषण के मामलों में फिर से बढ़ोतरी होने लगी है। दूसरी तरफ कुपोषित बच्चों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त तत्वावधान में पोषण आहार योजना चलाई गई। योजना पर केंद्र ८० फीसदी और राज्य सरकार २० फीसदी निधि उपलब्ध करा रही है। हालांकि, शिंदे सरकार के राज में योजना का दम निकलता जा रहा है। महाराष्ट्र राज्य आंगनबाड़ी कर्मचारी कृति समिति के राजेश सिंह ने बताया कि राज्य में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को दिया जा रहा पोषण आहार बहुत ही घटिया दर्जे का है। इस तरह का आहार देकर एक तरह से उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने का काम किया जा रहा है।
राजेश सिंह ने कहा कि राज्य में १.१३ लाख आंगनवाड़ी केंद्र हैं, जिसमें २.२६ लाख आंगनवाड़ी सेविकाएं कार्यरत हैं। इन आंगनवाड़ी सेविकाओं की मदद से लाभार्थी बच्चों और गर्भवती महिलाओं को एक महीने का एक साथ पैकेट बंद पोषण आहार दे दिया जाता है। उन्होंने कहा कि एक लाभार्थी को एक दिन के लिए दिए जा रहे पोषण आहार की कीमत ८ रुपए है। इस तरह राज्य में करीब ८० लाख लाभार्थियों को रोजाना ६.४०, महीने का १९२ करोड़ और सालाना २३०४ करोड़ रुपए के पोषण आहार दिए जाते हैं। लेकिन गुणवत्ता घटिया होने के कारण इस पर केवल पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। साल २०१९ में मविआ की सरकार आई, लेकिन एक साल बाद ही यानी मार्च २०२० में कोरोना महामारी के दस्तक देने से पोषण आहार समेत कई योजनाएं प्रभावित हुर्इं। इस पर जब कोई ठोस पैâसला लिया जाता, तब तक उस सरकार को गिरा दिया गया और उसकी जगह असंवैधानिक सरकार सत्ता में आ गई। इस तरह बीते छह सालों से पोषण आहार की कीमत बढ़ी ही नहीं। उन्होंने कहा कि ठेकेदारों का कहना है कि तमाम तरह के खर्चों के बाद पोषण आहार केवल पांच से ५.५० रुपए तक ही रह जाता है। हालांकि, गुणवत्ता को सुधारने के लिए इसकी कीमत कम से कम १६ रुपए की जानी चाहिए। बता दें कि पोषण आहार दो तरह के टीएचआर और हॉट मील होते हैं। टीएचआर आहार के तहत दिए जानेवाले आहार को आंगनबाड़ी सेविकाओं के मदद से लाभार्थियों के घरों तक पहुंचाना होता है, जबकि हॉट मील केंद्र में ही दिया जाता है। राजेश सिंह ने कहा कि टीएचआर, हॉट मील और मिड डे मिल तीनों का ही रेट एक समान यानी आठ रुपए ही है। टीएचआर आहार पैकेट बंद होता है, इसलिए उसकी गुणवत्ता का पता लाभार्थी द्वारा पैकेट को खोलने के बाद चलता है, जो बहुत घटिया होता है। इसे लाभार्थी भी नहीं खाते हैं। कुल मिलाकर सरकार पैसों की बर्बादी कर रही है। इसे लेकर संगठन की तरफ से ज्ञापन भी दिया गया है, लेकिन अब तक किसी तरह का जवाब नहीं मिला है।