- बैंकों के घटते एनपीए के झूठ का पर्दाफाश
केंद्र सरकार इस बात का ढिंढोरा पीट रही है कि देश की बैंकिंग व्यवस्था काफी मजबूत है व उसका एनपीए घटा है। इस बात के लिए आरबीआई ने कुछ आंकड़े भी पेश किए हैं। पर क्या असली तस्वीर वही है, जो वास्तव में दिखाई गई है? दरअसल, गौर से देखें तो आपको बट्टे खाते का बुलबुला फूटता नजर आएगा। जी हां, ये बट्टा खाता बैंकिंग सिस्टम की वो अंधेर नगरी है, जिसमें सरकार ‘न वसूल की गई कर्ज की रकम’ डाल देती है और अपने आंकड़ों को चमका देती है।
पिछले कुछ हफ्तों के दौरान आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के हवाले से जो खबरें छपी हैं, वे बताती हैं कि हिंदुस्थानी बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए नाटकीय रूप से गिरकर १० साल के निचले स्तर पर आ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष २०२३ में कुल एनपीए ३.९ फीसदी रहा, जबकि २०१८ में यह ११.५ फीसदी था। इस अवधि में कुल उधार में भी खासा इजाफा देखा गया जो २०१८ में ८३.६ लाख करोड़ रु. से बढ़कर २०२३ में १३५ लाख करोड़ हो गया। उधार के बढ़े आधार पर कुल एनपीए के प्रतिशत में आई गिरावट सही तस्वीर नहीं रख रही।
आंकड़ों के हवाले से आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ठोस कमाई, पर्याप्त पूंजी, पर्याप्त तरलता और परिसंपत्ति की गुणवत्ता में हुई बेहतरी की वजह से देश के बैंक २०२२ के शुरू से चल रहे क्रेडिट चक्र में दिख रही तेजी को बनाए रखने के लिहाज से अच्छी स्थिति में हैं।’ अगर इस विषय को अब भी सिस्टम में तैयार हो रहे एनपीए की संख्या के आधार पर देखा जाए, तो एक अलग ही तस्वीर सामने आएगी। बैंकों के पास जो भी पैसा है, वह आखिरकार देश के आम लोगों का है जिसे वे अपनी कमाई से बचाकर बैंक में डालते हैं और जिसका इस्तेमाल बैंक व्यवसायों को उधार देने में करते हैं।
बढ़ रहा है नया एनपीए
२०२१-२२ में कुल एनपीए ७.४४ लाख करोड़ रुपए था, जबकि साल के शुरू में वह ८.३५ लाख करोड़ था। इसमें आई गिरावट का कारण यह था कि १.७९ लाख करोड़ रुपए के उधार को बट्टे खाते में डाल दिया गया। लेकिन जब २०२१-२२ खत्म हुआ, तो २.८३ लाख करोड़ रुपए के नए एनपीए खड़े हो गए थे। हकीकत यह है कि पिछले पांच सालों (२०१८-२०२२) में जब कुल एनपीए ९.२ फीसदी से घटकर ५.८ फीसदी हो गया है, इस दौरान बट्टे खाते में डाली गई रकम १०.२५ लाख करोड़ की रही। इसके साथ ही इस अवधि के दौरान २० लाख करोड़ रुपए से कुछ ही कम के नए एनपीए हो गए। दी गई अवधि में साल-दर-साल, नया एनपीए बट्टे खाते में डाला गया या वसूली गई राशि से कहीं अधिक रहा है।
जानबूझकर नहीं चुकाते हैं उधार
कुल एनपीए प्रतिशत में गिरावट का कारण क्या है? मजबूत रिकवरी हुई हो तो अच्छी बात है, लेकिन अगर ऐसा उधारी को बट्टे खाते में डालने से हुआ है तो बुरा है। एनपीए पर काबू करने के लिए अगर सख्त रुख अपनाया गया हो, जहां जरूरी हो, वहां डंदात्मक कार्रवाई हुई हो तो बात समझ में आती है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं, जिनके पास व्यावसायिक विफलता जैसी उधार न चुका पाने की वाजिब वजह हो। लेकिन उनका क्या जो उधार चुकाने की स्थिति में होते हुए भी पैसे नहीं देते हैं और ढीली प्रशासनिक व्यवस्था का लाभ उठाते हैं? जान-बूझकर उधार न चुकाने वालों के साथ बैंकिंग व्यवस्था ने क्या किया, यह देखना सबसे ज्यादा जरूरी है।